दिल्ली की एक अदालत ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के मामले में पहला फैसला सुनाते हुए सुरेश नामक व्यक्ति को बरी कर दिया. उनकी बहन ने दावा किया कि पुलिस ने मास्क नहीं पहनने के कारण उन्हें पकड़ा था. जब उसके माता-पिता थाने गए तो पुलिस ने उन्हें मास्क लगाने का महत्व बताते हुए डांटा था. अगले दिन सुरेश को तिहाड़ जेल भेज दिया और एक महीने बाद आरोप-पत्र दिया गया जिसमें उन पर दंगों का आरोप लगाया गया था.
नई दिल्ली: कोविड लॉकडाउन के दौरान अपने दोस्त से मिलने जाने के लिए बिना मास्क लगाए सड़क पर निकले सुरेश को बहुत महंगा पड़ा और न सिर्फ उन्हें बल्कि उनके परिवार को भी करीब 10 महीने तक ऐसे बुरे हालात से गुजरना पड़ा, जिसका उन्हें अंदेशा भी नहीं था. सुरेश को दंगा करने सहित अन्य गंभीर आरोपों में जेल जाना पड़ा, लेकिन अंतत: अदालत ने उसे आरोप मुक्त कर दिया है.
अदालत ने मंगलवार को उन्हें आरोप मुक्त कर दिया. लेकिन उन्हें अपने जीवन के 10 महीने जेल में गुजारने पड़े. उन्हें पुलिस ने सात अप्रैल, 2020 को गिरफ्तार किया था और अदालत से जमानत उन्हें 25 फरवरी, 2021 को मिली थी.
फरवरी 2020 में सीएए के विरोध प्रदर्शनों के दौरान पूर्वोत्तर दिल्ली में हुए दंगों जुड़ा यह पहला मामला है, जिसमें अदालत ने फैसला सुनाया है.
सुरेश की बहन रेणु ने दावा किया कि पुलिस ने मास्क नहीं पहनने के कारण उन्हें पकड़ा था.
रेणु ने दावा किया, ‘लॉकडाउन लागू था और मेरे भाई को मास्क नहीं पहनने के कारण थाने ले जाया गया. जब हमारे माता-पिता थाने गए तो पुलिस ने उन्हें मास्क लगाने का महत्व बताते हुए डांट दिया.’
उन्होंने कहा, ‘अगले दिन वे लोग (माता-पिता) फिर थाने गए, लेकिन पता चला कि उसे (सुरेश) तिहाड़ भेज दिया गया है. दो महीने बाद हमें आरोप-पत्र मिला, और आश्चर्य की बात थी कि हमें पता चला कि भाई के खिलाफ दंगों का आरोप लगाया गया है.’
एक कपड़ा फैक्ट्री में काम करने वाले सुरेश की गिरफ्तारी के कारण परिवार के आय का स्थायी स्रोत खत्म हो गया.
सुरेश के पिता ई-रिक्शा चलाते हैं, उनकी मां घरेलू सहायिका का काम करती थीं, लेकिन पिछले साल करीब छह महीने बीमार रहने के बाद उन्होंने काम करना बंद कर दिया. स्कूली शिक्षा बीच में छोड़ने वाली रेणु फिलहाल बेरोजगार हैं.
रेणु ने कहा, ‘हम अपने भाई की जमानत के लिए 15,000 रुपये का मुचलका नहीं जमा करवा सके. हमारी इतनी हैसियत नहीं थी.’
अदालत में सुरेश की पैरवी करने वाले वकील राजीव प्रताप सिंह के अनुसार, कोविड महामारी के दौरान पूरे परिवार ने जैसे-तैसे करके सिर्फ पिता की कमाई पर गुजारा किया.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, सिंह ने कहा, ‘कोविड लॉकडाउन के कारण परिवार का खर्च सीमित था. रेणु परिवार के लिए भोजन उन स्कूलों से प्राप्त करती थीं, जहां उस समय मुफ्त भोजन दिया जा रहा था.’
पुलिस ने दावा किया था कि सुरेश ने लाठी और लोहे का सरिया लिए हुए दंगाइयों की भीड़ के साथ मिलकर 25 फरवरी की शाम कथित रूप से दिल्ली के बाबरपुर रोड पर स्थित एक दुकान के ताले तोड़े और उसे लूटा. हालांकि, सुरेश को अदालत ने आरोप मुक्त कर दिया है.
सुरेश के खिलाफ नौ मार्च, 2021 को भारतीय दंड संहिता की धाराओं 143 (गैरकानूनी रूप से एकत्र होना), 147 (दंगा), 427 (बदमाशी), 454 (किसी के घर में जबरन घुसने का प्रयास) और 395 (डकैती) आदि के तहत आरोप तय किया गया.
अदालत में सुरेश ने स्वयं को निर्दोष बताते हुए मुकदमे का सामना करने की बात कही थी.
सुरेश को आरोप मुक्त करते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने मंगलवार को कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ मामला साबित करने में सफल नहीं हुआ है.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने अपने 21 पेज के फैसले में कहा, ‘यह अच्छी तरह से स्पष्ट है कि अभियोजन पक्ष (पुलिस) अपने मामले को साबित करने में बुरी तरह विफल रहा है, संदेह का तो सवाल ही नहीं उठता है. सभी प्रमुख गवाहों के बयानों में काफी विरोधाभास है.’
इसके अलावा उन्होंने कहा कि ऐसी कोई गवाही नहीं थी, जो कि संबंधित अपराध में आरोपी की संलिप्तता को साबित कर पाए.
मालूम हो कि संशोधित नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के दौरान फरवरी 2020 में उत्तरी-पूर्वी दिल्ली में दंगे हुए थे, जिसमें 53 लोग मारे गए थे. सांप्रदायिक झड़पों के दौरान 700 से अधिक घायल लोग घायल हुए थे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)