बिहार में सड़क और पुल निर्माण में वित्तीय अनियमितताएं मिलींः कैग रिपोर्ट

बिहार विधानसभा में पेश की गई कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड ने प्रावधान का उल्लंघन करते हुए न केवल निविदाएं आमंत्रित कीं और तकनीकी मंज़ूरी से पहले तीन फ्लाईओवर का काम शुरू किया, बल्कि ठेकेदार को 66.25 करोड़ रुपये का भुगतान भी कर दिया गया. यह भी पता चला कि नेपाल सीमा से लगे क्षेत्र में सड़क परियोजना में देरी से 1,375 करोड़ रुपये की लागत बढ़ गई है.

Patna: Bihar Chief Minister Nitish Kumar speaks to the media during Lok Samvad programme, in Patna, Monday, Jan. 7, 2019. (PTI Photo) (PTI1_7_2019_000059B)
नीतीश कुमार. (फाइल फोटो: पीटीआई)

बिहार विधानसभा में पेश की गई कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड ने प्रावधान का उल्लंघन करते हुए न केवल निविदाएं आमंत्रित कीं और तकनीकी मंज़ूरी से पहले तीन फ्लाईओवर का काम शुरू किया, बल्कि ठेकेदार को 66.25 करोड़ रुपये का भुगतान भी कर दिया गया. यह भी पता चला कि नेपाल सीमा से लगे क्षेत्र में सड़क परियोजना में देरी से 1,375 करोड़ रुपये की लागत बढ़ गई है.

Patna: Bihar Chief Minister Nitish Kumar speaks to the media during Lok Samvad programme, in Patna, Monday, Jan. 7, 2019. (PTI Photo) (PTI1_7_2019_000059B)
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार. (फोटो: पीटीआई)

पटना: भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने कहा है कि बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड (बीआरपीएनएनएल) ने प्रावधान का उल्लंघन करते हुए पटना में तीन फ्लाईओवर के निर्माण के लिए निविदाएं आमंत्रित कीं. बीआरपीएनएनएल पथ निर्माण विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण में राज्य सरकार के स्वामित्व वाली कंपनी है.

कैग द्वारा बृहस्पतिवार को बिहार विधानसभा में पेश की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि बीआरपीएनएनएल ने प्रावधान का उल्लंघन करते हुए न केवल निविदाएं आमंत्रित कीं और तकनीकी मंजूरी से पहले तीन फ्लाईओवर (पटना शहर के आर ब्लॉक, करबिगहिया और लोहिया पथ चक्र) का काम शुरू किया, बल्कि ठेकेदार को 66.25 करोड़ रुपये का भुगतान भी किया.

कैग ने अपनी रिपोर्ट में आगे कहा है कि न तो सलाहकारों के चयन में पारदर्शिता बरती गई और न ही भुगतान को प्रदेय वस्तु या काम की प्रगति से जोड़ा गया. इनके परिणामस्वरूप सलाहकारों को समय से अधिक और अनुचित लाभ हुआ है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि अभिलेखों की जांच से पता चला कि दो परियोजनाओं- आर ब्लॉक और करबिगहिया की योजना बनाते समय फ्लाईओवर की आवश्यकता का आकलन करने के लिए कोई यातायात सर्वेक्षण नहीं किया गया था.

कैग ने कहा है कि किसी भी यातायात आंकड़े के अभाव में यह सत्यापित नहीं किया जा सकता है कि क्या ये फ्लाईओवर ठीक से डिजाइन किए गए और क्या फ्लाईओवर में प्रदान की गई ट्रैफिक लेन की संख्या आवश्यकता को पूरा करने के लिए पर्याप्त है?

कैग रिपोर्ट में मार्च 2019 को समाप्त वित्तीय वर्ष में राजस्व क्षेत्र के विभिन्न विभागों में राजस्व की हानि और करों के कम निर्धारण सहित अनियमितताओं को भी उजागर किया गया है.

