भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले में पिछले साल आठ अक्टूबर को गिरफ़्तार किए गए 84 वर्षीय आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी का निधन बीते सोमवार को मेडिकल आधार पर ज़मानत का इंतज़ार करते हुए अस्पताल में हो गया. आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी के प्रियजनों ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी मौत के लिए पूरी तरह से लापरवाह जेल, उदासीन अदालतें और दुर्भावनापूर्ण जांच एजेंसियां ज़िम्मेदार हैं.
नई दिल्ली: भीमा कोरेगांव-एल्गार परिषद मामले के आरोपियों के परिजनों एवं करीबियों ने एक बयान जारी कर कहा है कि आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी की मौत ‘संस्थागत हत्या’ है.
उन्होंने कहा कि अब इस मामले को लेकर जेल में बंद अन्य लोगों के स्वास्थ्य एवं उनके जीवन की चिंता बढ़ गई है.
एल्गार परिषद मामले में पिछले साल आठ अक्टूबर को गिरफ्तार किए गए 84 वर्षीय आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी की हालत कई दिनों से नाजुक बनी हुई थी और वे लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थे.
बीते सोमवार को मेडिकल आधार पर जमानत का इंतजार करते हुए मुंबई की होली फैमिली अस्पताल में उनकी मौत हो गई. बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्देश पर उन्हें इस अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
उनके करीबियों ने तलोजा जेल पर आरोप लगाया है कि स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिलने के कारण स्वामी की स्थिति बदतर हुई थी.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक परिजनों की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है, ‘हम, भीमा कोरेगांव षड्यंत्र मामले में आरोपियों के दोस्त और परिवार के सदस्य फादर स्टेन स्वामी के चले जाने से बहुत आहत और दुखी हैं. यह प्राकृतिक मौत नहीं है, बल्कि एक अमानवीय सरकार द्वारा संस्थागत हत्या है. झारखंड में आदिवासियों के बीच अपना जीवन व्यतीत करने के बाद संसाधनों और भूमि के अधिकार के लिए लड़ते हुए फादर स्टेन इस तरह से चले जाने के लायक नहीं थे. उन्हें एक झूठे केस में फंसाकर उनके प्यारे झारखंड से दूर रखा गया.’
एल्गार परिषद मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा गिरफ्तार किए जाने वाले स्टेन स्वामी सबसे वरिष्ठ और 16वें व्यक्ति थे.
वह पार्किंसंस बीमारी से जूझ रहे थे और उन्हें गिलास से पानी पीने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था. इसके बावजूद स्टेन स्वामी को चिकित्सा आधार पर कई बार अनुरोध के बाद भी जमानत नहीं दी गई.
परिजनों ने बयान में कहा, ‘अपने कमजोर स्वास्थ्य के बावजूद उन्होंने अपने चरित्र की ताकत और अपने अडिग ईमानदारी से सभी को प्रेरित किया. जेल में उनका स्वास्थ्य खराब होने पर भी उनकी प्रार्थनाएं हमेशा अपने सह-कैदियों के साथ थीं. अपने पत्रों में उन्होंने अपने अन्य जेल साथियों के बारे में लिखा, जो अलग-अलग मामलों में झूठे तरीके से फंसाए गए हैं और समाज में प्रचलित अन्याय से पीड़ित हैं.’
इसमें कहा गया है कि उनकी मेडिकल जमानत याचिका को विशेष अदालत ने ठुकरा दिया था, जबकि वह जेल में कोविड-19 से संक्रमित थे. उच्च न्यायालय के आदेश के बाद जब उन्हें अस्पताल ले जाया गया, तब इसका पता चला.
इस साल मई में स्वामी ने उच्च न्यायालय की अवकाश पीठ को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से बताया था कि तलोजा जेल में उनका स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता ही रहा है.
उन्होंने उच्च न्यायालय से उस वक्त अंतरिम जमानत देने का अनुरोध किया था और कहा था कि अगर चीजें वहां ऐसी ही चलती रहीं तो वह ‘बहुत जल्द मर जाएंगे.’ वे अपने आखिरी समय में रांची में अपने लोगों के साथ रहना चाहते थे.
उनके प्रियजनों ने बयान में कहा, ‘हम फादर स्टेन स्वामी के निधन पर शोक व्यक्त करते हैं. साथ ही हम स्पष्ट रूप से लापरवाह जेलों, उदासीन अदालतों और दुर्भावनापूर्ण जांच एजेंसियों को उनकी दुर्भाग्यपूर्ण मौत के लिए पूरी तरह जिम्मेदार ठहराते हैं.’
बता दें कि एल्गार परिषद मामले में ही एक और वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता और जाने-माने कवि 82 वर्षीय वरवरा राव को भी आरोपी बनाया गया है. फिलहाल वे छह महीने की मेडिकल जमानत पर बाहर हैं.
वहीं एक अन्य बुद्धिजीवी आरोपी दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हेनी बाबू को भी एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया है. उनके आंखों में संक्रमण होने की शिकायत आई थी.
वहीं प्रधानमंत्री ग्रामीण विकास फेलो महेश राउत, अकादमिक आनंद तेलतुम्बड़े, वकील सुरेंद्र गाडलिंग, सुधा भारद्वाज, पूर्व प्रोफेसर शोमा सेन, सांस्कृतिक समूह कबीर कला मंच के सदस्य सागर गोरखे, रमेश गायचोर, ज्योति जगताप, कार्यकर्ता अरुण फरेरा, वर्नोन गोंजाल्विस, रोना विल्सन और गौतम नवलखा जेल में हैं.
एल्गार-परिषद मामले में स्वामी और उनके सह-आरोपियों पर एनआईए ने आरोप लगाया है कि ये सभी प्रतिबंधित माकपा (माओवादी) की तरफ से काम कर रहे थे.
पिछले महीने एनआईए ने उच्च न्यायालय के समक्ष हलफनामा दायर कर स्वामी की जमानत याचिका का विरोध किया था. इसने कहा था कि उनकी बीमारी के कोई ‘ठोस सबूत’ नहीं हैं.
उन्होंने आरोप लगाया था कि स्वामी ने माओवादियों का साथ दिया था, जिन्होंने देश में अशांति पैदा करने के लिए साजिश रची थी.
एल्गार परिषद मामला 31 दिसंबर 2017 को पुणे में हुए एक सम्मेलन में कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है, जिसके बारे में पुलिस का दावा है कि अगले दिन इन भाषणों के कारण कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई थी.