माकपा के राज्यसभा सदस्य जॉन ब्रिटास ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक जनहित याचिका में अनुरोध किया है कि वह 19 जुलाई को समाचार वेबसाइट द वायर द्वारा किए गए खुलासे पर केंद्र को एक विशेष जांच दल के माध्यम से आरोपों की तत्काल जांच करने का निर्देश दे. उन्होंने कहा है कि बहुत गंभीर प्रकृति के बावजूद केंद्र सरकार ने इस मुद्दे को लेकर आरोपों की जांच कराने की परवाह नहीं की है.
नई दिल्ली/गुवाहाटी: राज्यसभा सदस्य जॉन ब्रिटास ने इजराइली स्पायवेयर पेगासस के जरिये कार्यकर्ताओं, नेताओं, पत्रकारों और संवैधानिक पदाधिकारियों की कथित जासूसी के संबंध में अदालत की निगरानी में जांच कराने का अनुरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, याचिका में अदालत से अनुरोध किया गया है कि 19 जुलाई को समाचार वेबसाइट द वायर द्वारा किए गए खुलासे पर केंद्र को एक विशेष जांच दल के माध्यम से आरोपों की तत्काल जांच करने का निर्देश दे.
द वायर और 16 मीडिया सहयोगियों की एक पड़ताल के मुताबिक, इजराइल की एक सर्विलांस तकनीक कंपनी एनएसओ ग्रुप के कई सरकारों के क्लाइंट्स की दिलचस्पी वाले ऐसे लोगों के हजारों टेलीफोन नंबरों की लीक हुई एक सूची में 300 सत्यापित भारतीय नंबर हैं, जिन्हें मंत्रियों, विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, न्यायपालिका से जुड़े लोगों, कारोबारियों, सरकारी अधिकारियों, अधिकार कार्यकर्ताओं आदि द्वारा इस्तेमाल किया जाता रहा है.
सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल करने वाले ब्रिटास ने कहा कि हाल में जासूसी के आरोपों ने भारत में लोगों के एक बड़े वर्ग के बीच चिंता पैदा कर दी है और जासूसी का अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर गहरा असर पड़ेगा.
उन्होंने एनएसओ ग्रुप के पेगासस स्पायवेयर के जरिये जासूसी करने के आरोपों के संबंध में अदालत की निगरानी में जांच कराए जाने का अनुरोध किया है.
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के सदस्य ब्रिटास ने रविवार को एक बयान में कहा कि बहुत गंभीर प्रकृति के बावजूद केंद्र सरकार ने इस मुद्दे को लेकर आरोपों की जांच कराने की परवाह नहीं की है.
याचिका में समाचार रिपोर्टों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि एमनेस्टी इंटरनेशनल की सिक्योरिटी लैब द्वारा सूची में मौजूद 10 भारतीय फोन पर किए गए स्वतंत्र डिजिटल फोरेंसिक विश्लेषण ने या तो हमले का प्रयास होने या सफल तौर पर छेड़छाड़ के संकेत दिए.
इसने कहा कि एमनेस्टी सिक्योरिटी लैब में विश्लेषण के लिए पांच पत्रकारों के फोन दिए गए थे और उनमें पाया गया कि पेगासस स्पायवेयर होने के संकेत मिले हैं.
ब्रिटास ने रविवार को यह भी दावा किया कि आरोपों से दो निष्कर्ष निकलते हैं, या तो जासूसी सरकार द्वारा या फिर किसी विदेशी एजेंसी द्वारा जासूसी की गई.
उन्होंने कहा कि यदि यह सरकार द्वारा किया गया तो यह अनधिकृत तरीके से किया गया. यदि किसी विदेशी एजेंसी द्वारा जासूसी की गई है तो यह बाहरी हस्तक्षेप का मामला है और इससे गंभीरता से निपटने की आवश्यकता है.
याचिका में कहा गया है कि पूर्व केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने 28 नवंबर, 2019 को संसद को बताया था कि सरकार द्वारा नागरिकों के फोन का कोई अनधिकृत इंटरसेप्शन (लोगों के बीच इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से बातचीत सुनना) नहीं किया गया है.
याचिका में कहा गया है, ‘इससे पता चलता है कि भारत में जो भी जासूसी की जाती है वह सरकार द्वारा अधिकृत होती है. लेकिन हमारे देश में कोई भी अधिकृत जासूसी भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 की धारा 5 (2), सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम, 2000 की धारा 69, सीआरपीसी की धारा 92 और भारतीय टेलीग्राफ नियमों के नियम 419 (ए) के प्रावधानों के तहत कानून द्वारा अनिवार्य प्रक्रियाओं का पालन करके ही की जा सकती है. लेकिन यह दिखाने के लिए कोई रिकॉर्ड नहीं है कि भारत में कोई अधिकृत जासूसी/इंटरसेप्शन/टैपिंग की गई थी.’
याचिका में रविशंकर प्रसाद के बाद सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री बनाए गए अश्विनी वैष्णव का भी उल्लेख करते हुए कहा गया है कि मंत्री ने स्पायवेयर द्वारा जासूसी करने से न तो इनकार किया है और न ही स्वीकार किया है. यह भी कहा गया है कि यह केवल सरकार की ओर से एक कपटपूर्ण बयान है.
यह भी कहा गया है कि इस कथित जासूसी ने लोगों के निजता के अधिकार का उल्लंघन किया है और इससे व्यक्ति के कार्यों पर प्रभाव पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप मुक्त भाषण और अभिव्यक्ति पर एक भयानक असर पड़ेगा.
बता दें कि इससे पहले पिछले हफ्ते एक वकील मनोहर लाल शर्मा ने अदालत की निगरानी में एक एसआईटी जांच की मांग को लेकर जनहित याचिका दाखिल की थी.