ग़ैर-चुनावी अवधि में भी 150 करोड़ रुपये से अधिक का चुनावी बॉन्ड बेचा गया

आरटीआई के तहत प्राप्त किए गए दस्तावेज़ों से पता चला है कि एक जुलाई से 10 जुलाई के बीच 17वें चरण में कलकत्ता ब्रांच से 97.31 करोड़ रुपये, चेन्नई ब्रांच से 30 करोड़ रुपये और हैदराबाद ब्रांच से 10 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड बेचे गए थे.

//
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

आरटीआई के तहत प्राप्त किए गए दस्तावेज़ों से पता चला है कि एक जुलाई से 10 जुलाई के बीच 17वें चरण में कलकत्ता ब्रांच से 97.31 करोड़ रुपये, चेन्नई ब्रांच से 30 करोड़ रुपये और हैदराबाद ब्रांच से 10 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड बेचे गए थे.

(प्रतीकात्मक तस्वीर: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: चुनावी माहौल न होने के बावजूद एक जुलाई से 10 जुलाई के बीच 17वें चरण में 150.51 करोड़ रुपये का विवादित चुनावी बॉन्ड बेचा गया है. इसमें से 64 फीसदी से अधिक की राशि भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के कोलकाता ब्रांच से बेची गई है.

कोमोडोर लोकेश बत्रा (रिटायर्ड) द्वारा दायर किए गए सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत ये जानकारी सामने आई है.

एसबीआई ने बीते दो अगस्त को भेजे अपने जवाब में बताया है कि 17वें चरण के दौरान कुल बॉन्ड में से कलकत्ता ब्रांच से 97.31 करोड़ रुपये, चेन्नई ब्रांच से 30 करोड़ रुपये और हैदराबाद ब्रांच से 10 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड बेचे गए थे.

खास बात ये है इस दौरान खरीदे गए कुल बॉन्ड को एसबीआई की सिर्फ दो शाखाओं में भुनाया गया है. इसमें से 107.56 करोड़ रुपये के बॉन्ड को कलकत्ता ब्रांच और बाकी के 42.95 करोड़ रुपये के बॉन्ड को नई दिल्ली ब्रांच में भुनाया गया है.

इसमें से 126 करोड़ रुपये के बॉन्ड एक-एक करोड़ रुपये वाले थे. वहीं 23.60 करोड़ रुपये के बॉन्ड 10-10 लाख रुपये वाले, 90 लाख रुपये के बॉन्ड एक लाख रुपये वाले और 1.30 लाख रुपये के बॉन्ड दस हजार रुपये वाले थे. 17वें चरण में एक हजार रुपये का एक भी बॉन्ड नहीं बेचा गया.

देश के चार राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश में मार्च-अप्रैल में हुए विधानसभा चुनावों के बीच 695 करोड़ रुपये से अधिक का चुनावी बॉन्ड बेचा गया था.

उस समय एसबीआई ने बताया था कि 16वें चरण में एक अप्रैल से 10 अप्रैल के बीच कुल 974 चुनावी बॉन्ड बेचे थे, जिसकी कुल कीमत 695.34 करोड़ रुपये थी. यह 15वें चरण में बेचे गए कुल चुनावी बॉन्ड की तुलना में करीब 16 गुना अधिक थी.

साल 2018 से लेकर जुलाई 2021 तक कुल 17 चरणों में 7,380.63 करोड़ रुपये के गोपनीय चुनावी बॉन्ड बेचे जा चुके हैं, जिनका मुख्य मकसद राजनीतिक दलों को चंदा देना है.

अब तक बेचे गए कुल चुनावी बॉन्ड की राशि में से 92.30 फीसदी हिस्सा (6812 करोड़ रुपये) एक करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड का है. दूसरे नंबर पर दस लाख रुपये वाला बॉन्ड है, जिसकी कुल राशि में हिस्सेदारी महज 7.36 फीसदी (549.40 करोड़ रुपये) है.

