संसद का मानसून सत्र 19 जुलाई से शुरू होगा. संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि इस दौरान संसद के बाहर केंद्र के तीनों कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ रोज़ क़रीब किसानों का एक समूह प्रदर्शन करेगा. साथ ही सत्र शुरू होने के दो दिन पहले सदन में क़ानूनों का विरोध करने के लिए सभी विपक्षी सांसदों को चेतावनी पत्र दिया जाएगा.
नई दिल्ली: संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने रविवार को कहा कि मानसून सत्र के दौरान संसद के बाहर केंद्र के तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ रोज करीब 200 किसानों का एक समूह प्रदर्शन करेगा.
कृषि कानूनों के विरोध में 40 से ज्यादा किसान संगठन, संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में पिछले सात महीनों से अधिक समय से प्रदर्शन कर रहे हैं. एसकेएम ने संवाददाता सम्मेलन में बताया कि सत्र शुरू होने के दो दिन पहले सदन के अंदर कानूनों का विरोध करने के लिए सभी विपक्षी सांसदों को एक चेतावनी पत्र दिया जाएगा.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, भाकियू डकौंडा के अध्यक्ष बूटा सिंह बुर्जगिल ने कहा, ’17 जुलाई को हम विपक्षी दलों के नेताओं के घरों पर जाएंगे और उन्हें एक चेतावनी पत्र देंगे. हमारा उनसे यह निवेदन होगा कि वो या तो अपनी चुप्पी तोड़ें या फिर अपनी सीट छोड़ें. पांच दिनों बाद सिंघू से लोगों का बड़ा समूह निकलेगा और संसद पहुंचेगा और विपक्ष से कहेगा कि वो कार्यवाही को बाधित करे. हम बाहर बैठेंगे. हम इसे दोहराते रहेंगे, यह हमारे प्रदर्शन की योजना है.’
किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा, ‘हम विपक्षी सांसदों से भी 17 जुलाई को सदन के अंदर हर दिन इस मुद्दे को उठाने के लिए कहेंगे, जबकि हम विरोध में बाहर बैठेंगे. हम उनसे कहेंगे कि संसद से बहिर्गमन कर केंद्र को लाभ न पहुंचाएं. जब तक सरकार इस मुद्दे का समाधान नहीं करती तब तक सत्र को नहीं चलने दें.’
संसद का मानसून सत्र 19 जुलाई से शुरू होने जा रहा है. राजेवाल ने कहा, ‘जब तक वे हमारी मांगें नहीं सुनेंगे, हम संसद के बाहर लगातार विरोध प्रदर्शन करेंगे.’
उन्होंने कहा कि प्रत्येक किसान संगठन के पांच लोगों को विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए ले जाया जाएगा.
इसके अलावा संयुक्त किसान मोर्चा ने पेट्रोल, डीजल और एलपीजी सिलेंडर की बढ़ती कीमतों के खिलाफ आठ जुलाई को देशव्यापी विरोध का भी आह्वान किया. मोर्चा ने लोगों से राज्य के और राष्ट्रीय राजमार्गों पर सुबह 10 बजे से दोपहर 12 बजे तक बाहर आने और अपने वाहन को वहां लगाने को कहा.
राजेवाल ने कहा, ‘आपके पास जो भी वाहन है, ट्रैक्टर, ट्रॉली, कार, स्कूटर, बस उसे निकटतम राज्य या राष्ट्रीय राजमार्ग पर लाएं और वहां पार्क करें. लेकिन ट्रैफिक जाम न लगाएं.’
किसान नेता ने लोगों से रात 12 बजे आठ मिनट के लिए अपने वाहनों का हॉर्न बजाने की भी अपील की. उन्होंने विरोध में एलपीजी सिलेंडर लाने को भी कहा.
किसान नेता ने कहा, ‘मैं सभी महिलाओं से अपने गैस सिलेंडर को सड़कों पर लाने और विरोध का हिस्सा बनने का आह्वान करता हूं.’
इसके अलावा किसानों ने फरीदाबाद के खोरी गांव से स्थानीय लोगों को बेदखल किए जाने के खिलाफ विरोध की योजना बनाई है. भाकियू हरियाणा के गुरनाम सिंह चाढूनी ने कहा, ‘कुछ दिन पहले खोरी गांव में लाठीचार्ज हुआ था. 6 जुलाई को हम पीएम हाउस में विरोध प्रदर्शन करेंगे और सरकार से लोगों को बचाने के विकल्पों पर विचार करने का आग्रह करेंगे. ग्रामीणों को अलग जगह भी दी जा सकती है.’
उन्होंने आरोप लगाया कि, ‘इस बेदखली से सात, पांच सितारा होटल अछूते हैं. ये एक लाख लोग ही सड़कों पर आएंगे.’
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के हालिया बयान के बारे में एक सवाल के जवाब में राजेवाल ने कहा कि किसान शर्तों के साथ बात नहीं करेंगे.
कृषि मंत्री ने कहा था कि सरकार किसानों के साथ बातचीत करने के लिए तैयार है. राजेवाल ने कहा, ‘नेता शर्तों के साथ कृषि कानूनों के बारे में बात करना चाहते हैं, हम उनसे बात करने के लिए तैयार हैं लेकिन तभी जब वे कानूनों को निरस्त करने के लिए सहमत हों.’
तोमर ने एक जुलाई को जोर देकर कहा था कि केंद्र के तीनों कृषि कानून किसानों के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव लाएंगे और यह स्पष्ट किया कि सरकार इन कानूनों को निरस्त करने की मांग को छोड़कर विरोध करने वाले किसानों के साथ बातचीत करने के लिए तैयार है.
बता दें कि किसानों ने केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के विरोध में नवंबर 2020 से दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं.
विरोध कर रहे किसानों की मांग कर रहे हैं कि केंद्र सरकार इन तीनों कृषि कानूनों को वापस लें और किसानों की उपज के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी के लिए नए कानून बनाए.
गौरतलब है कि केंद्र सरकार की ओर से कृषि से संबंधित तीन विधेयक– किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 को बीते साल 27 सितंबर को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी थी, जिसके विरोध में चार महीने से अधिक समय से किसान प्रदर्शन कर रहे हैं.
किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन अध्यादेशों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.
दूसरी ओर केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली मोदी सरकार ने बार-बार इससे इनकार किया है. सरकार इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है. उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं.
अब तक प्रदर्शनकारी यूनियनों और सरकार के बीच 11 दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन गतिरोध जारी है, क्योंकि दोनों पक्ष अपने अपने रुख पर कायम हैं. प्रदर्शनकारी किसानों और सरकार के बीच पिछली औपचारिक बातचीत बीते 22 जनवरी को हुई थी. 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के लिए किसानों द्वारा निकाले गए ट्रैक्टर परेड के दौरान दिल्ली में हुई हिंसा के बाद से अब तक कोई बातचीत नहीं हो सकी है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)