हरियाणाः क़रीब 100 किसानों के ख़िलाफ़ राजद्रोह का मुक़दमा, पांच गिरफ़्तार

बीते 11 जुलाई को हरियाणा विधानसभा उपाध्यक्ष रणबीर सिंह गंगवा भाजपा के ख़िलाफ़ सिरसा में हुआ किसानों का प्रदर्शन हिंसक हो गया था, जिसके बाद किसानों पर राजद्रोह के तहत कार्रवाई की गई है. संयुक्त किसान मोर्चा का कहना है कि ये आरोप ग़लत हैं और हरियाणा की किसान विरोधी सरकार के निर्देश पर दर्ज किए गए हैं. किसान नेताओं का कहना है कि आंदोलन को बदनाम करने के लिए हमारे राजनीतिक विरोधियों द्वारा कुछ अराजक तत्वों का सहयोग लिया गया और यही तत्व 11 जुलाई को हुई हिंसा के पीछे हैं.

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(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

बीते 11 जुलाई को हरियाणा विधानसभा उपाध्यक्ष रणबीर सिंह गंगवा भाजपा के ख़िलाफ़ सिरसा में हुआ किसानों का प्रदर्शन हिंसक हो गया था, जिसके बाद किसानों पर राजद्रोह के तहत कार्रवाई की गई है. संयुक्त किसान मोर्चा का कहना है कि ये आरोप ग़लत हैं और हरियाणा की किसान विरोधी सरकार के निर्देश पर दर्ज किए गए हैं. किसान नेताओं का कहना है कि आंदोलन को बदनाम करने के लिए हमारे राजनीतिक विरोधियों द्वारा कुछ अराजक तत्वों का सहयोग लिया गया और यही तत्व 11 जुलाई को हुई हिंसा के पीछे हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

चंडीगढ़ः नए कृषि कानूनों के विरोध में बीते आठ महीनों से प्रदर्शन कर रहे किसानों के खिलाफ पहली बार राजद्रोह का मामला दर्ज करते हुए हरियाणा पुलिस ने गुरुवार को छापेमारी में पांच किसानों को गिरफ्तार किया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, किसान नेताओं का कहना है कि उन्हें 13 जुलाई को पता चला कि लगभग 100 किसानों पर 11 जुलाई को सिरसा में हरियाणा विधानसभा के उपाध्यक्ष रणबीर सिंह गंगवा के खिलाफ विरोध करने के आरोप में राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया है.

एफआईआर में सिर्फ दो लोगों हरियाणा किसान मोर्चा के नेता प्रह्लाद सिंह भारुखेड़ा और 70 साल के हरचरण सिंह पंजुआना का नाम शामिल हैं, जो सिरसा में किसान आंदोलन का चेहरा हैं. पंजुआना सात महीने से दिल्ली जाने वाले प्रदर्शनकारियों के लिए सिरसा में लंगर चला रहे हैं.

इनके खिलाफ आईपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह), 307 (हत्या के प्रयास) और 120बी (आपराधिक साजिश रचने) के तहत मामला दर्ज किया गया.

रिपोर्ट के अनुसार, इससे पहले कि किसानों को कुछ पता चलता, पुलिस ने गुरुवार तड़के लगभग चार बजे सिरसा जिले में इन किसानों में से पांच के घरों पर छापेमारी की. सुबह नौ बजे तक पांचों को अदालत के समक्ष पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

बाद में किसानों ने सिरसा के एसपी ऑफिस के सामने प्रदर्शन किया.

भारुखेड़ा ने कहा, ‘गुरुवार तड़के पुलिसकर्मियों ने कुछ किसानों के घरों में दीवार फांदकर घुसे, जैसे कि वे आतंकवादी हों’ उन्होंने राजद्रोह का मामला दर्ज होने पर कहा, ‘ऐसा हमारी आवाज दबाने के लिए किया गया है, लेकिन ऐसा नहीं होगा.’

सिरसा के एसपी अर्पित जैन का कहना है, ‘उन्होंने तय प्रक्रिया का पालन किया है और 11 जुलाई की घटना के वीडियो फुटेज का विश्लेषण करने और इनकी पहचान के बाद इन पांचों को गिरफ्तार किया है.’

पुलिस का कहना है कि प्रदर्शनस्थल के पास मौजूद और लोगों की पहचान की गई है और उन्हें भी गिरफ्तार किया जा सकता है.

जैन ने कहा, ‘हमारे पास 11 जुलाई की घटना की क्लिपिंग हैं. हमारे वाहनों पर पथराव किया गया. पत्थर किसी के सिर पर लग भी सकता था और उसकी मौत भी हो सकती थी. एक पुलिसकर्मी को वाहन ने टक्कर मार दी.’

बता दें कि गिरफ्तार किए गए किसानों में फग्गू गांव में छह से सात एकड़ जमीन के किसान बाल्कर (26 वर्ष) और बलकोर (35 वर्ष) भी शामिल हैं.

