जमीयत उलेमा-ए-हिंद की गुजरात इकाई ने गुजरात धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम 2021 के ख़िलाफ़ याचिका दायर की है. उनकी ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ने मामले की वर्चुअल सुनवाई के दौरान कहा कि संशोधित क़ानून में अस्पष्ट शर्तें हैं, जो विवाह के मूल सिद्धांतों और संविधान के अनुच्छेद 25 में निहित धर्म के प्रचार, आस्था और अभ्यास के अधिकार के ख़िलाफ़ है.
अहमदाबादः गुजरात हाईकोर्ट ने शादी के जरिये जबरन या धोखाधड़ी से धर्मांतरण को निषेध करने वाले एक नए कानून के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर गुरुवार को राज्य सरकार को नोटिस जारी किया.
याचिका पर सुनवाई कर रही हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस विक्रमनाथ और जस्टिस बीरेन वैष्णव की पीठ ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा. मामले की अगली सुनवाई 17 अगस्त को होगी.
पिछले महीने जमीयत उलेमा-ए-हिंद की गुजरात इकाई ने गुजरात धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम 2021 के खिलाफ याचिका दायर की है.
बता दें कि इस अधिनियम को 15 जून को अधिसूचित किया गया था.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मिहिर जोशी ने गुरुवार को मामले की वर्चुअल सुनवाई के दौरान कहा कि संशोधित कानून में अस्पष्ट शर्तें हैं, जो विवाह के मूल सिद्धांतों और संविधान के अनुच्छेद 25 में निहित धर्म के प्रचार, आस्था और अभ्यास के अधिकार के खिलाफ है.
अधिवक्ता जोशी ने कहा, ‘अगर मैं कहता हूं कि शादी के बाद बेहतर जीवन का आनंद उठाएंगे तो क्या यह प्रलोभन है, जैसा कि कानून में कहा गया है और जिसे अपराध के समान बताया गया है? कानून कहता है कि किसी भी शख्स का जबरन, प्रलोभन, धोखे के जरिये या शादी कर धर्मांतरण नहीं कराया जाएगा, इसलिए अगर विभिन्न धर्मों के दो लोग शादी करते हैं तो यह अपराध है. यह कानून परिवार के दूरस्थ सदस्यों को भी आपराधिक शिकायत दर्ज कराने की अनुमति देता है.’
जस्टिस वैष्णव ने सरकारी वकील मनीषा लवकुमार को संबोधित करते हुए कहा, अगर कोई शख्स किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति से शादी करता है, तो आप पहले उसे जेल भेजेंगे और फिर जांचेंगे कि क्या यह शादी जबरन की गई या नहीं.
सरकारी अधिवक्ता ने कानून की जांच करने और इस पर उठाई गईं आपत्तियों का जवाब देने के लिए समय मांगा, जिसके बाद मामले की सुनवाई 17 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दी गई.
मालूम हो कि राज्य सरकार ने विधानसभा के बजट सत्र के दौरान गुजरात धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक को पारित किया था और राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने 22 मई को इसे मंजूरी दी थी.
यह कानून 15 जून को प्रभावी हुआ था और इसके बाद से गुजरात के विभिन्न पुलिस थानों में कई एफआईआर दर्ज की जा चुकी है.
(समाचार एजेंसी पीटीआई से इनपुट के साथ)