क्या दिल्ली पुलिस में कठपुतली कमिश्नर की परंपरा चलती रहेगी

ऐसा लगातार दूसरी बार हुआ है कि दिल्ली पुलिस आयुक्त के पद पर सीधे नियमित कमिश्नर की तैनाती न करके किसी वरिष्ठ अधिकारी को अतिरिक्त प्रभार दिया गया है. ऐसा लगता है कि सत्ताधारी नेता जानबूझकर ही शायद ऐसा कर रहे हैं, जिससे उनके हिसाब से न चलने पर उन्हें आसानी से हटाया जा सके.

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(फोटो: पीटीआई)

ऐसा लगातार दूसरी बार हुआ है कि दिल्ली पुलिस आयुक्त के पद पर सीधे नियमित कमिश्नर की तैनाती न करके किसी वरिष्ठ अधिकारी को अतिरिक्त प्रभार दिया गया है. ऐसा लगता है कि सत्ताधारी नेता जानबूझकर ही शायद ऐसा कर रहे हैं, जिससे उनके हिसाब से न चलने पर उन्हें आसानी से हटाया जा सके.

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बालाजी श्रीवास्तव भी क्या दिल्ली पुलिस के अस्थायी/कार्यवाहक कमिश्नर ही बने रहेंगे?

यह सवाल इस लिए उठता है क्योंकि बालाजी श्रीवास्तव को दिल्ली पुलिस कमिश्नर का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया है. गृह मंत्रालय ने 29 जून को यह आदेश जारी किया, जिसके अनुसार नियमित/स्थायी कमिश्नर की नियुक्ति होने तक वह कमिश्नर का अतिरिक्त कार्यभार संभालेंगे.

कठपुतली कमिश्नर

ऐसा लगातार दूसरी बार हुआ है कि दिल्ली पुलिस आयुक्त के पद पर सीधे नियमित कमिश्नर की तैनाती न करके किसी वरिष्ठ अधिकारी को अतिरिक्त प्रभार दिया गया है, जिससे लगता है कि सत्ताधारी नेता जानबूझकर ही शायद ऐसा कर रहे हैं जिससे कि कार्यवाहक कमिश्नर पर हमेशा तबादला रुपी खतरे की तलवार लटकती रहे.

कार्यवाहक कमिश्नर अगर उनकी कठपुतली या सत्ता का लठैत बनने से इनकार करे तो उसे तुरंत आसानी से हटाया जा सके. नियमित/स्थायी कमिश्नर को उसका कार्यकाल पूरा होने से पहले हटाया नहीं जा सकता.

वैसे सच्चाई तो यह है कि नियमित हो या कार्यवाहक, कमिश्नर तो उसे ही लगाया जाता है जो सत्ताधारी नेताओं का चहेता और आंख मूंदकर उनके इशारे पर नाचे. लेकिन इसके बावजूद भी कुछ आईपीएस अपनी काबिलियत की छाप छोड़ जाते हैं.

वैसे अब तो संविधान या कानून के प्रति निष्ठा, वफादारी की बजाय ज्यादातर आईपीएस राजनेताओं के प्रति ही निष्ठा भाव रखते हैं. अगर जल्द ही बालाजी श्रीवास्तव को या किसी अन्य आईपीएस को नियमित कमिश्नर नहीं बनाया गया तो कठपुतली वाली बात सही साबित हो जाएगी.

अगर ऐसा होता है तो कठपुतली/कार्यवाहक कमिश्नर की यह गलत परंपरा पुलिस बल और दिल्ली की कानून व्यवस्था के लिए सही नहीं होगी. क्योंकि जब कमिश्नर अपने कार्यकाल को लेकर ही निश्चिंत और सुरक्षित नहीं होगा तो वह अपने कर्तव्य का पालन अच्छी तरह से भला कैसे कर सकता है. वह तो सत्ताधारियों का दरबारी बन हर समय अपना पद बचाने की कोशिश में ही लगा रहेगा.

तय कार्यकाल क्यों नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने कमिश्नर/डीजीपी और सीबीआई निदेशक आदि का कार्यकाल दो साल तय किया हुआ है. अगर वह अधिकारी तय कार्यकाल से पहले सेवानिवृत्त होने वाला हो तो उसका कार्यकाल बढ़ाया दिया जाता है. अगर कार्यकाल नहीं बढ़ाया जाता तो वह अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देकर अदालत में गुहार लगा सकता है.

इस वजह से भी सरकार द्वारा नियमित की बजाय अतिरिक्त प्रभार दिया जाने लगा है. नियमित कमिश्नर के लिए यूपीएससी को सभी योग्य दावेदारों के नाम भेजने जरूरी होते है. जबकि किसी अफसर को अतिरिक्त प्रभार देने के लिए सरकार स्वतंत्र है.

ऐसे में सत्ताधारी दल यदि अपने चहेते यानी खास अफसर को ही नियुक्त करना चाहे तो वह उसे पद का अतिरिक्त कार्यभार सौंपने का तरीका अपना सकती है. यह तरीका एक तरह से सुप्रीम कोर्ट के आदेश की काट माना जाता है.

साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को निर्देश दिया था कि वह किसी भी पुलिस अधिकारी को कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक नियुक्त न करें. तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने तमाम राज्य सरकारों को पुलिस महानिदेशक या पुलिस आयुक्त पद के दावेदारों के नाम संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के पास विचार के लिए भेजने के लिए कहा था.

यूपीएसपी इन नामों पर विचार करने के बाद तीन नामों को तय करता है. राज्य या केंद्र शासित प्रदेश इन तीन नामों में से एक पर अपनी मुहर लगा सकते हैं. पीठ ने साथ ही यह भी कहा था कि राज्य सरकार पुलिस महानिदेशक या पुलिस आयुक्त का नाम तय करने के लिए पहले यह सुनिश्चित कर लें कि उनका कार्यकाल पर्याप्त बचा हो.

हालांकि यह भी सच है कि सेवानिवृत्त होने के बाद पद पाने के लालच में तो नियमित कमिश्नर भी सत्ता के हिसाब से चलते आए हैं. कमिश्नर/डीजीपी तबादले के भय से मुक्त हो कर अपने कर्तव्य का पालन अच्छे तरीके से कर पाए इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने उनका दो साल का कार्यकाल तय किया है.

30 जून को सेवानिवृत्त हो गए सच्चिदानंद श्रीवास्तव को कमिश्नर पद को कलंकित करने के लिए याद किया जाएगा. बेकसूर लड़कियों को देशद्रोही, दंगाई, आंतकी बताकर जेल में डाल दिया गया. दंगों की जांच पर तो अदालत और रिटायर्ड आईपीएस जूलियो रिबैरो तक ने सवाल उठाया.

सच्चिदानंद श्रीवास्तव पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार और अपराध, अपराधियों पर अंकुश लगाने में भी नाकाम साबित हुए. सच्चिदानंद श्रीवास्तव कार्यवाहक कमिश्नर थे. उन्हें 21 मई 2021 को ही नियमित कमिश्नर के रुप मे नियुक्त किया गया था.

उन्हें पिछले साल फरवरी में दिल्ली पुलिस आयुक्त का अतिरिक्त प्रभार दिया गया था. इससे पहले उन्हें सीआरपीएफ से लाकर दिल्ली पुलिस के विशेष आयुक्त (कानून व्यवस्था) के रूप में तैनात किया गया था.

1988 बैच के आईपीएस बालाजी श्रीवास्तव दिल्ली पुलिस में स्पेशल कमिश्नर (सतर्कता) हैं. श्रीवास्तव दिल्ली पुलिस में इंटेलिजेंस, आर्थिक अपराध शाखा, और स्पेशल सेल के स्पेशल कमिश्नर भी रहे हैं. वह उत्तर पश्चिम जिले में अशोक विहार के एसीपी और पूर्वी जिले के डीसीपी भी रहे हैं.

श्रीवास्तव पुडुचेरी और मिजोरम में पुलिस महानिदेशक और अंडमान निकोबार में अतिरिक्त महानिदेशक के पद पर भी रहे हैं. वह नौ साल तक रॉ (आरएडब्ल्यू, कैबिनेट सचिवालय) में रहे और संवेदनशील जिम्मेदारियों को संभाल चुके हैं. अब उन्हें लंबे समय यानी मार्च 2024 तक दिल्ली पुलिस में काम करने का अवसर मिलेगा.

पिछले कई सालों से कमिश्नर के पद पर ऐसे नाकाबिल आईपीएस अफसर आए हैं, जिन्होंने सत्ता की मर्जी के अनुसार ही काम किया. पेशेवर रूप से नाकाबिल कमिश्नरों के कारण ही आईपीएस अफसर और मातहत पुलिसकर्मी भी निरंकुश हो जाते हैं, जिसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ता हैं.

आज भी हालत यह है कि लूट, झपटमारी आदि अपराध की सही एफआईआर तक दर्ज नहीं की जाती है. अपराध कम दिखाने के लिए अपराध को दर्ज न करने या हल्की धारा में दर्ज किए जाने की परंपरा जारी है. थानों में लोगों से पुलिस सीधे मुंह बात तक नहीं करती. डीसीपी या अन्य वरिष्ठ अफसरों से मिलने के लिए भी लोगों को सिफारिश तक करानी पड़ती है.

दिल्ली पुलिस के कमिश्नर पद पर पहले अनेक ऐसे आईपीएस अफसर रहे हैं जिनकी काबिलियत और दमदार नेतृत्व क्षमता की मिसाल दी जाती है.  यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि बालाजी श्रीवास्तव अपनी पेशेवर काबिलियत दिखाकर कमिश्नर पद का सम्मान, गरिमा बहाल करेंगे या वह अपने पूर्ववर्ती कमिश्नर की तरह सत्ता के फरमाबरदार बनकर इस पद की गरिमा को मटियामेट करेंगे.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)