मुख्यमंत्री की आपत्ति के बावजूद नवजोत सिंह सिद्धू पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नियुक्त

इस फ़ैसले के साथ ही कांग्रेस पार्टी नेतृत्व ने मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के विरोध की अनदेखी करते हुए नवजोत सिंह सिद्धू का समर्थन करने का स्पष्ट संकेत दे दिया है. पार्टी नेतृत्व को लगता है कि सिद्धू नई ऊर्जा और उत्साह के साथ पार्टी के प्रचार अभियान का नेतृत्व कर सकते हैं और अगले साल की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी की जीत सुनिश्चित करने में मदद कर सकते हैं.

नवजोत सिंह सिद्धू. (फोटो: पीटीआई)

इस फ़ैसले के साथ ही कांग्रेस पार्टी नेतृत्व ने मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के विरोध की अनदेखी करते हुए नवजोत सिंह सिद्धू का समर्थन करने का स्पष्ट संकेत दे दिया है. पार्टी नेतृत्व को लगता है कि सिद्धू नई ऊर्जा और उत्साह के साथ पार्टी के प्रचार अभियान का नेतृत्व कर सकते हैं और अगले साल की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी की जीत सुनिश्चित करने में मदद कर सकते हैं.

नवजोत सिंह सिद्धू. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने रविवार को नवजोत सिंह सिद्धू को पार्टी की पंजाब इकाई का नया अध्यक्ष नियुक्त किया. गांधी ने राज्य के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की कड़ी आपत्ति के बावजूद यह फैसला लिया.

गांधी ने अगले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए सिद्धू की सहायता के लिए चार कार्यकारी अध्यक्षों की भी नियुक्ति की है. ये नियुक्तियां पार्टी में आंतरिक कलह के बाद हुई हैं, जिससे पार्टी की प्रदेश इकाई अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के प्रति निष्ठा रखने वाले गुटों में विभाजित हो गई.

पंजाब इकाई के नए कार्यकारी अध्यक्ष हैं- संगत सिंह गिलजियां, सुखविंदर सिंह डैनी, पवन गोयल, कुलजीत सिंह नागरा. ये सभी विभिन्न क्षेत्रों एवं जातियों का प्रतिनिधित्व करते हैं.

पार्टी द्वारा जारी बयान के अनुसार, ‘कांग्रेस अध्यक्ष ने नवजोत सिंह सिद्धू को तत्काल प्रभाव से पंजाब प्रदेश कांग्रेस समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया है.’

बयान में कहा गया है, ‘पार्टी प्रदेश कांग्रेस समिति के निवर्तमान अध्यक्ष सुनील जाखड़ के योगदान की सराहना करती है.’

कांग्रेस के सिक्किम, नगालैंड और त्रिपुरा मामलों के प्रभारी कुलजीत सिंह नागरा को उनकी मौजूदा जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया गया है.

पंजाब में 2017 के पिछले विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा से कांग्रेस में शामिल हुए सिद्धू ने पिछले कुछ दिनों में समर्थन जुटाने के अपने प्रयास तेज कर दिए हैं और कई विधायकों और नेताओं से मुलाकात की है.

इस फैसले के साथ ही पार्टी नेतृत्व ने अमरिंदर सिंह के विरोध की अनदेखी करते हुए सिद्धू का समर्थन करने का स्पष्ट संकेत दे दिया है.

पार्टी नेतृत्व को लगता है कि सिद्धू नई ऊर्जा और उत्साह के साथ पार्टी के प्रचार अभियान का नेतृत्व कर सकते हैं और अगले साल की शुरुआत में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों में पार्टी की जीत सुनिश्चित करने में मदद कर सकते हैं.

सिद्धू की भीड़ आकर्षित करने और जोरदार प्रचार अभियान शुरू करने की क्षमता ने उनके पक्ष में काम किया है, क्योंकि पार्टी को लगता है कि सत्ता में साढ़े चार साल के बाद पार्टी पदाधिकारियों में आई सुस्ती को दूर करके उनमें नई ऊर्जा का संचार करना आवश्यक है.

राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाद्रा के समर्थन ने भी सिद्धू को कड़े प्रतिरोध के बावजूद यह पद हासिल करने में मदद की है.

क्रिकेटर से नेता बने सिद्धू के सामने अब पार्टी को एकजुट करने और पुराने नेताओं और दिग्गजों का विश्वास जीतने के अलावा पार्टी में एकजुटता लाने की चुनौती है.

समझा जाता है कि मुख्यमंत्री सिंह ने सोनिया गांधी से कहा था कि वह सिद्धू से तब तक नहीं मिलेंगे, जब तक कि वह हाल के दिनों में उनके ऊपर किए गए अपने हमलों के लिए सार्वजनिक रूप से माफी नहीं मांग लेते.

पार्टी के वरिष्ठ नेताओं द्वारा विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी को एकजुट करने का आह्वान किया जा रहा है, नहीं तो आप तथा अकाली दल-बसपा गठबंधन इसे पछाड़ सकते हैं.

