पेगासस हमला: एल्गार परिषद मामले में पहले से बिछाया गया था स्पायवेयर निगरानी का जाल

द वायर और सहयोगी मीडिया संगठनों द्वारा हज़ारों ऐसे फोन नंबरों, जिनकी पेगासस स्पायवेयर द्वारा निगरानी की योजना बनाई गई थी, की समीक्षा के बाद सामने आया है कि इनमें कम से कम नौ नंबर उन आठ कार्यकर्ताओं, वकीलों और शिक्षाविदों के हैं, जिन्हें जून 2018 और अक्टूबर 2020 के बीच एल्गार परिषद मामले में  कथित भूमिका के लिए गिरफ़्तार किया गया था.

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भीमा कोरेगांव और एल्गार परिषद मामले में गिरफ़्तार कार्यकर्ता. (फोटो: द वायर)

द वायर और सहयोगी मीडिया संगठनों द्वारा हज़ारों ऐसे फोन नंबरों, जिनकी पेगासस स्पायवेयर द्वारा निगरानी की योजना बनाई गई थी, की समीक्षा के बाद सामने आया है कि इनमें कम से कम नौ नंबर उन आठ कार्यकर्ताओं, वकीलों और शिक्षाविदों के हैं, जिन्हें जून 2018 और अक्टूबर 2020 के बीच एल्गार परिषद मामले में  कथित भूमिका के लिए गिरफ़्तार किया गया था.

(बाएं से) सुरेंद्र गाडलिंग, हेनी बाबू, सोनी सोरी और रोना विल्सन. (फोटो: फेसबुक/यूट्यूब/सोशल मीडिया)

मुंबई: साल 2017 के मध्य में दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के एसोसिएट प्रोफेसर हेनी बाबू एमटी अपने परिवार के साथ केरल के कोल्लम में एक ट्रिप पर गए थे.

उनकी पत्नी जेनी रोवेना, जो दिल्ली विश्वविद्यालय के ही मिरांडा हाउस कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं, ने अपना बचपन यहीं बिताया था. रोवेना याद करते हुए कहती हैं, ‘वो एक लंबी, फुरसत वाली यात्रा थी.’

यहां हेनी बाबू और रोवेना दिल्ली के अपने पुराने दोस्त रोना विल्सन से भी मिले, जो कोल्लम के रहने वाले हैं. रोवेना ने कहा, ‘हम सब एक रिसॉर्ट में गए थे. एक दूसरे से मिलकर अच्छा लगा था. हमने राजनीति से लेकर केरल में हमारे जीवन तक कई चीजों के बारे में बात की.’

लेकिन वे उस समय ये नहीं जानते थे कि उनकी छुट्टियों के दौरान हेनी बाबू और रोना विल्सन के फोन नंबरों को एक अज्ञात भारत-आधारित एजेंसी द्वारा निगरानी के लिए संभावित निशाने के रूप में चुना गया था, जो इजराइल के एनएसओ ग्रुप से जुड़ी हुई थी.

एक साल बाद कैदियों के अधिकारों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता रोना विल्सन को एल्गार परिषद मामले में ‘मुख्य आरोपी’ बताते हुए छह जून, 2018 को गिरफ्तार किया गया था. तब से वे हिरासत में हैं.

बाद में केरल की यह यात्रा राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा हेनी बाबू के साथ पूछताछ का केंद्र बन गई, जो 28 जुलाई, 2020 को उनकी गिरफ्तारी से पहले एक सप्ताह से अधिक समय तक चली थी.

यह जानना संभव नहीं है कि क्या उनके फोन को वास्तव में पेगासस स्पाइवेयर से हैक किया गया था, जो इजराइल के तेल अवीव स्थित एक फर्म का प्रमुख प्रोडक्ट है और यह इसके ऑपरेटरों को यूजर्स के मोबाइल डिवाइस और कार्यों तक अनधिकृत पहुंच प्राप्त करा देता है, वह भी बिना किसी डिजिटल फॉरेंसिक विश्लेषण के.

हेनी बाबू और विल्सन दोनों फिलहाल न्यायिक हिरासत में हैं, उनके फोन जांच एजेंसी ने जब्त कर लिए हैं.

