बिज़नेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट में कहा गया कि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने पैंगोंग के दक्षिणी किनारे पर स्थित कई स्थानों पर फिर से कब्ज़ा कर लिया है, जिसे उन्होंने पहले पीछे हटने संबंधी समझौते के अनुसार खाली कर दिया था. रिपोर्ट के दावे को भारतीय सेना ने ख़ारिज किया है.
नई दिल्ली: बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने एक बार फिर से पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को पार किया है. दोनों सेनाओं के बीच वहां कम से कम एक झड़प हुई है.
रिपोर्ट के अनुसार, रक्षा विश्लेषक अजय शुक्ला ने कहा है कि यह संघर्ष गलवान नदी के पास में हुआ, जिसके पास ही पिछले साल जून में एक खूनी संघर्ष में 20 भारतीय जवानों की मौत हो गई थी.
उन्होंने कहा कि यह साफ नहीं है कि नए संघर्ष में कोई जवान हताहत हुआ है या नहीं.
द वायर के लिए करन थापर को दिए एक इंटरव्यू में शुक्ला ने खुलासा किया कि यह संघर्ष 2 मई को हुआ और सैद्धांतिक रूप से दोनों तरफ के जवान हताहत हो सकते हैं.
हालांकि, बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट में किए गए दावे को भारतीय सेना ने खारिज किया है.
थलसेना ने कहा, ‘इस साल फरवरी में सैन्य बलों के पीछे हटने संबंधी समझौते के बाद से किसी भी पक्ष ने उन क्षेत्रों पर कब्जे की कोई कोशिश नहीं की है, जहां से बलों को पीछे हटाया गया था. ’
उसने झड़प संबंधी खबर को गलत बताते हुए कहा कि गलवान या किसी अन्य क्षेत्र में कोई झड़प नहीं हुई है.
थलसेना ने कहा कि खबर में चीन के साथ हुए समझौतों के विफल होने की बात कही गई है, जो ‘झूठी और बेबुनियाद’ है.
उसने कहा, ‘दोनों पक्ष शेष मामलों को सुलझाने के लिए वार्ता कर रहे हैं और संबंधित क्षेत्रों में नियमित गश्त जारी है. स्थिति पूर्ववत बनी हुई है. भारतीय थलसेना बलों की संख्या समेत पीएलए की गतिविधियों पर नजर रख रही है.’
बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट में कहा गया कि पीएलए ने पैंगोंग त्सो के दक्षिणी किनारे पर स्थित कई स्थानों पर फिर से कब्जा कर लिया था, जैसे कैलाश रेंज में स्थित स्थान, जिसे उन्होंने पहले पीछे हटने संबंधी समझौते के अनुसार खाली कर दिया था.
सेना द्वारा झड़प से इनकार किए जाने के बीच ही बुधवार को विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने दुशांबे में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के एक सम्मेलन के इतर अपने चीनी समकक्ष वांग यी से एक घंटे तक बैठक की.
बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट में कहा गया है कि दोनों सेनाओं के बीच टकराव तब हुआ जब पीएलए के सैनिकों ने गश्त बिंदु 14 के पास गलवान नदी में मोड़ पर एक टेंट स्थापित किया, जिसे भारत ने हटाने की मांग की क्योंकि यह तटस्थ क्षेत्र में था.
रिपोर्ट में कहा गया कि सर्दियों के दौरान यद्यपि 2020 की गर्मियों में एलएसी के भारतीय तरफ कब्जाए गए कई स्थानों से पीएलए पीछे हट गया था लेकिन उसने अप्रैल 2021 में नए सिरे से टकराव का रास्ता दिया.
रिपोर्ट में कहा गया कि यही वह समय था जब चीनी ड्रोन ने बड़ी संख्या में भारतीय हवाईक्षेत्र में प्रवेश करना शुरू किया.
शुक्ला की रिपोर्ट में कहा गया, ‘मई-जून में दक्षिणी लद्दाख के डेमचोक और चुमार में सादे कपड़ों में पीएलए कर्मियों की अच्छी-खासी मौजूदगी दर्ज की गई. वहीं, मई के मध्य में बिना भारतीय उकसावे के पीएलए ने खाली किए गए कई स्थानों पर दोबारा कब्जा शुरू कर दिया है. इससे तनाव बढ़ने लगा और भारतीय पक्ष को जवाबी तैनाती के लिए मजबूर किया.’
रिपोर्ट में कहा गया है कि पीएलए ने रूसी एस-400 वायु रक्षा मिसाइलों की दो रेजिमेंट तैनात की हो सकती हैं, जो वायु शक्ति में भारत की श्रेष्ठता को नष्ट कर सकती हैं. रक्षा प्रणाली में भारतीय विमानों को 400 किमी दूर तक मार गिराने की क्षमता है.
