इस बार के बीएमसी चुनाव में, सफ़ाई कामगार भी मैदान में

मुंबई के सफाई कामगारों की तमाम समस्याएं हैं लेकिन इन्हें सुलझाने वाला कोई नहीं. इसलिए इनमें से कई कामगार इस बार बीएमसी के चुनाव लड़ रहे हैं.

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मुंबई के सफ़ाई कामगारों की तमाम समस्याएं हैं लेकिन इन्हें सुलझाने वाला कोई नहीं. इसलिए इनमें से कई कामगार इस बार बीएमसी चुनाव में अपनी किस्मत आज़मा रहे हैं.

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सफ़ाई कामगारों की ओर से करुणा वलोड्रा बीएमसी का चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लड़ रही हैं. (फोटो: सरयू डी)

उत्तर मुंबई की जुहू गली में 28 साल करुणा वलोड्रा एक शौचालय की ओर इशारा करती हैं, जिसकी हालत बेहद ख़राब है और उससे भयानक बदबू आती हैं. करुणा यहीं पास में ही अपने परिवार के साथ रहती हैं. स्थानीय लोगों ने संक्रमण से बचने के लिए वहां ब्लीच का छिड़काव किया हुआ है.

करुणा कहती हैं, ‘हमारे इलाक़े में युवतियां कम खाना खाती हैं ताकि उन्हें इस बदबूदार शौचालय का इस्तेमाल कम से कम करना पड़े. विडंबना ये है कि यह मोहल्ला सफ़ाई कामगारों का है जिन पर शहर की सफ़ाई की जिम्मेदारी है.’

बहुत सारे सफ़ाई कर्मचारी यहां सरकारी क्वार्टरों में रहते हैं. कुछ तो तीन पीढ़ियों से इन क्वार्टरों में रहे हैं. बीएमसी के नियमों के मुताबिक अगर किसी परिवार को एक सदस्य सफ़ाई कर्मचारी की नौकरी चुनता है तो वे उसी घर में रह सकते हैं. नतीजतन, इन परिवारों में से अक्सर कोई बेटा या बेटी कम शिक्षित होने की वजह से सफ़ाई कर्मचारी की नौकरी कर लेता है.

करुणा कहती हैं, ‘एक सफ़ाई कामगार के रूप में मेरे पिता की मौत हुई. उसके बाद उनका पेंशन पाने के लिए मुझे और मेरी बड़ी बहन को बीएमसी के एक दफ्तर से दूसरे दफ्तरों के बार-बार चक्कर लगाने पड़े. इसके लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाना पड़ा. मेरी बड़ी बहन उषा को सड़क की सफ़ाई करते हुए रीढ़ की हड्डी में चोट लगी, लेकिन इसके लिए कोई भी मुआवज़ा अब तक नहीं मिला. सड़क से लेकर गटर सफ़ाई तक हम अपनी जान जोख़िम में डालते हैं. सैनिक जोख़िम उठाते हैं तो उनकी प्रशंसा होती है, हम उठाते हैं तो हमारी कोई बात ही नहीं करता.’

पिछले कई सालों से सफ़ाई कामगार और मुंबई में उनकी यूनियन के नेता अपनी समस्याओं को हर मुमकीन जगह पर उठा चुके हैं. दस हजार लोग शहर की सफ़ाई से जुड़े हुए हैं. न्यूनतम वेतनमान, बकाया एरियर, सरकारी आवासों का बेहतर रखरखाव और सुरक्षा की मुद्दा, इन सफ़ाई कामगारों की प्रमुख मांगें हैं.

