दिल्ली के ड्रग कंट्रोल विभाग द्वारा भाजपा सांसद गौतम गंभीर की फाउंडेशन और आम आदमी पार्टी के दो विधायकों के ख़िलाफ़ कोरोना की दवा फेवीपिराविर व मेडिकल ऑक्सीजन की ग़ैर क़ानूनी तरीके से खरीद, भंडारण तथा वितरण के आरोप में अदालत में तीन अलग-अलग शिकायतें दर्ज कराई हैं.
नई दिल्लीः दिल्ली के ड्रग कंट्रोल विभाग ने पूर्व क्रिकेटर और भाजपा सांसद गौतम गंभीर के फाउंडेशन, आम आदमी पार्टी के विधायक प्रवीण कुमार और इमरान हुसैन के खिलाफ कोरोना मरीजों को दी जाने वाली दवा फेवीपिराविर और मेडिकल ऑक्सीजन की गैरकानूनी तरीके से खरीद, भंडारण और वितरण के आरोप में गुरुवार को अदालत में तीन अलग-अलग शिकायतें दर्ज कराई हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, गौतम गंभीर फाउंडेशन, इसके ट्रस्टी और सीईओ के खिलाफ ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 की धारा 27 (बी) (ii) के साथ धारा 18 (सी) का कथित रूप से उल्लंघन करने के लिए आठ जुलाई को शिकायत दर्ज कराई गई थी.
इन शिकायतों को मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट पृथु राज की अदालत के समक्ष दायर किया गया.
मेडिकल ऑक्सीजन के वितरण को लेकर इसी तरह की शिकायतें आम आदमी पार्टी के विधायक इमरान हुसैन और प्रवीण कुमार के खिलाफ भी दर्ज की गई.
ड्रग कंट्रोलर विभाग ने अपने आदेश में कानून के कथित उल्लंघन को लेकर 14 से 23 जुलाई तक फाउंडेशन को दवा बेचने वाले डीलर्स के लाइसेंस भी रद्द कर दिए हैं.
धारा 18 (सी) जिसके तहत तीनों के खिलाफ शिकायतें दर्ज की गई हैं. दरअसल यह धारा लाइसेंस के अभाव में किसी भी दवा के उत्पादन और बिक्री पर रोक लगाती है. इसके उल्लंघ पर न्यूनतम तीन साल की कैद हो सकती है.
डॉक्टर दीपक सिंह द्वारा दायर की गई याचिका में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेशों के अनुरूप विभाग ने कानूनों के कथित उल्लंघन के आरोप पर शिकायत की जांच की थी.
आरोप थे कि एक मेडिकल माफिया-राजनीतिक गठजोड़ कोरोना की दूसरी लहर के दौरान दवाइयों के अवैध वितरण में शामिल रहा है.
सहायक ड्रग कंट्रोलर केआर चावला ने इस मामले पर किसी भी तरह की जानकारी उजागर करने से मना करने पर कहा, ‘यह बहुत ही संवेदनशील मामला है.’
औषधि नियंत्रण विभाग ने तीन जून को अदालत को बताया था कि गौतम गंभीर फाउंडेशन और आम आदमी पार्टी के विधायकों द्वारा कुछ अपराध किए गए हैं और उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.
जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस जसमीत सिंह की पीठ ने कहा, ‘हम इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना चाहते हैं. ऐसा नहीं होना चाहिए कि लोग सिर्फ इसलिए जमाखोरी करते हैं क्योंकि उनके पास संसाधन है और कहते हैं कि इसे वे समाज के एक विशेष वर्ग में वितरित करने जा रहे हैं फिर चाहे वे मेरे निर्वाचन क्षेत्र में हों या इसलिए कि मैं लोकप्रियता हासिल करना चाहता हूं. मैं अपने अगले चुनाव की तैयारी करना चाहता हूं. यह मानदंड नहीं होना चाहिए. हम इस पर अंकुश लगाना चाहते हैं और चाहते हैं कि आप कार्रवाई करें ताकि यह दूसरों के लिए एक सबक बन जाए कि वे फिर से इस तरह की गतिविधियों में शामिल नहीं हो.’
