राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में देश के शीर्ष सात आईआईटी से ग्रेजुएशन के दौरान ही पढ़ाई छोड़ने वाले आरक्षित श्रेणी के लगभग 63 फ़ीसदी छात्रों में लगभग 40 फ़ीसदी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय से आते हैं. वहीं, कुछ संस्थानों में ऐसे छात्रों का प्रतिशत 72 तक है.
नई दिल्ली: पिछले पांच वर्षों में देश के शीर्ष सात भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) में से ग्रेजुएशन के दौरान ही पढ़ाई छोड़ने वाले (ड्रॉपआउट) लगभग 63 फीसदी छात्र आरक्षित श्रेणी से आते हैं. यह जानकारी बीते 5 अगस्त को राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा दिए गए आंकड़ों से सामने आई.
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, पढ़ाई छोड़ने वाले आरक्षित श्रेणी के इन 63 फीसदी अंडरग्रेजुएट छात्रों में लगभग 40 फीसदी अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदाय से आते हैं.
वहीं, कुछ संस्थानों में ऐसे एससी/एसटी छात्रों का प्रतिशत 72 तक है.
इससे यह संकेत मिलता है कि इन पाठ्यक्रमों को छोड़ने वाले असमान रूप से समाज के वंचित तबके से आते हैं, जबकि केवल आधे अंडरग्रेजुएट आरक्षित श्रेणी से आते हैं, उसमें भी लगभग 23 फीसदी एससी/एसटी समुदाय से होते हैं.
बता दें कि दलित और आदिवासी कार्यकर्ता लंबे समय से यह बहस छेड़ते आ रहे हैं कि इन समुदायों से आने वाले छात्र इन प्रतिष्ठित संस्थानों में बहुत अधिक दबाव और भेदभाव का सामना करते हैं.
हालांकि, केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने राज्यसभा में बताया कि पढ़ाई छोड़ने वाले या तो किसी अन्य विभाग या संस्थान में दाखिले के कारण सीट छोड़कर चले गए या फिर किसी निजी कारण से ऐसा किया.
वह केरल से आने वाले सांसद वी. शिवदासन के सवालों का जवाब दे रहे थे. शिवदासन ने केंद्र द्वारा वित्तपोषित तकनीकी संस्थानों में पढ़ाई छोड़ने वाले अंडरग्रेजुएट, सामाजिक श्रेणी के आधार पर उनमें अंतर और इसे दूर करने के लिए किए गए उपाय को लेकर सवाल पूछा था.
मंत्री ने ऐसे छात्रों को पढ़ाई छोड़ने से रोकने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में बताया, जिसमें गरीब वित्तीय पृष्ठभूमि वाले छात्रों को उनकी शिक्षा को आगे बढ़ाने में सहायता करने के लिए फीस में कमी, संस्थान की ओर से छात्रवृत्ति और राष्ट्रीय स्तर की छात्रवृत्ति के लिए प्राथमिकता की सूची सूचीबद्ध किया जाना शामिल है.
राष्ट्रीय संस्थान रैंकिंग में आने वाले शीर्ष 10 में सात आईआईटी के विश्लेषण से पता चलता है कि कुछ संस्थानों में पढ़ाई छोड़ने वालों में असमानता अधिक है.
सबसे खराब रिकॉर्ड आईआईटी, गुवाहाटी का है, जिसमें 25 में से पढ़ाई छोड़ने वाले 88 फीसदी आरक्षित श्रेणी से आते हैं. वास्तव में पढ़ाई छोड़ने वाले तीन चौथाई छात्र एससी/एसटी समुदायों से आते हैं, जबकि इन संस्थानों में उनकी हिस्सेदारी बाकी समुदायों से आने वाले छात्रों के मुकाबले एक चौथाई होती है.
साल 2018 में आईआईटी दिल्ली से पढ़ाई छोड़ने वाले सभी 10 छात्र आरक्षित श्रेणी से थे. यही नहीं, यह सिलसिला साल 2019 को छोड़कर लगातार चलता रहा.
आईआईटी दिल्ली से पढ़ाई छोड़ने वाले आधे से अधिक छात्र एससी/एसटी समुदाय से हैं, जबकि 76 फीसदी पढ़ाई छोड़ने वाले आरक्षित श्रेणी से हैं,
शीर्ष स्थान वाले आईआईटी मद्रास से पिछले पांच सालों में केवल 10 छात्रों ने पढ़ाई छोड़ी है, लेकिन उनमें से भी छह एससी/एसटी से हैं और एक अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदाय का छात्र है. कुल मिलाकर संस्थान से पढ़ाई छोड़ने वाले 70 फीसदी आरक्षित समुदाय से आते हैं.
वहीं, आईआईटी खड़गपुर से सबसे अधिक छात्रों से पढ़ाई छोड़ी है. वहां से पिछले पांच सालों में 79 छात्रों से पढ़ाई छोड़ी है, जिनमें से 60 फीसदी से अधिक आरक्षित समुदाय से आते हैं.
इन सबके बीच आईआईटी बॉम्बे का सबसे अच्छा रिकॉर्ड है, जहां पढ़ाई छोड़ने वाले आरक्षित वर्ग के छात्रों की संख्या कुल छात्र संख्या में उनके हिस्से के अनुपात में है. हालांकि, एससी/एसटी के छात्रों का प्रदर्शन बदतर रहा.