डॉ. कफ़ील ख़ान 2017 में उस समय सुर्खियों में आए थे, जब गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में एक सप्ताह के भीतर 60 से ज़्यादा बच्चों की मौत कथित तौर पर ऑक्सीजन की कमी से हो गई थी. इस घटना के बाद इंसेफेलाइटिस वार्ड में तैनात डॉ. ख़ान को निलंबित कर दिया गया था. वह लगभग नौ महीने तक जेल में भी रहे थे.
नई दिल्लीः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज से डॉ. कफील खान को चार सालों के लिए निलंबित किए जाने के मामले पर उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा है.
दरअसल कफील खान ने अपने निलंबन को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की थी, जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सरकार से कफील खान को निलंबित रखने का कारण पूछा है.
इसके साथ ही अदालत ने यूपी सरकार से अभी तक मामले में विभागीय कार्यवाही पूरी नहीं होने पर भी सवाल किया है.
जस्टिस यशवंत वर्मा की पीठ ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार निलंबन के इस आदेश का औचित्य बताने के लिए बाध्य है.
बता दें कि दो सितंबर 2017 को डॉ. कफील खान को गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में कथित तौर पर ऑक्सीजन की कमी से नवजातों की मौत के मामले में गिरफ्तार किया गया था. वह लगभग नौ महीने तक जेल में रहे थे. वह इस मामले में नौ आरोपियों में से एक थे.
नवजातों की मौत के दो साल बाद 27 सितंबर 2019 को कफील खान को मामले में सभी आरोपों से बरी कर दिया गया था. अस्पताल की आंतरिक जांच समिति ने उन्हें मामले में आरोप मुक्त कर दिया था.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, कफील खान के साथ निलंबित किए गए अन्य सभी आरोपियों को बहाल कर दिया गया है, लेकिन कफील को कई जांच में क्लीनचिट मिलने के बाद भी बहाल नहीं किया गया.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, गोरखपुर अस्पताल में ऑक्सीजन सप्लाई की कथित कमी के बाद कफील खान ने कई नवजातों की जिंदगी बचाने के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था की थी.
इसके बावजूद आईपीसी की धारा 409 (आपराधिक विश्वासघात), 308 (गैर इरादतन हत्या का प्रयास) और 120बी (आपराधिक षड्यंत्र) के तहत उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई.
उन पर यह भी आरोप लगाया गया कि मेडिकल ऑक्सीजन की कमी का कारण उनकी लापरवाही थी.
हालांकि, जांच समिति का कहना है कि वह इंसेफलाइटिस वॉर्ड के नोडल अधिकारी नहीं थे और उनकी लापरवाही की वजह से मौतें नहीं हुईं.
बता दें कि कफील खान ने 12 दिसंबर 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएए) के विरोध में हुए प्रदर्शनों के दौरान भाषण दिया था, जिसके बाद उनके खिलाफ भड़काऊ भाषण देने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई थी. इसके बाद उत्तर प्रदेश विशेष कार्यबल ने उन्हें मुंबई में गिरफ्तार भी किया था, जहां कफील सीएए विरोधी प्रदर्शनों में हिस्सा लेने गए थे.
अलीगढ़ की एक अदालत ने उन्हें जमानत दी थी, लेकिन उन्हें जेल से रिहा नहीं किया गया था, क्योंकि उत्तर प्रदेश पुलिस ने उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत मामला दर्ज किया गया था.
पिछले साल सितंबर में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एनएसए के तहत कफील की हिरासत को रद्द कर दिया था और सरकार को उन्हें तुरंत रिहा करने के निर्देश दिए थे.
यहां तक कि तत्कालीन चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था.
डॉ. खान 2017 में उस समय सुर्खियों में आए थे जब बीआरडी मेडिकल कॉलेज, गोरखपुर में एक सप्ताह के भीतर 60 से ज्यादा बच्चों की मौत कथित तौर पर ऑक्सीजन की कमी से हो गई थी.
इस घटना के बाद इंसेफलाइटिस वार्ड में तैनात डॉ. खान को मेडिकल कॉलेज से निलंबित कर दिया गया था. उन्हें इंसेफलाइटिस वार्ड में अपने कर्तव्यों का निर्वहन और एक निजी प्रैक्टिस चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
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