अन्य रिपोर्टों में भी एलएसी के पास पीएलए की मजबूती के बारे में बताया था, हालांकि उनमें से किसी ने भी संघर्ष का उल्लेख नहीं किया.
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि सैटेलाइट इमेजरी से पता चलता है कि अक्साई चिन उभार के माध्यम से चीन की शीतकालीन तैनाती की स्थिति को स्थायी संरचनाओं, आवास और सैन्य भवनों के साथ एक लंबे घेरे में मजबूत किया गया है.
बिजनेस स्टैंडर्ड रिपोर्ट कहती है कि नई दिल्ली का आकलन है कि डेपसांग चीन का केंद्रीय उद्देश्य है, क्योंकि यह भारतीय सैनिकों को चीन की सड़क जी-219 के लिए एक मार्ग प्रदान करता है, जो तिब्बत को शिनजियांग से जोड़ता है.
रिपोर्ट में कहा गया, ‘यह पीएलए और पाकिस्तानी सेना को पूरक थ्रस्ट लाइन भी प्रदान करता है जिस पर वे एक साथ आगे बढ़ सकते हैं और जुड़ सकते हैं. यह काराकोरम दर्रा, डीबीओ (दौलत बेग ओल्डी) और सियाचिन ग्लेशियर सेक्टर सहित भारत के उत्तरी सिरे को काट देगा.’
अपनी रिपोर्ट पर अडिग हैं शुक्ला
करन थापर को दिए एक इंटरव्यू में शुक्ला ने कहा कि वह अपनी रिपोर्ट के साथ खड़े हैं. उन्होंने कहा कि उनके सूत्रों को पूरा यकीन है कि चीनियों ने कैलाश रेंज पर ब्लैक टॉप और हेलमेट पर फिर से कब्जा कर लिया है और उनके सूत्रों ने उन्हें विशिष्ट विवरण दिया है.’
सेना के इस बयान पर कि लेख अशुद्धियों और गलत सूचनाओं से भरा हुआ है, शुक्ला ने कहा कि उनके बयान में केवल कहा गया कि अशुद्धि है, लेकिन एक भी उदाहरण नहीं दिया गया.
सेना द्वारा इनकार किए जाने पर कि दोनों पक्षों ने उन क्षेत्रों पर कब्जा करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया है जहां से पीछे हटना शुरू किया गया था, शुक्ला कहते हैं कि पिछले साल भी, जब चीनी पूर्वी लद्दाख में भारतीय क्षेत्र में विभिन्न बिंदुओं पर अतिक्रमण कर रहे थे तब भी सेना और रक्षा मंत्रालय की शुरुआती प्रतिक्रिया चुप्पी साधने और इनकार करने की थी.
भारत ने यथास्थिति में एकतरफा बदलाव अस्वीकार्य बताया, चीन ने कहा- स्वीकार्य समाधान खोजने को तैयार
भारत ने चीन को स्पष्ट संदेश दिया कि पूर्वी लद्दाख में मौजूदा स्थिति के लंबे समय तक बने रहने के कारण द्विपक्षीय संबंध स्पष्ट रूप से ‘नकारात्मक तरीके’ से प्रभावित हो रहे हैं, जिसके बाद चीन ने गुरुवार को कहा कि वह उन मामलों का ‘आपस में स्वीकार्य समाधान’ खोजने के लिए तैयार है, जिन्हें वार्ता के जरिये ‘तुरंत सुलझाए’ जाने की आवश्यकता है.
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने दुशांबे में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के एक सम्मेलन के इतर एक घंटे तक चली बैठक के दौरान अपने चीनी समकक्ष वांग यी से कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर यथास्थिति में कोई भी एकतरफा बदलाव भारत को ‘स्वीकार्य नहीं’ है और पूर्वी लद्दाख में शांति की पूर्ण बहाली के बाद ही संबंध समग्र रूप से विकसित हो सकते हैं.
ताजिकिस्तान की राजधानी में यह बैठक ऐसे समय में हुई है, जब पूर्वी लद्दाख में टकराव के शेष बिंदुओं पर दोनों सेनाओं के बीच बलों को पीछे हटाने की प्रक्रिया में गतिरोध बना हुआ है.
इससे पहले पिछले साल मई के बाद से जारी गतिरोध को सुलझाने के लिए की गई सैन्य एवं राजनीतिक वार्ताओं के बाद फरवरी में पैंगोंग झील क्षेत्रों से दोनों सेनाओं ने अपने हथियार एवं बल पीछे हटा लिए थे.
चीन के विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को अपनी वेबसाइट पर जयशंकर और वांग के बीच हुई वार्ता के संबंध में पोस्ट किए गए बयान में बताया कि मंत्री ने कहा कि भारत और चीन के संबंध ‘निचले स्तर पर’ बने हुए हैं, जबकि गलवान घाटी एवं पैंगोंग झील से बलों की वापसी के बाद सीमा पर हालात ‘आमतौर पर सुधर’ रहे हैं. उन्होंने कहा कि इसके बावजूद चीन और भारत के संबंध अब भी ‘निचले स्तर’ पर हैं, जो ‘किसी के हित’ में नहीं है.
