एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में यूएपीए के तहत पिछले साल गिरफ़्तार किए गए आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी की बीते पांच जुलाई को मुंबई के एक अस्पताल में मौत हो गई थी. संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत मैरी लॉलर ने कहा कि आरोपी के तौर पर हिरासत में उन्हें उनके अधिकारों से वंचित किया गया.
संयुक्त राष्ट्र/जिनेवा: संयुक्त राष्ट्र की एक मानवाधिकार विशेषज्ञ ने कहा कि हिरासत में आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी की मौत के बारे में जानकर उन्हें सदमा लगा. उन्होंने कहा कि मानवाधिकार के रक्षक को उसके अधिकारों से वंचित करने का कोई कारण नहीं था और उनकी मौत भारत के मानवाधिकार रिकॉर्ड पर हमेशा एक धब्बा रहेगी.
एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम कानून (यूएपीए) के तहत पिछले साल गिरफ्तार किए गए स्वामी की बीते पांच जुलाई को मुंबई के एक अस्पताल में मौत हो गई. स्वामी 84 साल के थे. कई बीमारियों से पीड़ित स्वामी हिरासत में कोरोना वायरस से संक्रमित भी पाए गए थे.
संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत मैरी लॉलर ने बृहस्पतिवार को एक बयान में कहा कि स्टेन स्वामी का मामला सभी देशों को याद दिलाता है कि मानवाधिकार के रक्षकों और बिना किसी वैध आधार के हिरासत में लिए गए लोगों को रिहा किया जाना चाहिए.
लॉलर ने कहा कि चार दशक से ज्यादा समय से मानवाधिकार और सामाजिक न्याय के जाने माने पैरोकार कैथोलिक पादरी स्टेन स्वामी की हिरासत में मौत भारत के मानवाधिकार रिकॉर्ड पर हमेशा एक धब्बा रहेगी.
उन्होंने कहा, ‘किसी मानवाधिकार रक्षक को आतंकवादी के रूप में बदनाम करने का कोई बहाना नहीं हो सकता और कोई कारण नहीं है कि उसकी मौत उस तरह हो जिस तरह फादर स्वामी की हुई. आरोपी के तौर पर हिरासत में उन्हें उनके अधिकारों से वंचित किया गया.’
मैरी लॉलर ने कहा, ‘हम जानते हैं कि पर्यावरण, भूमि और आदिवासी लोगों के अधिकारों से जुड़े मुद्दों पर काम करने वाले मानवाधिकार पैरोकार निशाना बनाए जाने के लिए बेहद कमजोर हालात का सामना करते हैं.’
लॉलर ने कहा, ‘फादर स्वामी के निधन के बारे में जानकर मुझे सदमा लगा. उन्होंने अपना पूरा जीवन मूलनिवासियों और आदिवासी अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा में समर्पित कर दिया. स्वास्थ्य आधार पर कई बार उन्हें रिहा करने का अनुरोध किया जा चुका था.’
लॉलर ने कहा कि नवंबर 2020 में संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों ने भारतीय अधिकारियों को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों को लेकर प्रतिबद्धता की याद दिलायी थी.
उन्होंने सवाल किया, ‘मैं फिर से पूछती हूं कि उन्हें क्यों नहीं रिहा किया गया और हिरासत में मरने के लिए क्यों छोड़ दिया गया?’
वहीं, भारत ने स्वामी के मामले से निपटने को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचनाओं को खारिज कर दिया है. विदेश मंत्रालय ने कहा है कि संबंधित अधिकारी कानून के उल्लंघन के खिलाफ कदम उठाते हैं और कानूनी अधिकारों को नहीं रोकते हैं. वह विचाराधीन कैदी थे.
विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत अपने सभी नागरिकों के मानवाधिकारों के संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए संकल्पबद्ध है और देश की लोकतांत्रिक नीति स्वतंत्र न्यायपालिका एवं राष्ट्रीय तथा कई राज्य स्तरीय मानवाधिकार आयोगों के अनुरूप है.
स्वामी की मौत के बाद विदेश मंत्रालय ने नई दिल्ली में बयान जारी कर कहा, ‘राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने कानूनी प्रक्रिया के तहत फादर स्टेन स्वामी को गिरफ्तार किया और हिरासत में रखा, क्योंकि उनके खिलाफ विशिष्ट आरोप थे, अदालतों से उनकी जमानत याचिकाएं खारिज हुईं. भारत में अधिकारी कानून के उल्लंघन के खिलाफ कदम उठाते हैं न कि किसी के कानूनी अधिकारों के खिलाफ. इस तरह की सारी कार्रवाई कानून के अनुसार हैं.’
बयान में कहा उन्हें एक निजी अस्पताल में, जहां वह 28 मई से भर्ती थे, सभी संभव चिकित्सीय मदद दी जा रही थी. इसमें कहा गया कि स्वामी के स्वास्थ्य एवं उपचार पर अदालतों की नजर थी और स्वास्थ्य खराब होने के चलते पांच जुलाई को उनकी मृत्यु हो गई.
मालूम हो कि एल्गार परिषद मामले में एनआईए द्वारा गिरफ्तार किए जाने वाले स्टेन स्वामी सबसे वरिष्ठ और 16वें व्यक्ति थे. स्टेन स्वामी अक्टूबर 2020 से जेल में बंद थे.
वह पार्किंसंस बीमारी से जूझ रहे थे और उन्हें गिलास से पानी पीने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था. इसके बावजूद स्टेन स्वामी को चिकित्सा आधार पर कई बार अनुरोध के बाद भी जमानत नहीं दी गई.
इस साल मई में स्वामी ने उच्च न्यायालय की अवकाश पीठ को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से बताया था कि तलोजा जेल में उनका स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता ही रहा है.
उन्होंने उच्च न्यायालय से उस वक्त अंतरिम जमानत देने का अनुरोध किया था और कहा था कि अगर चीजें वहां ऐसी ही चलती रहीं तो वह ‘बहुत जल्द मर जाएंगे.’ वे अपने आखिरी समय में रांची में अपने लोगों के साथ रहना चाहते थे.
स्टेन स्वामी की मौत को लेकर उनके करीबियों के अलावा कई राजनीतिक दलों ने भी गहरी नाराजगी जताई थी और उनकी मौत के लिए केंद्र सरकार एवं जांच एजेंसियों को जिम्मेदार ठहराया था.
एल्गार परिषद मामला पुणे में 31 दिसंबर 2017 को आयोजित संगोष्ठी में कथित भड़काऊ भाषण से जुड़ा है. पुलिस का दावा है कि इस भाषण की वजह से अगले दिन शहर के बाहरी इलाके में स्थित कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई. पुलिस का दावा है कि इस संगोष्ठी का आयोजन करने वालों का संबंध माओवादियों के साथ था.
(समाचार एजेंसी पीटीआई से इनपुट के साथ)