हालांकि, द वायर  और सहयोगी समाचार संगठनों द्वारा हजारों नंबरों, जिनकी निगरानी करने की योजना बनाई गई थी, के रिकॉर्ड की समीक्षा करने के बाद पता चलता है कि कम से कम 9 नंबर उन 8 कार्यकर्ताओं, वकीलों और अकादमिक जगत से जुड़े लोगों के हैं, जिन्हें जून 2018 और अक्टूबर 2020 के बीच एल्गार परिषद मामले में उनकी कथित भूमिका के लिए गिरफ्तार किया गया था.

विल्सन और हेनी बाबू के अलावा निगरानी के लिए संभावित निशाने के रूप में चुने गए अन्य लोगों में अधिकार कार्यकर्ता वर्नोन गोंजाल्विस, अकादमिक और नागरिक स्वतंत्रता कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बडे, सेवानिवृत्त प्रोफेसर शोमा सेन (उनका नंबर पहली बार 2017 में लिया गया है), पत्रकार और अधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा, वकील अरुण फरेरा और अकादमिक एवं कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज शामिल हैं.

2018 के बाद से देश के 16 कार्यकर्ताओं, वकीलों और शिक्षाविदों को इस मामले में गिरफ्तार किया गया है.

उनमें से 83 वर्षीय झारखंड स्थित आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता और जेसुइट पादरी स्टेन स्वामी भी शामिल थे, जिनका बीते पांच जुलाई को मुंबई के अस्पताल में निधन हो गया. तमाम गंभीर बीमारियों के बावजूद उन्हें जमानत नहीं दी गई थी. एनआईए ने उन्हें पिछले साल अक्टूबर में गिरफ्तार किया था, तब से वे जेल में थे.

फ्रांस स्थित मीडिया नॉन प्रॉफिट फॉरबिडेन स्टोरीज और एमनेस्टी इंटरनेशनल की सुरक्षा लैब ने इन दस्तावेजों को प्राप्त किया है, जिसे उन्होंने द वायर  और दुनिया भर के 15 अन्य समाचार संगठनों के साथ एक सहयोगी इन्वेस्टिगेशन और रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट के रूप में साझा किया है.

हमले का स्तर

एल्गार परिषद मामले में सीधे तौर पर आरोपियों के अलावा गिरफ्तार किए गए लोगों के एक दर्जन से अधिक करीबी रिश्तेदार, दोस्त, वकील और सहयोगी इस निगरानी के दायरे में प्रतीत होते हैं.

द वायर  ने इनके नंबर और पहचान की पुष्टि की है. इनमें से अधिकांश से महाराष्ट्र की पुणे पुलिस और बाद में 2018 और 2020 के बीच एनआईए द्वारा पूछताछ की गई है.

लीक हुए रिकॉर्ड में तेलुगू कवि और लेखक वरवरा राव की बेटी पवना, वकील सुरेंद्र गाडलिंग की पत्नी मीनल गाडलिंग, उनके सहयोगी वकील निहालसिंह राठौड़ और जगदीश मेश्राम, उनके एक पूर्व क्लाइंट मारुति कुरवाटकर (जिन्हें गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत कई मामलों में आरोपी बनाया था और वे चार साल से अधिक समय तक जेल में रहे थे तथा बाद में जमानत पर रिहा हुए थे) भारद्वाज की वकील शालिनी गेरा, तेलतुम्बडे के दोस्त जैसन कूपर, केरल के एक अधिकार कार्यकर्ता, नक्सली आंदोलन के विद्वान और बस्तर की वकील बेला भाटिया, सांस्कृतिक अधिकार और जाति-विरोधी कार्यकर्ता सागर गोरखे की पार्टनर रूपाली जाधव, आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता महेश राउत के करीबी सहयोगी और वकील लालसू नागोटी के नंबर भी शामिल हैं.

इस सूची में एल्गार परिषद मामले के एक आरोपी के परिवार के पांच सदस्य भी शामिल हैं. हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि साइबर हमलावर उनके फोन तक पहुंचने में कामयाब रहे या नहीं.

केरल के रहने वाले कूपर, जिन पर कई साल पहले यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया था, ने द वायर  को बताया कि वह जब भी केरल जाते थे तो तेलतुम्बडे से मिलते थे.

उन्होंने कहा, ‘लेकिन मुझे समझ में नहीं आता कि मुझ पर या तेलतुम्बड़े पर निगरानी क्यों रखी जा रही थी. मैं एक कार्यकर्ता हूं, सामाजिक मुद्दों पर काम कर रहा हूं. मेरा काम पूरी तरह से सार्वजनिक है.’

