पशुपति पारस की सदन के नेता के बतौर मान्यता के ख़िलाफ़ चिराग पासवान की अर्ज़ी ख़ारिज

लोक जनशक्ति पार्टी के एक धड़े के नेता चिराग पासवान ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला द्वारा उनके चाचा पशुपति कुमार पारस को सदन में पार्टी के नेता के तौर पर मान्यता देने को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. अदालत ने कहा याचिका में कोई दम नहीं है इसलिए इसे ख़ारिज किया जाता है.

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चिराग पासवान. (फोटो: पीटीआई)

लोक जनशक्ति पार्टी के एक धड़े के नेता चिराग पासवान ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला द्वारा उनके चाचा पशुपति कुमार पारस को सदन में पार्टी के नेता के तौर पर मान्यता देने को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. अदालत ने कहा याचिका में कोई दम नहीं है इसलिए इसे ख़ारिज किया जाता है.

चिराग पासवान. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के एक धड़े के नेता चिराग पासवान की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला द्वारा पशुपति कुमार पारस को सदन में पार्टी के नेता के तौर पर मान्यता देने को चुनौती दी थी.

उच्च न्यायालय ने कहा, ‘यह काफी अच्छी तरह स्थापित है कि सदन के आंतरिक विवादों के नियमन का अधिकार अध्यक्ष का विशेषाधिकार है.’

जस्टिस रेखा पल्ली ने कहा, ‘मुझे याचिका में कोई दम नजर नहीं आता. याचिका खारिज की जाती है.’ अदालत इस मामले में चिराग पर जुर्माना लगाना चाहती थी लेकिन उनके वकील के अनुरोध करने के बाद उसने ऐसा नहीं किया.

याचिका में लोकसभा अध्यक्ष के 14 जून के परिपत्र को रद्द करने की मांग की गई थी, जिसमें चिराग के चाचा पारस का नाम लोकसभा में लोजपा के नेता के तौर पर दर्शाया गया था.

मंत्रिमंडल फेरबदल सह विस्तार के दौरान सात जुलाई को कैबिनेट मंत्री के तौर पर शपथ लेने वाले पारस ने अपने सियासी सफर का एक खासा हिस्सा अपने दिवंगत बड़े भाई राम विलास पासवान की छत्रछाया में बिताया है.

सुनवाई के दौरान चिराग का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता अरविंद वाजपेयी ने कहा कि पार्टी के छह सांसदों में से पांच ने पारस को सदन में लोजपा का नेता चुनने के लिए लोकसभा अध्यक्ष को पत्र लिखा था और इस संदर्भ में निर्देश पारित किए गए थे.

उन्होंने कहा कि इसके बाद पार्टी ने उन पांच सांसदों को हटाने का फैसला लिया और लोकसभा अध्यक्ष से संपर्क कर कार्रवाई करने तथा चिराग को सदन में पार्टी का नेता घोषित करने की मांग की थी.

वकील ने दलील दी कि लोकसभा अध्यक्ष ने हालांकि पारस को सदन में मान्यता देने की कथित गलती में सुधार नहीं किया.

केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और लोकसभा अध्यक्ष के कार्यालय की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राज शेखर ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि चिराग अंतर-पार्टी विवाद को अदालत में सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि पार्टी के छह में से पांच सदस्यों ने लोकसभा अध्यक्ष से इस तथ्य के साथ संपर्क किया था कि पारस पार्टी के व्हिप धारी हैं और अध्यक्ष की कार्रवाई में त्रुटि नहीं निकाली जा सकती.

अदालत ने कहा वह केंद्र और लोकसभा अध्यक्ष के कार्यालय के वकीलों की दलीलों से सहमत है.

न्यायाधीश ने कहा, ‘अब यह बिल्कुल स्पष्ट है. अगर आप चाहते हैं तो यह आपकी इच्छा है. मैं साफ हूं कि यहा अंतर-पार्टी विवाद है. आप अपने उपायों को टटोल सकते हैं. आप फैसला कीजिए, उसके बाद मैं कुछ टिप्पणी करते हुए कोई आदेश पारित करूंगी.’

चिराग के वकील ने इस पर कहा कि वह अंतर पार्टी विवाद सुलझाने के लिए यहां मौजूद नहीं हैं और मुख्य सचेतक यह दावा नहीं कर सकते कि उन्हें सदन में पार्टी का नेता घोषित किया जाए.

उच्च न्यायालय ने हालांकि यह स्पष्ट किया कि वह याचिका को स्वीकार नहीं करने जा रहा और कहा, ‘क्या अदालत इन सब मामलों में दखल दे.’

मालूम हो कि बीते सात जुलाई को लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के एक धड़े के नेता चिराग पासवान ने अपने चाचा पशुपति कुमार पारस को सदन में पार्टी के नेता (एलओपी) के रूप में मान्यता देने संबंधी लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के फैसले को चुनौती देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय याचिका दायर की थी.

उसके बाद ट्वीट किया था कि उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष के पार्टी के निष्कासित संसद सदस्य पशुपति कुमार पारस को सदन में पार्टी के नेता के तौर पर मान्यता देने के शुरुआती फैसले के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है.

याचिका में कहा गया कि फैसले की समीक्षा का अनुरोध लोकसभा अध्यक्ष के समक्ष लंबित है और कई बार याद दिलाए जाने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई, जिसके बाद उन्होंने उच्च न्यायालय का रुख किया है.

बता दें कि अक्टूबर 2020 में पिता रामविलास पासवान के निधन के बाद चिराग ने पार्टी की कमान संभाली थी. इसके बाद अक्टूबर-नवंबर में हुए बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान जमुई से सांसद चिराग पासवान ने नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था.

विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने के लिए बिहार में सत्ताधारी राजग से अलग होने वाले चिराग पासवान ने हालांकि नरेंद्र मोदी और भाजपा समर्थक रुख कायम रखा था. चिराग ने जदयू के सभी उम्मीदवारों के खिलाफ उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से कई भाजपा के बागी थे. लोजपा ने अपने दम पर राज्य विधानसभा चुनाव लड़ा था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)