ऐसे बच्चों की संख्या सबसे ज़्यादा भारत में है, जिन्हें कोई टीका नहीं लगा हैः यूनिसेफ़

दुनिया भर में कोविड-19 महामारी के बीच यूनिसेफ ने कहा कि भारत में ऐसे बच्चों की संख्या बढ़कर 35 लाख हो गई है, जिन्हें कोई टीका नहीं लगा है. यह 2019 की अपेक्षा इस संख्या में 14 लाख की वृद्धि हुई है. इसके मुताबिक, पिछले 10 वर्षों में किसी भी नियमित टीकाकरण में विफलता के मामले में दक्षिण एशिया सबसे ऊपर रहा और 2020 में ऐसे बच्चों की संख्या क़रीब 44 लाख थी.

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(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

दुनिया भर में कोविड-19 महामारी के बीच यूनिसेफ ने कहा कि भारत में ऐसे बच्चों की संख्या बढ़कर 35 लाख हो गई है, जिन्हें कोई टीका नहीं लगा है. यह 2019 की अपेक्षा इस संख्या में 14 लाख की वृद्धि हुई है. इसके मुताबिक, पिछले 10 वर्षों में किसी भी नियमित टीकाकरण में विफलता के मामले में दक्षिण एशिया सबसे ऊपर रहा और 2020 में ऐसे बच्चों की संख्या क़रीब 44 लाख थी.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: दुनिया भर में कोविड-19 महामारी के बीच यूनिसेफ ने कहा कि ऐसे बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा भारत में है, जिन्हें कोई टीका नहीं लगा है. इसके साथ ही इनकी संख्या बढ़कर 35 लाख हो गई है और 2019 की अपेक्षा इस संख्या में 14 लाख की वृद्धि हुई है.

संयुक्‍त राष्‍ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने एक बयान में कहा कि भारत में 2020 में 30 लाख से अधिक बच्चे ऐसे थे, जिन्हें कोई टीका नहीं लगा. इसमें कहा गया है कि पिछले 10 वर्षों में किसी भी नियमित टीकाकरण में विफलता के मामले में दक्षिण एशिया सबसे ऊपर रहा और 2020 में ऐसे बच्चों की संख्या करीब 44 लाख थी.

बयान के अनुसार, ऐसे 30 लाख से अधिक बच्चे भारत में थे, जिन्हें कोई खुराक नहीं मिली थी. यूनिसेफ ने कहा कि आंकड़ों से पता चलता है कि दुनिया के कुल मामलों में से 62 प्रतिशत सिर्फ 10 देशों में हैं, जिनमें बच्चों को कोई टीका नहीं मिला या उन्हें विभिन्न टीकों की पूरी खुराक नहीं मिली.

बच्चों के वैश्विक निकाय ने कहा कि भारत कोविड-19 से भी काफी प्रभावित रहा है. उसने कहा कि भारत में असुरक्षित बच्चों की संख्या 35 लाख थी, जो दुनिया में सबसे ज्यादा थी. 2019 में ऐसे असुरक्षित बच्चों की संख्या 21 लाख थी.

असुरक्षित बच्चे वे हैं, जिन्हें कोई टीका नहीं लगा है या जिन्हें विभिन्न टीकों की सभी खुराकें नहीं मिली हैं. बयान में कहा गया है कि 2020 में पाकिस्तान में 13 लाख असुरक्षित बच्चे थे.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, बयान में कहा गया है, ‘इनमें से अधिकांश बच्चों को इस साल के दौरान एक भी टीका नहीं मिला, यह एक संकेत है कि वैक्सीन तक पहुंच के लिए महामारी से संबंधित व्यवधानों में सबसे बड़ी कीमत बच्चे चुका रहे हैं.’

यूनिसेफ ने कहा कि दक्षिण एशिया के अधिकांश देशों में बच्चों के टीकाकरण दरों में गिरावट की गई है. नेपाल में डिप्थीरिया-टेटनस-पर्टुसिस वैक्सीन की दरों में 9 प्रतिशत की कमी आई है, पाकिस्तान में 7 प्रतिशत, भारत में 6 प्रतिशत, श्रीलंका में 3 प्रतिशत और भूटान और अफगानिस्तान में 2 प्रतिशत गिरावट आई है.

बयान में कहा गया है, ‘हालांकि, साल के अंत में कई देशों में मजबूत रिकवरी प्रयासों ने समग्र गिरावट के प्रभावों को कम करने में मदद की. उदाहरण के लिए भारत में दूरदराज के इलाकों में टीकाकरण अभियान छूटे हुए बच्चों तक पहुंचने में मदद कर रहे हैं.’

यूनिसेफ इंडिया के प्रभारी अधिकारी और उप प्रतिनिधि कार्यक्रम यासुमासा किमुरा ने कहा, ‘जबकि स्वास्थ्य प्रणाली कोविड-19 महामारी के कारण तनावपूर्ण है. हमें महामारी के खिलाफ अपनी लड़ाई में सतर्क रहना चाहिए ताकि अन्य रोकथाम योग्य बीमारियों के खिलाफ दशकों के प्रयास से प्राप्त किए गए लाभ में हस्तक्षेप न हो सके. हम नियमित टीकाकरण और टीके से रोकी जा सकने वाली बीमारियों से बच्चों के स्वास्थ्य को खतरे में डालने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘यूनिसेफ भारत सरकार के साथ भागीदारी कर रहा है, ताकि छूटे हुए बच्चों की पहचान और टीकाकरण के लिए विभिन्न रणनीतियों की योजना, कार्यान्वयन और निगरानी के माध्यम से आवश्यक स्वास्थ्य और टीकाकरण सेवाओं की निरंतरता का समर्थन किया जा सके. हम समुदायों के बीच अपने बच्चों का टीकाकरण करने और नियमित टीकाकरण के लिए कोल्ड चेन को मजबूत करने के लिए जागरूकता और विश्वास पैदा करने का भी समर्थन करते हैं.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)