अदालत ने यह भी कहा था कि हो सकता है कि गंभीर ने जन भावना के इरादे से काम किया लेकिन उन्हें इसके नफा-नुकसान देखने चाहिए थे.
अदालत ने कहा, ‘आप बेशक अपने निर्वाचन क्षेत्र में लोगों की मदद करने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन किस कीमत पर? उन लोगों की कीमत पर जिन्हें इसकी आवश्यकता थी. आपके बेशक परोपकारी काम किया लेकिन इससे बाजार में कमी भी हुई. जब जरूरतमंद मरीजों को इन दवाओं की जरूरत थी, उन्हें ये नहीं मिल सकी.’
विभाग ने पीठ को बताया कि यह स्थापित हो गया है कि उनके (गंभीर) फाउंडेशन के पास दवाओं की खरीद, भंडारण या वितरण के लिए कानून द्वारा आवश्यक किसी भी दवा का लाइसेंस नहीं है.
अदालत ने मई में गंभीर को क्लीन चिट देने के लिए ड्रग्स कंट्रोल विभाग को फटकार लगाई थी. अदालत ने कहा था कि विभाग इसकी उचित जांच नहीं कर सका कि आखिर कैसे गंभीर का फाउंडेशन एकमुश्त कोविड-19 दवाओं को खरीदने में सक्षम रहा. अदालत ने विभाग से इस पर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को भी कहा है.
वहीं, गौतम गंभीर ने 14 मई को अपने बयान में दिल्ली पुलिस को बताया था कि गौतम गंभीर फाउंडेशन ने 22 अप्रैल से सात मई तक जागृति एन्क्लेव में निशुल्क मेडिकल कैंप का आयोजन किया था, जिसके जरिए कोरोना से जूझ रहे लोगों को सहायता मुहैया कराई गई.
मालूम हो कि कोरोना वायरस की खतरनाक दूसरी लहर के बीच दिल्ली में ‘फैबीफ्लू’ नाम की दवाई की किल्लत होने पर पूर्वी दिल्ली से भाजपा सांसद गौतम गंभीर ने 21 अप्रैल को घोषणा की थी कि उनके संसदीय क्षेत्र के लोग उनके दफ़्तर से निशुल्क यह दवा ले सकते हैं.
फैबीफ्लू एक एंटीवायरल दवा है, जिसका इस्तेमाल कोरोना संक्रमण के हल्के और मध्यम लक्षणों वाले मरीजों के उपचार में किया जा रहा है.
21 अप्रैल को गंभीर की घोषणा पर सोशल मीडिया सहित राजनीतिक हलकों में हुए विरोध और दवा की जमाखोरी के आरोपों के बाद अगले दिन गौतम गंभीर ने बयान दिया था कि दवा की कुछ सौ स्ट्रिप्स लेकर गरीबों की मदद करने को जमाखोरी नहीं कहते हैं.
उस समयद वायर ने इस बारे में एम्स दिल्ली के रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. हरजीत सिंह भट्टी से बात की थी, जिन्होंने पूर्व क्रिकेटर के इस कृत्य को गैर क़ानूनी बताया था.
विभाग ने अदालत को यह भी बताया कि आप विधायक कुमार भी मेडिकल ऑक्सीजन को अनाधिकृत तरीके से खरीदने, उसके भंडारण में शामिल था.
कुमार ने लाजपत नगर में चार मई से 19 मई तक अस्थाई ऑक्सीजन रिफिलिंग इकाई का आयोजन किया था और पंजाब के भठिंडा में सिलेंडरों की रिफिलिंग की थी.
मेडिकल ऑक्सीजन के एकतरफा वितरण को लेकर इसी तरह की एक शिकायत विधायक हुसैन के खिलाफ भी की गई.
हालांकि, हाईकोर्ट ने 13 मई को उनके खिलाफ याचिका खारिज कर दी थी. बाद में अदालत ने बताया था कि कानून के तहत मेडिकल ऑक्सीजन के दवा होने की वजह से आवश्यक लाइसेंस के बिना उसे किसी भी व्यक्ति द्वारा बिक्री, भंडारण या वितरण के उद्देश्य से खरीदा नहीं जा सकता.