जम्मू कश्मीर परिसीमन: भाजपा के एक धड़े ने 2011 की जनगणना को आधार बनाने पर आपत्ति जताई

जम्मू कश्मीर एकमात्र ऐसा राज्य/केंद्र शासित प्रदेश है, जहां 2011 की जनगणना के आधार पर परिसीमन होगा. अन्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का परिसीमन 2021 की जनगणना के अनुसार किया जाना है. जम्मू कश्मीर में निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्गठन को लेकर जम्मू की भाजपा इकाई ने 2011 की जनगणना के इस्तेमाल का विरोध किया. उसने कहा कि इन आंकड़ों में हेराफेरी की गई थी, इसलिए वोटर लिस्ट के आधार पर जनसंख्या की गणना की जानी चाहिए.

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(फाइल फोटोः पीटीआई)

जम्मू कश्मीर एकमात्र ऐसा राज्य/केंद्र शासित प्रदेश है, जहां 2011 की जनगणना के आधार पर परिसीमन होगा. अन्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का परिसीमन 2021 की जनगणना के अनुसार किया जाना है. जम्मू कश्मीर में निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्गठन को लेकर जम्मू की भाजपा इकाई ने 2011 की जनगणना के इस्तेमाल का विरोध किया. उसने कहा कि इन आंकड़ों में हेराफेरी की गई थी, इसलिए वोटर लिस्ट के आधार पर जनसंख्या की गणना की जानी चाहिए.

(फाइल फोटोः पीटीआई)

नई दिल्ली: जम्मू प्रांत के भाजपा नेताओं ने परिसीमन आयोग को सौंपे अपने एक पत्र में कहा है कि निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण केवल साल 2011 की जनगणना के आधार पर नहीं होना चाहिए. इनमें से एक धड़े ने मांग की कि प्रांतों की आबादी का निर्धारण करने के लिए मतदाता सूची को ध्यान में रखा जाए.

जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 को लागू करने वाली मोदी सरकार ने इसमें प्रावधान किया है कि 2011 की जनगणना के आधार पर ही परिसीमन किया जाएगा.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पूर्व मंत्री और केंद्रशासित प्रदेश के भाजपा महासचिव सुनील शर्मा ने कहा कि वे 2011 की जनगणना के इस्तेमाल का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि इसके आंकड़ों में बहुत अधिक हेराफेरी की गई है.

उन्होंने कहा, ‘चूंकि मतदाता सूची हर साल अपडेट की जाती है, इसलिए उसके आधार पर जनसंख्या अनुपात निकाला जाना चाहिए.’ शर्मा के नेतृत्व में किश्तवाड़, डोडा और रामबन जिलों के एक भाजपा प्रतिनिधिमंडल ने परिसीमन समिति के समक्ष यह मांग उठाई है.

वहीं जम्मू कश्मीर के भाजपा अध्यक्ष रविंदर रैना के नेतृत्व में एक अलग पार्टी प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि पिछला परिसीमन कार्य ‘एकतरफा’ था, इसलिए भले ही इसके लिए साल 2011 की जनगणना को आधार बनाया जाता है, लेकिन इसके आंकड़ों की प्रामाणिकता के लिए आधार का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.

जम्मू प्रांत में अन्य दल पहले से ही परिसीमन करने के लिए 2011 की जनगणना के उपयोग का विरोध कर रहे हैं. जनगणना ने जम्मू कश्मीर की कुल जनसंख्या 1.22 करोड़ बताई गई थी, जिसमें से कश्मीर प्रांत की आबादी 68.88 लाख और जम्मू की 53.78 लाख थी. जम्मू पार्टियों का दावा है कि कश्मीर के पक्ष में इन आंकड़ों की हेराफेरी की गई है.

हालांकि साल 2019 में संसद में सरकार द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार दोनों प्रांतों में मतदाताओं के बीच का अंतर बहुत कम है. जम्मू में 37.33 लाख मतदाता हैं, जबकि कश्मीर में 40.10 लाख वोटर्स हैं.

दक्षिणपंथी इक्कजुट जम्मू के अध्यक्ष एडवोकेट अंकुर शर्मा ने सवाल किया कि 2001 की जनगणना से जम्मू की आबादी कश्मीर की तुलना में धीमी गति से कैसे बढ़ी, जबकि 1990 के दशक में कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने के बाद घाटी से पंडितों और सिखों का बड़े पैमाने पर जम्मू में पलायन हुआ था.