ज्यादातर लोगों की निगरानी के लिए उनके नंबरों को साल 2018 के मध्य में चुना गया था, जो कई महीनों तक जारी रहा. कुछ मामलों में ऐसे लोगों को चुना गया. जो महत्वपूर्ण घटनाओं से संबंधित हैं.

उदाहरण के लिए, डेटा से पता चलता है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जब वरवरा राव को अगस्त 2018 में नजरबंद रखा गया था, उसी समय पवना के नंबर पर निगरानी शुरू की गई थी. बाद में पुणे पुलिस ने राव को हिरासत में ले लिया था. करीब 27 महीने जेल में बिताने के बाद 81 वर्षीय राव को इस साल फरवरी में सशर्त जमानत पर रिहा किया गया था.

भारद्वाज, गोंसाल्वेस, सेन और फरेरा के मामले में डेटा से पता चलता है कि उनके फोन जब्त किए जाने और उन्हें गिरफ्तार किए जाने के महीनों बाद भी लीक हुए डेटा में उनके फोन नंबर दिखाई देते रहे हैं.

उदाहरण के लिए, भारद्वाज को 28 अगस्त, 2018 को नजरबंद किया गया था और अंत में 26 अक्टूबर, 2018 को उन्हें जेल भेज दिया गया. लेकिन लीक हुए डेटा से पता चलता है कि उनकी नजरबंदी और पुणे पुलिस द्वारा उनका नंबर लिए जाने के बाद तक उनकी निगरानी जारी रही.

(फोटो: रॉयटर्स)

दूसरे शब्दों में कहें तो डिजिटल साक्ष्य के रूप में फोन लिए जाने के बाद सील किया जाता है और उसे स्विच ऑन नहीं किया जा सकता है. यहां तक कि एक छोटा-सा बदलाव भी सबूतों के साथ छेड़छाड़ के बराबर माना जाता है.

दिलचस्प बात यह है कि मीनल गाडलिंग का फोन उनके पति की गिरफ्तारी के महीनों बाद निगरानी के लिए चुना गया था. मीनल गृहिणी हैं और कहती हैं कि उन्हें उनके पति की कानूनी और सामाजिक सक्रियता के बारे में पता है, लेकिन उन्होंने कभी उसमें भाग नहीं लिया है.

उन्होंने द वायर  को बताया, ‘मैंने शायद ही कभी सार्वजनिक जीवन में रही हूं. मुझे आश्चर्य है कि आखिर क्यों मुझे क्यों निशाना बनाया गया.’

मीनल के एंड्रॉयड डिवाइस फोन का फॉरेंसिक विश्लेषण अनिर्णायक निकला और यह स्पष्ट नहीं है कि उनके फोन की जासूसी करने का प्रयास सफल रहा या नहीं.

इस महीने के पहले हफ्ते में अमेरिका के मैसाचुसेट्स की डिजिटल फॉरेंसिक कंपनी आर्सेनल कंसल्टिंग द्वारा की गई जांच में पता चला था कि एल्गार परिषद मामले में हिरासत में लिए गए 16 लोगों में से एक वकील सुरेंद्र गाडलिंग के कंप्यूटर को 16 फरवरी 2016 से हैक किया जा रहा था, जो कि 20 महीने से अधिक समय तक चला था और उसमें उन्हें आरोपी ठहराने वाले दस्तावेज प्लांट किए गए थे.

इस फॉरेंसिक फर्म की यह तीसरी रिपोर्ट थी. इससे पहले की दो रिपोर्ट- आठ फरवरी 2021 और 27 मार्च 2021 को प्रकाशित हुई थीं, जो एल्गार परिषद मामले में गाडलिंग के साथ गिरफ्तार कार्यकर्ता रोना विल्सन के लैपटॉप से जुड़ी थीं, जिसमें बताया गया था कि विल्सन की करीब 22 महीने निगरानी की गई थी.

मामले में गिरफ्तार कई लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील मिहिर देसाई ने कहा कि इस साइबर हमले को ‘साधारण निगरानी’ के रूप में नहीं देखा जा सकता है.

उन्होंने द वायर  से कहा, ‘यह निगरानी से आगे की बात है, यह वास्तव में व्यक्ति के जीवन में हस्तक्षेप है. मालवेयर व्यक्ति के डेटा और जीवन पर नियंत्रण पाने के लिए लगाया जाता है.’