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समस्याओं को लेकर ये कामगार स्वच्छ भारत अभियान के ब्रांड एंबेसडर अमिताभ बच्चन के बंगले पर भी गए थे, लेकिन वहां भी इन्हें नाउम्मीदी ही हाथ लगी. (फोटो: सरयू डी)

लंबे समय से इन मांगों पर कोई सुनवाई ने होने से तंग आकर करुणा इस बार बृहनमुंबई म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन (बीएमसी) के चुनाव मैदान में हैं. बीएमसी के चुनाव 21 फरवरी को हैं. करुणा उन चार प्रत्याशियों में से हैं जो सफ़ाई कामगारों की ओर से चुनाव मैदान में हैं. मुंबई में सफ़ाई कामगारों के एक बहुत बड़ा तबका रहता है. इसे देखते हुए इन प्रत्याशियों को उम्मीद है कि उनकी जीत होगी.

कर्मचारियों के अनुसार, तकरीबन 45,000 सफ़ाई कर्मचारियों जिनमें 2700 बीएमसी के भी है और जो शहर में कूड़ा बीनने और उन्हें अलग करने का काम करते हैं, के पास सुरक्षित नौकरी या तनख्वाह नहीं है. इसके अलावा स्थायी नौकरी वाले कर्मचारियों तक को प्रॉविडेंट फंड के लिए भी इन्हें परेशान होना पड़ता है क्योंकि बीएमसी समय पर इनके खातों में पैसा भी नहीं डालती. इनमें से 6500 कर्मचारी ठेकेदार की ओर से मुहैया कराए जाते हैं. इनमें से हर कामगार का 1.32 लाख रुपये बकाया है. कई बार ठेकदार तय रकम से कम का भी भुगतान इन्हें करते हैं.

कामगारों की समस्या बताते हुए करुणा कहती हैं, ‘यूनियनों ने भी कूड़ा बीनने वाले कामगारों के लिए दास्ताने और स्वास्थ्य बीमा या चिकित्सा सहायता देने की मांग की है. सरकारी आवासों की हालत बहुत खराब है और उन्हें ठीक करने की मांगों पर कोई विचार करने वाला नहीं है. मैनहोल में जाने वाले कामगारों का नियमित मेडिकल चेकअप होना चाहिए, लेकिन ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है क्योंकि कॉलोनी में एक हेल्थ सेंटर तक नहीं है.’

इसके अलावा शौचालय टैंक, सीवरेज और गटर सफ़ाई में लगे अधिकांश कामगार अनुसूचित जाति से हैं और उनका ये काम यहां की जातीय संरचना की वजह से अगली पीढ़ी की भी ज़िम्मेदारी बन जाता है.

सफ़ाई कामगार बताते हैं, राजनीतिक दल सिर्फ नाममात्र को उनकी समस्याओं पर ध्यान देते हैं. पिछले साल दिसंबर में ये कामगार अपनी समस्याओं को लेकर स्वच्छ भारत अभियान के ब्रांड एंबेसडर अमिताभ बच्चन के जुहू स्थित बंगले पर भी गए थे, लेकिन वहां भी इन्हें नाउम्मीदी ही हाथ लगी.

करुणा की उम्मीदवारी को नागरिक अधिकार मंच (एनएएम) का समर्थन है. यह संगठन करुणा की तरह ही गोवंडी के लिंबोनी बाग से एक दूसरे उम्मीदवार का भी समर्थन कर रहा है. उत्तर-पूर्व मुंबई में लिमबोनी बाग क्षेत्र में एक बहुत बड़ा डंपिंग ग्राउंड है, जो स्थानीय निवासियों के लिए एक गंभीर स्वास्थ्य के लिए खतरा भी है. हालांकि यही इन कामगारों के रोजगार का भी क्षेत्र है.

25 साल के प्रवीण दाभाड़े यहीं पले-बढ़े हैं. उनकी मां हौसा बाई पिछले महीने तक कूड़ा बीनने की काम कर रही थीं. उनका छोटा सा कमरा इस समय उनका चुनाव कार्यालय बना हुआ है. प्रवीण मां की तरह कूड़ा बीनने वाले कामगारों की ज़िंदगी में बदलाव लाना चाहते हैं. उनकी मां के बारे में बात करने पर वे अपने आंसू नहीं रोक पाते हैं.