जहां 2001 और 2011 के बीच कश्मीर की जनसंख्या में 26 फीसदी की वृद्धि हुई, वहीं जम्मू में 21 फीसदी की वृद्धि हुई.

जम्मू कश्मीर एकमात्र ऐसा राज्य या केंद्र शासित प्रदेश है, जहां 2011 की जनगणना के आधार पर परिसीमन होगा. अन्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का परिसीमन 2021 की जनगणना के अनुसार किया जाना है.

इसके अलावा भारतीय जनता पार्टी की जम्मू कश्मीर इकाई के एक और शिष्टमंडल ने परिसीमन आयोग से मुलाकात कर पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) के लिए आरक्षित रखी गईं 24 सीटों पर चुनाव करवाने पर लगी रोक हटाकर पीओके से विस्थापित लोगों, कश्मीरी पंडितों, अनुसूचित जातियों और जनजातियों को आरक्षण देने की मांग की.

अध्यक्ष रवींद्र रैना के नेतृत्व में शिष्टमंडल ने विधानसभा में जम्मू के लिए उचित प्रतिनिधित्व की भी मांग की. जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई (सेवानिवृत्त) के नेतृत्व में परिसीमन आयोग मंगलवार को चार दिवसीय दौरे पर जम्मू कश्मीर पहुंचा.

इस दौरान आयोग के सदस्य राजनीतिक दलों के नेताओं से मुलाकात कर परिसीमन की प्रक्रिया के लिए सीधे तौर पर जानकारी एकत्र करेंगे.

परिसीमन की प्रक्रिया पूरा होने पर जम्मू कश्मीर में विधानसभा सीटों की संख्या 83 से बढ़कर 90 हो जाएगी. इनमें से 24 सीटें पीओके में रहने के कारण खाली रहेंगी.

रैना ने कहा, ‘हमने पीओजेके (पाकिस्तान के कब्जे वाला जम्मू कश्मीर) कोटा में से आठ सीटों पर प्रतिबंध हटाकर पीओजेके से आए शरणार्थियों के लिए राजनीतिक आरक्षण की मांग की है. इसके अलावा कश्मीरी पंडितों, अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा अन्य वंचितों के लिए तीन सीटों की मांग की है. जम्मू को भी विधानसभा में उचित प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए.’

आयोग छह जुलाई को श्रीनगर पहुंचा था. श्रीनगर में नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी), पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (माकपा), पैंथर्स पार्टी, कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), अपनी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के नेताओं ने होटल ललित में आयोग से मुलाकात की थी.

जम्मू में भाजपा, कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस और अन्य दलों के प्रतिनिधिमंडल ने आयोग से मुलाकात की और एक स्वतंत्र एवं निष्पक्ष परिसीमन प्रक्रिया की मांग की.

बता दें कि केंद्र की मोदी सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को विशेष दर्जा समाप्त करने के बाद तत्कालीन जम्मू कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया गया था.

उसके बाद पहली बार बीते 24 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सर्वदलीय बैठक हुई थी.

उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू कश्मीर के राजनीतिक नेताओं को आश्वासन दिया था कि उनकी सरकार जल्द से जल्द विधानसभा चुनावों के माध्यम से लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पुनर्जीवित करने के लिए प्रतिबद्ध है और परिसीमन प्रक्रिया में उनकी भागीदारी की मांग की थी.

इसके बाद हाल ही में घाटी की छह बड़ी राजनीतिक पार्टियों के गठबंधन पीपुल्स एलायंस फॉर गुपकर डिक्लेरेशन (पीएजीडी या गुपकर गठबंधन) ने सर्वदलीय बैठक के नतीजे पर निराशा जताई थी.

गठबंधन ने कहा कि बैठक में राजनीतिक कैदियों तथा अन्य कैदियों की रिहाई जैसे विश्वास बहाली के ठोस कदमों का अभाव है.

गठबंधन ने कहा कि उसमें विश्वास बहाली के लिए कदमों पर बात नहीं हुई और न ही अगस्त 2019 से जम्मू कश्मीर के लोगों का ‘दम घोंट रहे घेराबंदी और दमन वाले वातावरण’ को समाप्त करने के लिए ठोस कदम उठाने पर चर्चा हुई.

गुपकर गठबंधन ने जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने संबंधी संसद में किया गया वादा भाजपा नीत केंद्र सरकार को याद दिलाते हुए कहा कि ऐसा होने के बाद ही विधानसभा चुनाव होने चाहिए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)