देसाई ने कहा कि डेटा संरक्षण कानून नहीं होने के कारण अदालत में इन मामलों का बचाव करना दुस्वप्न बन गया है.

मामले में जिन अन्य गवाहों से पूछताछ की गई थी, उन्हें भी इस तरह की निगरानी के तहत निशाना बनाया गया है. इसमें बस्तर की आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता सोनी सोरी, उनके भतीजे और पत्रकार लिंगाराम कोडोपी, भारद्वाज के करीबी कानूनी सहयोगी अंकित ग्रेवाल, वकील, जाति विरोधी कार्यकर्ता और पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) के छत्तीसगढ़ प्रदेश अध्यक्ष डिग्री प्रसाद चौहान और श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स के सहायक प्रोफेसर राकेश रंजन शामिल हैं.

कोडोपी को छोड़कर बाकी सभी से एनआईए ने कई घंटों पूछताछ की है.

सोरी के फोन का फॉरेंसिक विश्लेषण, जो एक एंड्रॉयड डिवाइस था, भी अनिर्णायक निकला और यह स्पष्ट नहीं है कि उनके फोन की जासूसी करने का प्रयास सफल रहा या नहीं. सोरी ने द वायर  को बताया कि एनआईए की एक टीम 2020 के मध्य में उनसे पूछताछ करने के लिए मुंबई से जगदलपुर गई थी.

उन्होंने द वायर  से कहा, ‘लेकिन मैं कोविड-19 से पीड़ित थी और बाहर निकल नहीं सकती थी. एनआईए फोन कॉल पर मुझसे पूछताछ करने के लिए तैयार हो गई.’

सोरी के अनुसार, एनआईए अधिकारी चाहते थे कि वे सुधा भारद्वाज के बारे में विशेष जानकारी दें, जिसमें उनकी निकटता और विभिन्न आंदोलनों में शामिल होने के बारे में बताया जाए.

सोरी से पुणे के शनिवारवाड़ा इलाके में 31 दिसंबर, 2017 को आयोजित एल्गार परिषद कार्यक्रम में भाग लेने के कारणों के बारे में भी पूछताछ की गई थी. ‘ब्राह्मणवादी राज्य व्यवस्था’ के विरोध में आयोजित इस कार्यक्रम में देश भर से कई राजनीतिक विचारकों, कलाकारों और शिक्षाविदों ने भाग लिया था.

इसमें शामिल होने वाले सुधीर धावले, ज्योति जगताप, सागर गोरखे, रमेश गायचोर जैसे कुछ प्रतिभागियों को बाद में हिरासत में लिया गया और अब वे जेल में हैं.

अक्टूबर 2019 में टोरंटो विश्वविद्यालय के मंक स्कूल ऑफ ग्लोबल अफेयर्स एंड पब्लिक पॉलिसी में स्थित एक प्रयोगशाला ‘सिटिजन लैब’ ने 120 से अधिक मानवाधिकार रक्षकों की एक सूची जारी की थी, जो भारत में निगरानी के लिए पेगासस के संभावित लक्ष्य थे.

वैसे तो अधिकांश राज्यों और केंद्र सरकार ने मामले पर चुप्पी बनाए रखी, लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व वाली छत्तीसगढ़ सरकार ने इन आरोपों की जांच के लिए एक पैनल का गठन किया था.

उस समय सार्वजनिक की गई सूची में राज्य के कुछ कार्यकर्ताओं के नामों का उल्लेख था. आरोप है कि एनएसओ के प्रतिनिधियों ने राज्य में भाजपा सरकार के पूर्व अधिकारियों से मुलाकात की थी.

छत्तीसगढ़ सरकार के सूत्रों ने खुलासा किया है कि जांच में आवश्यक गंभीरता का अभाव था और बाद में जनसंपर्क के तत्कालीन निदेशक और अब राजनांदगांव जिले के कलेक्टर तरण सिन्हा द्वारा प्रस्तुत पैनल रिपोर्ट में दावा किया गया था कि सिटिजन लैब द्वारा किए गए दावों में ‘कुछ भी महत्वपूर्ण’ नहीं पाया गया.

सभी राज्य विभागों को आरोपों पर गौर करने और पैनल को रिपोर्ट करने के लिए कहा गया था. हर विभाग ने दावा किया कि यह स्थापित करने के लिए रिकॉर्ड में कुछ भी नहीं मिला कि इजराइल के एनएसओ समूह और राज्य सरकार की कोई बैठक हुई थी.

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