बाल्कर के चाचा राजा सिंह ने कहा, ‘तड़के 4:30 बजे 15 से 20 पुलिसकर्मी दीवार फांदकर हमारे घर में घुसे. इनमें से कई पुलिसकर्मी सिविल ड्रेस में थे.’

सिंह ने इनकार किया है 11 जुलाई की हिंसा में इन किसानों का हाथ था. हमारे नेताओं ने हमें बताया था कि शांतिपूर्णढंग से प्रदर्शन करना है.

बल्कोर ने इससे पहले कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली सीमा पर आंदोलन में भी हिस्सा लिया था.

उनके भाई संदीप सिंह का कहना है, ‘हाथ में लगी चोट की वजह से बलकोर की फोटो स्थानीय मीडिया में प्रकाशित हुई थी और उनकी गिरफ्तारी का यही कारण हो सकता है. वह पथराव की किसी भी घटना में शामिल नहीं थे.’

किसान हरचरण सिंह के छोटे बेटे गुरविंदर सिंह का कहना है कि उनका परिवार दिल्ली जाकर आंदोलन में हिस्सा लेने वालों के लिए एनएच-9 पर लंगर चलाता है.

पिता के ऊपर लगाए गए राजद्रोह के मामले को आधारहीन बताते हुए गुरविंदर कहते हैं, ‘मेरे पिता छड़ी की मदद से चलते हैं. उन्होंने 11 जुलाई को किसी तरह की हिंसा नहीं की और न ही किसी तरह का भड़काऊ भाषण दिया.’

किसान नेता प्रह्लाद सिंह भारुखेड़ा (42 वर्ष) बीते 21 सालों से किसान आंदोलनों में सक्रिय रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘मैंने किसानों के लिए लड़ाई में दो सरकारी नौकरियां तक ठुकरा दी.’

संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) का कहना है कि ये आरोप गलत हैं और हरियाणा की किसान विरोधी सरकार के निर्देश पर दर्ज किए गए हैं. मोर्चा इन आरोपों का सामना कर रहे सभी किसानों की मदद करेगी.

गिरफ्तार किए गए प्रदर्शनकारियों की रिहाई की मांग करते हुए किसान एसपी जैन के ऑफिस के सामने एकदिवसीय धरने पर बैठे.

भारुखेड़ा ने ऐलान किया कि अगर किसानों को रिहा नहीं किया गया और उन पर लगाए गए राजद्रोह के मामले नहीं हटाए गए तो वे शुक्रवार को सिरसा जिले में सभी गांवों में सत्तारूढ़ भाजपा-जेजेपी के नेताओं के पुतले फूंकेंगे और शनिवार को एसपी जैन के ऑफिस का घेराव करेंगे.

किसान नेताओं का कहना है कि आंदोलन को बदनाम करने के लिए हमारे राजनीतिक विरोधियों द्वारा कुछ अराजक तत्वों का सहयोग लिया गया और यही तत्व 11 जुलाई को हुई हिंसा के पीछे हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, 11 जुलाई को गंगवा भाजपा के सिरसा में जिला कार्यकारी की बैठक से बाहर आ रहे थे कि बाहर धरना दे रहे किसानों ने उनकी कार को रोकने की कोशिश की. इस घटना के वीडियो में गंगवा की कार पर पथराव होते देखा जा सकता है, जिससे उनकी कार की विंडस्क्रीन टूट जाती है. पुलिस उन्हें सही तरीके से बाहर निकालने के लिए उनकी कार को घेर लेती हैं. इस घटना के दिन ही चार लोगों को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन किसानों द्वारा सड़कें अवरुद्ध करने के बाद उसी शाम इन्हें रिहा कर दिया गया था.

राज्य सरकार ने इस घटना को गंभीरता लेते हुए सिरसा के जिला पुलिस प्रमुख भूपेंदर सिंह की जगह जैन को नियुक्त किया था और एक इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी को सस्पेंड कर दिया था.

सिरसा जिला कल्याण अधिकारी सुशील कुमार जो 11 जुलाई को ड्यूटी मजिस्ट्रेट के तौर पर घटना के समय घटनास्थल पर मौजूद थे, उनकी शिकायत के आधार पर किसानों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है.

एफआईआर में कहा गया है, ‘हरचरण सिंह पंजुआना, प्रह्लाद सिंह भारुखेड़ा और 90 से 100 अज्ञात असामाजिक तत्वों ने ने सरकारी काम में बाधा डालकर, जनप्रतिनिधियों पर कातिलाना हमला कर और सरकारी संपत्ति को नष्ट कर सरकार के खिलाफ बगावत की.’

कुमार ने किसानों पर नारेबाजी करने का आरोप लगाया. हालांकि, उन्होंने ऐसे किसी नारे का उल्लेख नहीं किया.

गिरफ्तारी के बारे में पूछने पर भाजपा सिरसा के जिला अध्यक्ष आदित्य देवी लाल ने कहा, ‘11 जुलाई को हिंसा में शामिल लोग असामाजिक तत्व थे, न कि किसान.’