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प्रवीण दाभाड़े भी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव मैदान में हैं. उनकी मां कूड़ा बीनने का काम करती थीं. उन्हें विश्वास है कि उनका बेटा अब उनकी समस्याओं को हल करेगा. (फोटो: सरयू डी)

प्रवीण बताते हैं, ‘कई सालों तक मेरी मां मुंलुड डंपिंग एरिया जाया करती थीं. हम तीन भाई जब छोटे थे तभी मेरे पिता का निधन हो गया था. अपने भाई की मदद से मां ने हमारी परवरिश की. अपने काम के दिनों में मां हर रोज़ जख़्मी होती थी. शीशे के ग्लास तो कभी किसी दूसरी खतरनाक वस्तु से उनका हाथ-पैर अक्सर चोटिल होता रहता था. उन्होंने ये बात किसी से नहीं कहीं इसलिए हम नहीं जान सके कि वास्तव में वे और कौन सी समस्याओं का सामना करती थीं. अगर उनका हाथ-पैर जख़्मी हो जाता था तो डंपिंग ग्राउंड के पास उन्हें मेडिकल सुविधा नहीं मिल पाती थी. घाव को बांधने के लिए वे अपनी साड़ी का टुकड़ा या कोई और कपड़ा इस्तेमाल किया करती थीं.’

वे आगे कहते हैं, ‘मैंने अपने कॉलेज के दोस्तों का कभी नहीं बताया कि मेरी मां एक कूड़ा बीनने वाली हैं. मैंने उन्हें यही बताया कि वे घरेलू कामकाज करती हैं. हालांकि अब मैं मां के कामकाज के बारे में कुछ नहीं छिपाता. हमारी परवरिश करके उन्होंने महान काम किया है.’

प्रवीण की मां अपने बेटे के चुनाव मैदान में उतरने से काफी खुश हैं. वे कहती हैं, ‘हम असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं. एक ऐसा काम जिसमें आपकों किसी तरह का सुरक्षा उपकरण नहीं दिया जाता. कपड़े गंदे हो जाएं तो महिलाओं के लिए कोई जगह तक नहीं होती. यह ऐसा काम है कि आप अपना दिमागी संतुलन खो देंगे. हालांकि मैंने अपना सारा ध्यान बच्चों की परवरिश में लगाया. अब मेरा बेटा हमारी समस्याओं का समाधान करेगा.’

नि:शुल्क शिक्षा के लिए प्रवीण कुछ समय नागपुर भी गए थे. उनकी मां कहती हैं, अब वे एक नेता बन चुका है. प्रचार अभियान के दौरान वह जैकेट पहनता है.

प्रवीण कहते हैं, ‘बाबा साहब ने ठीक कहा था. शिक्षा ने ज़िंदगी को देखने का मेरा नज़रिया बदल दिया है. मैं एक ऐसे वर्ग से ताल्लुक रखता हूं जिसे राजनीतिक दल पूरी तरह से नकार चुके हैं. एक टीवी इंटरव्यू में मैंने उद्धव ठाकरे को कहते सुना है, मुंबई आमची आहे (मुंबई मेरी है). क्या वे कभी कहेंगे, कचरा वेचक आमचे अहते (कचरा बीनने वाले मेरे हैं.)

प्रवीण आगे कहते हैं, ‘यहां रहने वाले कुछ लोग नरेंद्र मोदी और ठाकरे परिवार के फैन हैं. वे मेरे ऊपर टिप्पणी करते हैं कि मैं चुनाव हार जाऊंगा और बाद में पछताऊंगा. भला मैं क्यों पछताऊंगा, बाबा साहब भी तो चुनाव हार गए थे. यहां जीत से जरूरी है कि हम राजनीतिक रूप से अपनी मौजूदगी दर्ज़ कराएं.’