रिपोर्ट में राज्य सरकार के खदान और भूतत्व विभाग के बारे में कहा गया है कि खनन अधिकारियों द्वारा रॉयल्टी के विलंबित या भुगतान न करने पर ब्याज लगाने में विफलता, के परिणामस्वरूप राजस्व की वसूली नहीं हुई.

सड़क परियोजना में देरी से बिहार सरकार पर 1,375 करोड़ रुपये की लागत बढ़ी

उपमुख्यमंत्री और राज्य के वित्त मंत्री तारकिशोर प्रसाद द्वारा गुरुवार को राज्य विधानसभा में वित्तीय संबंधित पहलुओं और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) से जुड़े सामान्य मामलों पर कैग की तीन रिपोर्ट पेश की.

टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, कैग की रिपोर्ट में सड़क निर्माण परियोजनाओं में भी अनियमितताएं पाई गई हैं. भारत-नेपाल सीमा सड़क परियोजना (आईएनबीआरपी) के तहत 729 किमी. सड़क के निर्माण के लिए नेपाल की सीमा से लगे जिलों में भूमि अधिग्रहण में देरी के परिणामस्वरूप परियोजना की लागत में 1,375 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई, जबकि महज 24.5 किमी. सड़क का ही निर्माण हो पाया है.

बिहार में भारत-नेपाल सीमा 1,751 किमी लंबी है. बिहार में सीमा के समानांतर 729 किमी सड़क के निर्माण को 2014 में मंजूरी दी गई थी और इसे दिसंबर 2022 तक पूरा किया जाना था.

31 मार्च, 2019 तक केवल 25 किमी. सड़क का निर्माण किया गया था, क्योंकि भूमि अधिग्रहण में विभिन्न प्रकार की अनियमितताओं के साथ आईएनबीआरपी को सड़क के लिए आवश्यक भूमि अधिग्रहण में देरी हुई थी. सबसे खराब स्थिति पश्चिमी चंपारण जिले में भूमि अधिग्रहण में सामने आई.

रिपोर्ट में कहा गया है कि परियोजना की मूल लागत 886 करोड़ रुपये थी और सड़क के निर्माण के लिए आवश्यक भूमि की मात्रा 2,759 एकड़ थी. हालांकि, आईएनबीआरपी द्वारा 2,497 एकड़ (91 प्रतिशत) भूमि का अधिग्रहण किया गया था. इसमें विभिन्न प्रकार की अनियमितताएं थीं, जिसके परिणामस्वरूप सड़क के निर्माण में देरी हुई.

इसमें कहा गया है कि भले ही जमीन का अधिग्रहण कर लिया गया हो, लेकिन मालिकाना हक राज्य सरकार को हस्तांतरित नहीं किया गया.

सात जिलों में भूमि अधिग्रहण नहीं हो सका. इन वजहों से कार्य की शुरुआत निर्माण कार्य देरी से शुरू हुआ और परियोजना की लागत में 1,375 करोड़ रुपये की वृद्धि की बढ़ोतरी हो गई. परियोजना की संशोधित लागत बढ़कर 2,244 करोड़ रुपये हो गई है.

इसके अलावा कंपनी को परियोजना को क्रियान्वित करने का कार्य सौंपा गया था, जिसके लिए 92 करोड़ रुपये का अग्रिम भुगतान दिया गया था, लेकिन इसके खर्च से संबंधित प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं किया गया था.

रिपोर्ट में कहा गया है कि कंपनी ने वास्तव में काम छोड़ दिया था, क्योंकि निर्माण कार्य के लिए जमीन उपलब्ध नहीं थी.

कुल मिलाकर कंपनी ने निर्माण के लिए 121 पुलों की पहचान की थी. जिसमें सिर्फ 101 पुलों पर काम पूरा हुआ है. इसके अलावा 23 पुलों में तक पहुंचने के लिए सड़कें नहीं थीं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)