जाहिर है कि इतने महंगे राशि वाले चुनावी बॉन्ड बड़े उद्योगपतियों, कॉरपोरेट जगत के लोगों एवं अन्य धनकुबेरों द्वारा खरीदा जाता है.

यदि संख्या में देखें तो एसबीआई ने अब तक कुल 14,363 चुनावी बॉन्ड बेचे हैं, जिसमें एक हजार, दस हजार, एक लाख, दस लाख और एक करोड़ रुपये के बॉन्ड शामिल हैं.

एसबीआई द्वारा बेचे गए कुल 7,380.63 करोड़ रुपये के बॉन्ड में से अब तक कुल 7,336.03 करोड़ रुपये के बॉन्ड को भुनाया जा चुका है. वहीं 20.28 करोड़ रुपये के बॉन्ड को भुनाया जाना अभी बाकी है.

चुनावी बॉन्ड को लेकर क्यों है विवाद

चुनाव नियमों के मुताबिक, यदि कोई व्यक्ति या संस्थान 2,000 रुपये या इससे अधिक का चंदा किसी पार्टी को देता है तो राजनीतिक दल को दानकर्ता के बारे में पूरी जानकारी देनी पड़ती है.

हालांकि चुनावी बॉन्ड ने इस बाधा को समाप्त कर दिया है. अब कोई भी एक हजार से लेकर एक करोड़ रुपये तक के चुनावी बॉन्ड के जरिये पार्टियों को चंदा दे सकता है और उसकी पहचान बिल्कुल गोपनीय रहेगी.

इस माध्यम से चंदा लेने पर राजनीतिक दलों को सिर्फ ये बताना होता है कि चुनावी बॉन्ड के जरिये उन्हें कितना चंदा प्राप्त हुआ.

इसलिए चुनावी बॉन्ड को पारदर्शिता के लिए एक बहुत बड़ा खतरा माना जा रहा है. इस योजना के आने के बाद से बड़े राजनीतिक दलों को अन्य माध्यमों (जैसे चेक इत्यादि) से मिलने वाले चंदे में गिरावट आई है और चुनावी बॉन्ड के जरिये मिल रहे चंदे में बढ़ोतरी हो रही है.

साल 2018-19 में भाजपा को कुल चंदे का 60 फीसदी हिस्सा चुनावी बॉन्ड से प्राप्त हुआ था. इससे भाजपा को कुल 1,450 करोड़ रुपये की आय हुई थी. वहीं वित्त वर्ष 2017-2018 में भाजपा ने चुनावी बॉन्ड से 210 करोड़ रुपये का चंदा प्राप्त होने का ऐलान किया था.

चुनावी बॉन्ड योजना को लागू करने के लिए मोदी सरकार ने साल 2017 में विभिन्न कानूनों में संशोधन किया था.

चुनाव सुधार की दिशा में काम कर रही गैर-सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने इन्हीं संशोधनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. हालांकि कई बार से इस सुनवाई को लगातार टाला जाता रहा है.

याचिका में कहा गया है कि इन संशोधनों की वजह से विदेशी कंपनियों से असीमित राजनीतिक चंदे के दरवाजे खुल गए हैं और बड़े पैमाने पर चुनावी भ्रष्टाचार को वैधता प्राप्त हो गई है. साथ ही इस तरह के राजनीतिक चंदे में पूरी तरह अपारदर्शिता है.

साल 2019 में चुनावी बॉन्ड के संबंध में कई सारे खुलासे हुए थे, जिसमें ये पता चला कि आरबीआई, चुनाव आयोग, कानून मंत्रालय, आरबीआई गवर्नर, मुख्य चुनाव आयुक्त और कई राजनीतिक दलों ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर इस योजना पर आपत्ति जताई थी. हालांकि वित्त मंत्रालय ने इन सभी आपत्तियों को खारिज करते हुए चुनावी बॉन्ड योजना को पारित किया था.