यह घटना साल 2018 की है. मुंबई की विशेष अदालत ने कहा कि घटना के समय पीड़ित की उम्र 13 साल थी और वह नियमित तौर पर बेस्ट बस से स्कूल जाती थी. उस समय आरोपी की उम्र 54 साल थी और उसने बच्ची से ऐसे शब्द कहे, जिससे उसके मन में इतना डर पैदा हो गया कि उसने बस से स्कूल जाने से इनकार कर दिया. इस तरह की घटनाएं बच्चियों के विकास में बाधा डालती हैं.
मुंबईः मुंबई की एक विशेष अदालत ने एक बस कंडक्टर को नाबालिग बच्ची का यौन उत्पीड़न करने का दोषी ठहराते हुए एक साल जेल की सजा सुनाई है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने कहा कि इस तरह की घटनाएं बच्चियों के विकास में बाधा डालती हैं क्योंकि इससे उनके मन में डर पैदा होता है.
अदालत ने पिछले हफ्ते मुंबई की बेस्ट बस सेवा के 54 साल के एक बस कंडक्टर को 2018 में 13 साल की एक बच्ची का यौन उत्पीड़न करने के आरोप में एक साल जेल की सजा सुनाई.
विशेष अदालत ने अपने फैसले में कहा, ‘मौजूदा मामले में घटना के समय पीड़िता की उम्र 13 साल थी और वह नियमित तौर पर बेस्ट बस से स्कूल जाती थी. उस समय आरोपी की उम्र 54 साल थी और उसने बच्ची से ऐसे शब्द कहे जिससे उसके मन में इतना डर पैदा हो गया कि उसने बस से स्कूल जाने से इनकार कर दिया. इस तरह की घटनाएं बच्चियों के विकास में बाधा डालती हैं, क्योंकि इससे उनके मन में भय पैदा होता है.’
पीड़िता ने अपने बयान में अदालत को बताया कि वह 24 जुलाई 2018 को स्कूल से घर लौट रही थी, बस कंडक्टर उसके बगल में बैठा था और उसने पूछा कि क्या वह सेक्स के बारे में कुछ जानती है. नाबालिग ने कंडक्टर के इस व्यवहार का विरोध किया और बस से उतर गई.
पीड़िता की मां ने अपने बयान में कहा कि पीड़िता इस घटना से डर गई थी और उसने इस बारे में उनसे भी कोई बात नहीं की. कुछ दिन बाद जब वह उसे बस में छोड़ने गईं तो उसने बस से स्कूल जाने से इनकार कर दिया. इसके बाद उसकी एक दोस्त ने इस घटना के बारे में बताया.
पीड़िता के माता-पिता उसे बस डिपो ले गए, जहां उसने आरोपी कंडक्टर की पहचान की और इसके बाद उसके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज की गई.
अदालत ने अपने फैसले में कहा, ‘निश्चित रूप से इस तरह के बयानों का एक 13 साल की लड़की पर असर होना तय है और अभियोजन पक्ष का यह कहना कि पीड़िता डर गई थी, उचित प्रतीत होता है. यह देखा जा सकता है कि पीड़िता ने कभी भी अपने परिवार को घटना के बारे में नहीं बताया और इसके बजाय अपनी दोस्त को इस बारे में बताया इससे उसके मन में पैदा हुए डर के बारे में पता चलता है. इस बात का कोई सबूत नहीं हैं कि इस बात को उजागर करने में जान-बूझकर देरी की गई.’
बता दें कि आरोपी ने इस एफआईआर को यह कहकर चुनौती दी है कि यह एफआईआर घटना के एक हफ्ते से अधिक देरी से दर्ज की गई.
आरोपी कंडक्टर को यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो) की धारा 12 और आईपीसी की धारा 509 (शील भंग) के तहत दोषी पाया गया और साथ में उस पर 20,000 रुपये का जुर्माने लगाने का भी निर्देश दिया गया.