चीन ने अपने पुराने रुख को दोहराया कि वह अपने देश से लगी भारत की सीमा पर स्थिति के लिए जिम्मेदार नहीं है.
वांग ने कहा, ‘चीन उन मामलों का आपस में स्वीकार्य समाधान खोजने के लिए तैयार है, जिन्हें भारतीय पक्ष के साथ वार्ता एवं विचार-विमर्श के जरिये तत्काल सुलझाए जाने की आवश्यकता है.’
चीन ने गलवान घाटी और पैंगोंग त्सो से अपने सैनिकों को पीछे हटा लिया है, लेकिन पूर्वी लद्दाख में हॉट स्प्रिंग्स, गोगरा और डेपसांग जैसे टकराव के अन्य क्षेत्रों से बलों को हटाने की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है.
जयशंकर ने वांग के साथ बैठक में स्पष्ट रूप से कहा कि पूर्वी लद्दाख में मौजूदा स्थिति के लंबा खिंचने से द्विपक्षीय संबंधों पर स्पष्ट रूप से ‘नकारात्मक असर’ पड़ रहा है.
उन्होंने कहा कि फरवरी में पैंगोंग झील क्षेत्रों से बलों को पीछे हटाए जाने के बाद से चीनी पक्ष की ओर से स्थिति को सुधारने में कोई प्रगति नहीं हुई है.
जयशंकर ने वांग से कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर यथास्थिति में कोई भी एकतरफा बदलाव भारत को ‘स्वीकार्य नहीं’ है और पूर्वी लद्दाख में शांति की पूर्ण बहाली के बाद ही संबंध समग्र रूप से विकसित हो सकते हैं.
चीनी विदेश मंत्रालय के बयान में बताया गया कि वांग ने ‘तत्काल समाधान की आवश्यकता वाले मामलों’ के आपस में स्वीकार्य समाधान के लिए वार्ता करने पर सहमति जताई और कहा कि दोनों पक्षों को सीमा संबंधी मामले को द्विपक्षीय संबंधों में उचित स्थान पर रखना चाहिए और द्विपक्षीय सहयोग के सकारात्मक पहलुओं को विस्तार देकर वार्ता के जरिये मतभेदों के समाधान के अनुकूल माहौल पैदा करना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘बलों के पीछे हटने के कारण मिली उपलब्धियों को आगे बढ़ाना, दोनों पक्षों के बीच बनी सर्वसम्मति एवं समझौते का सख्ती से पालन करना, संवेदनशील विवादास्पद क्षेत्रों में कोई एकतरफा कदम उठाने से बचना और गलतफहमी के कारण पैदा हुए हालत को फिर से पैदा होने से रोकना महत्वपूर्ण है.’
वांग ने कहा, ‘हमें दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, हमें आपात प्रबंधन से सामान्य सीमा प्रबंधन एवं नियंत्रण तंत्र में स्थानांतरण की आवश्यकता है और हमें सीमा संबंधी घटनाओं को द्विपक्षीय संबंधों में अनावश्यक व्यवधान पैदा करने से रोकने की आवश्यकता है.’
उन्होंने कहा, ‘चीन-भारत संबंधों पर चीन के रणनीतिक रुख में कोई बदलाव नहीं हुआ है. चीन-भारत संबंध एक-दूसरे के लिए खतरा नहीं, बल्कि एक-दूसरे के विकास का अवसर होने चाहिए. दोनों देश साझेदार हैं, वे प्रतिद्वंद्वी और दुश्मन नहीं हैं.’
वांग ने कहा, ‘चीन-भारत संबंधों के सिद्धांत संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति आपसी सम्मान, गैर-आक्रामकता, एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना और एक दूसरे के हितों के प्रति आपसी सम्मान पर आधारित होने चाहिए.’
वांग ने कहा कि चीन और भारत आज अपने-अपने क्षेत्रों और बड़े पैमाने पर दुनिया में शांति और समृद्धि के लिए अधिक महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभा रहे हैं. उन्होंने कहा कि हमें अपने साझा रणनीतिक हितों पर अधिक ध्यान देना चाहिए और दोनों देशों के लोगों को अधिक लाभ पहुंचाना चाहिए.
सितंबर 2020 में मास्को में हुई अपनी पिछली बैठक को याद करते हुए जयशंकर ने उस समय हुए समझौते का पालन करने और बलों की वापसी की प्रक्रिया को पूरा करने तथा पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर शेष मुद्दों को जल्द से जल्द हल करने की आवश्यकता पर जोर दिया.
सैन्य अधिकारियों के अनुसार, वर्तमान में संवेदनशील क्षेत्र में हर पक्ष के एलएसी के पास लगभग 50,000 से 60,000 सैनिक तैनात हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)