कृषि एवं पोषण के लिए टाटा कोर्नेल इंस्टिट्यूट द्वारा आर्थिक रूप से पिछड़े चार ज़िलों- उत्तर प्रदेश के महराजगंज, बिहार के मुंगेर, ओडिशा के कंधमाल और कालाहांडी में किए गए अध्ययन के बाद शोधकर्ताओं ने कहा है कि देश की खाद्य प्रणाली में विविधता लाने और यह सुनिश्चित करने के लिए व्यापक सुधारों की आवश्यकता है कि महिलाओं और अन्य हाशिये के समूहों के पास महामारी के दौरान और उसके बाद भी पौष्टिक आहार तक पहुंच हो.
वॉशिंगटन: भारत में 2020 में कोविड-19 वैश्विक महामारी के कारण लगाए गए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन ने देश में महिलाओं की पोषण स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव डाला. अमेरिका में शोधकर्ताओं के एक समूह के अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है.
कृषि एवं पोषण के लिए टाटा-कोर्नेल इंस्टिट्यूट द्वारा आर्थिक रूप से पिछड़े चार जिलों- उत्तर प्रदेश के महराजगंज, बिहार के मुंगेर, ओडिशा के कंधमाल और कालाहांडी में किए गए अध्ययन में पाया गया कि मई 2019 की तुलना में मई 2020 में घरेलू खाद्य सामग्रियों पर खर्च और महिलाओं की आहार विविधता में गिरावट आई है. खासकर मांस, अंडा, सब्जी और फल जैसे गैर मुख्य खाद्यों के संदर्भ में.
अध्ययन में कहा गया कि विशेष सार्वजनिक प्रणाली वितरण (पीडीएस) के 80 प्रतिशत, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के 50 प्रतिशत और आंगनवाड़ियों से राशन सर्वेक्षित घरों में 30 प्रतिशत तक पहुंचने के बावजूद ऐसा हुआ.
अध्ययन में कहा गया, ‘हमारे परिणाम आर्थिक आघातों के प्रति महिलाओं की अनुपातहीन संवेदनशीलता, प्रधान अनाज केंद्रित सुरक्षा कार्यक्रम के प्रभाव और और विविध पौष्टिक खाद्य पदार्थों की पहुंच एवं उपलब्धता पर सीमित बाजार के बढ़ते साक्ष्य मुहैया कराते हैं.’
यह अध्ययन पोषण से भरपूर खाद्य पदार्थों को शामिल करने के लिए पीडीएस विविधीकरण की दिशा में नीतिगत सुधारों और आपूर्ति संबंधित बाधाओं को दूर करने के लिए बाजार में सुधार और स्वस्थ खाद्य पहुंच के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के विस्तार पर जोर डालता है.
रिपोर्ट के मुताबिक, टाटा-कोर्नेल इंस्टिट्यूट ने उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडिशा राज्यों में राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर खाद्य व्यय, आहार विविधता और अन्य पोषण संकेतकों के सर्वेक्षणों का विश्लेषण किया.
विश्लेषण में पाया कि लॉकडाउन के दौरान विशेष रूप से कम विकसित जिलों में खाद्य व्यय में काफी गिरावट आई है. लगभग 90 प्रतिशत सर्वेक्षण उत्तरदाताओं ने कम भोजन होने की सूचना दी, जबकि 95 प्रतिशत ने कहा कि उन्होंने कम प्रकार के भोजन का सेवन किया.
खाद्य व्यय में सबसे बड़ी गिरावट सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर ताजे और सूखे मेवों के साथ-साथ मांस, मछली और अंडे जैसे पशु उत्पादों के लिए थी.
शोधकर्ताओं ने कहा कि लॉकडाउन में भारत के आंगनवाड़ी केंद्रों के बंद होने के कारण भी महिलाओं पर असमान बोझ पड़ा. नर्सिंग और गर्भवती माताओं को घर ले जाने का राशन और गर्म पका हुआ भोजन प्रदान करने वाले केंद्र महिलाओं और बच्चों के लिए पोषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं.
अध्ययन के अनुसार, महामारी के दौरान 72 प्रतिशत पात्र परिवारों की उन सेवाओं तक पहुंच नहीं रही.
टाटा-कोर्नेल इंस्टिट्यूट में शोध अर्थशास्त्री एवं टीसीआई निदेशक प्रभु पिंगली, सहायक निदेशक मैथ्यू अब्राहम और कंसल्टेंट पायल सेठ के साथ अध्ययन की सह लेखक सौम्या गुप्ता ने कहा, ‘महिलाओं के आहार में वैश्विक महामारी से पहले भी विविध खाद्यों की कमी थी, लेकिन कोविड-19 ने स्थिति को और खराब कर दिया.’
कॉर्नेल विश्वविद्यालय द्वारा जारी एक बयान में उन्होंने कहा, ‘पोषण संबंधी परिणामों पर वैश्विक महामारी के प्रभाव को देखने वाली किसी भी नीति को लैंगिक पहलू से देखना होगा, जो महिलाओं द्वारा सामना की जाने वाली विशिष्ट और अक्सर लगातार बनी रहने वाली कमजोरियों को दर्शाता है.’
पिंगली ने कहा, ‘हालांकि यह एक लंबे समय से चली आ रही समस्या है, लेकिन कोविड-19 महामारी ने भारत में किफायती पौष्टिक खाद्य पदार्थों की सापेक्ष कमी को सामने ला दिया है. देश की खाद्य प्रणाली में विविधता लाने और यह सुनिश्चित करने के लिए व्यापक सुधारों की आवश्यकता है कि महिलाओं और अन्य हाशिये के समूहों के पास महामारी के दौरान और उसके बाद भी पौष्टिक आहार तक पहुंच हो.’
शोधकर्ताओं ने कहा कि नीति निर्माताओं को महिलाओं और अन्य हाशिये पर मौजूद समूहों की जरूरतों को पूरा करने के लिए सुरक्षा कार्यक्रमों को मजबूत करके महिलाओं के पोषण पर महामारी और अन्य हानिकारक घटनाओं के प्रतिकूल प्रभाव को पहचानना चाहिए.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)