पार्टी के पंजाब मामलों के प्रभारी एवं कांग्रेस महासचिव हरीश रावत ने सिद्धू और चार कार्यकारी अध्यक्षों को बधाई दी. उन्होंने पंजाब में नई टीम को मंजूरी देने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का आभार व्यक्त किया.

सोमवार को ट्वीट कर सिद्धू ने कहा, ‘आज से उसी सपने को पूरा करने के लिए और पंजाब कांग्रेस के अजेय किले को मजबूत करने के लिए काम करना है. मुझ पर विश्वास करने और मुझे यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने के लिए मैं माननीय कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का आभारी हूं.’

एक अन्य ट्वीट में उन्होंने कहा, ‘#JittegaPunjab मिशन को पूरा करने के लिए राज्य में कांग्रेस परिवार के हर सदस्य के साथ मिलकर काम करूंगा. एक विनम्र कांग्रेस कार्यकर्ता के रूप में #PunjabModel और हाईकमान के 18 सूत्रीय एजेंडा के माध्यम से लोगों की शक्ति लोगों को वापस देने के लिए काम करूंगा. मेरी यात्रा अभी शुरू हुई है.’

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, बीते शनिवार को हरीश रावत ने चंडीगढ़ में अमरिंदर सिंह से मुलाकात की थी. बैठक के बाद रावत ने मीडिया से कहा था कि मुख्यमंत्री ने अपने पहले के रुख को दोहराया कि वह कांग्रेस अध्यक्ष के फैसले का पालन करेंगे. यह कांग्रेस में बहुत बड़ी बात है.

हालांकि रावत केवल आंशिक रूप से सफल रहे, क्योंकि वे मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू को ‘ऑल इज वेल’ वाली तस्वीर के लिए मना नहीं सके. रावत ने अमरिंदर से सिद्धू से मिलने का आग्रह किया, लेकिन मुख्यमंत्री ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वह माफी मांगने के बाद ही उनसे मिलेंगे.

बीते मई महीने में अपने कई ट्वीट्स में सिद्धू ने कुछ शब्द बोलते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री पर निशाना साधा था. एक मई को उन्होंने 2016 की एक वीडियो क्लिप साझा की, जिसमें अमरिंदर को सत्ता में आने पर 2015 में फरीदकोट में पुलिस फायरिंग की घटना में बादल (प्रकाश सिंह बादल परिवार के नेता) के खिलाफ कार्रवाई करने का वादा करते हुए सुना जा सकता है. सिद्धू ने कहा, बड़ा घमंड, छोटा रोस्ट. बड़ी चिल्लाहट, लेकिन कोई नतीजा नहीं.

जब शुरुआती संकेत मिले कि सिद्धू को पंजाब कांग्रेस प्रमुख नियुक्त किया जाएगा, तब अमरिंदर के करीबी सूत्रों ने कहा था कि वह नाखुश थे और आलाकमान को बता दिया था कि वह सिद्धू के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में उनके साथ विधानसभा चुनाव में नहीं जाएंगे. बाद में हरीश रावत और मुख्यमंत्री दोनों ने स्पष्टीकरण और खंडन जारी किया.

रिपोर्ट के अनुसार, अमरिंदर और सिद्धू के बीच कलह के बीज 2017 में उपज गए थे, जब सिद्धू कांग्रेस में शामिल हो गए और मुख्यमंत्री ने उन्हें दिल्ली आलाकमान द्वारा राज्य इकाई में लाए गए एक नए नवाब के रूप में देखा. दोनों के बीच तनाव बढ़ने के साथ मुख्यमंत्री ने जून 2019 में सिद्धू से उनका पोर्टफोलियो छीन लिया, जिसमें एक कथित घोटाले को लेकर बाद में एक साथी मंत्री पर खुलेआम हमला किया गया था.

कुछ देर शांत रहने के बाद सिद्धू ने इस साल 13 अप्रैल को कैप्टन अमरिंदर सिंह पर एक नया हमला किया, जब उन्होंने कहा कि अकालियों के तहत 2015 में गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी से संबंधित मामलों में सरकार ने बादल (परिवार) के प्रति नरमी दिखाई थी. बयान ने दोनों नेताओं के बीच नए सिरे से संघर्ष की शुरुआत को ही चिह्नित किया, जिसने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले पंजाब में राजनीतिक विवाद की सुलगाए हुए रखा है.

द इंडियन एक्सप्रेस को सूत्रों ने बताया था कि मुख्यमंत्री ने यह संकेत दिया था कि वह पार्टी आलाकमान द्वारा सुझाई गई व्यवस्था से खुश नहीं थे और कुछ नेताओं ने अपनी आशंका व्यक्त की कि राज्य इकाई बंट सकती है. सिद्धू को कथित तौर पर कम से कम पांच कैबिनेट मंत्रियों और 10 से 15 विधायकों का समर्थन प्राप्त है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)