अहमदाबाद, वडोदरा, सूरत, राजकोट, भावनगर और जामनगर के सरकारी मेडिकल कॉलेजों के कम से कम 2,000 रेजिडेंट डॉक्टर बुधवार शाम से मुख्य रूप से बॉन्ड सेवा अवधि और सातवें वेतन आयोग के मुद्दे पर हड़ताल पर हैं. मुख्यमंत्री विजय रूपाणी और उपमुख्यमंत्री एवं स्वास्थ्य मंत्री नितिन पटेल डॉक्टरों की मांगों को अवैध ठहराते हुए महामारी अधिनियम के तहत कार्रवाई की चेतावनी दे चुके हैं.
अहमदाबाद/राजकोट/वडोदरा: बीते शुक्रवार को गुजरात के उपमुख्यमंत्री व स्वास्थ्य मंत्री नितिन पटेल द्वारा 4 अगस्त से छह सरकारी मेडिकल कॉलेजों के 2,000 रेजिडेंट डॉक्टरों द्वारा आहूत हड़ताल को अवैध करार देने और ड्यूटी पर न लौटने पर महामारी रोग अधिनियम लागू करने की धमकी देने के एक दिन बाद जामनगर और वडोदरा सरकारी मेडिकल कॉलेजों के डीन ने हॉस्टलों में प्रवेश रोककर हड़ताली डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने सूरत में एक कार्यक्रम के इतर मीडियाकर्मियों को संबोधित करते हुए दोहराया कि बॉन्डेड डॉक्टरों की मांगें वैध नहीं हैं.
रूपाणी ने कहा, ‘उपमुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया haiकि कोई कोविड-19 नहीं है, अस्पतालों में कोई मामला नहीं है, कोई डॉक्टर (कोविड-19) ड्यूटी पर नहीं हैं, ऐसे में बॉन्ड को लागू नहीं करने की मांग वैध नहीं है.’
बता दें कि आंदोलनकारी रेजिडेंट डॉक्टर अहमदाबाद, वडोदरा, सूरत, राजकोट, भावनगर और जामनगर के सरकारी मेडिकल कॉलेजों के हैं. इनमें से ज्यादातर ने हाल में अपना स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम पूरा किया है. इन अस्पतालों के कम से कम 2,000 रेजिडेंट डॉक्टर बुधवार शाम से मुख्य रूप से बॉन्ड सेवा अवधि और सातवें वेतन आयोग के मुद्दे पर हड़ताल पर हैं.
मौजूदा नियमों के अनुसार, एक डॉक्टर को मास्टर्स कोर्स के लिए नामांकन के समय 10 लाख रुपये का बॉन्ड और एक वचन देना होता है कि वह मास्टर्स डिग्री प्राप्त करने के बाद ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी अस्पतालों में तीन साल तक काम करेगा. जो लोग तीन साल तक सरकारी अस्पतालों में सेवा नहीं देना चाहते थे, उन्हें सरकार को 10 लाख रुपये का भुगतान करना पड़ता था.
हालांकि, महामारी के कारण राज्य सरकार ने इस साल 12 अप्रैल को इन डॉक्टरों को बॉन्ड मूल्य को 40 लाख रुपये तक बढ़ाते हुए अपने बॉन्ड की अवधि को एक वर्ष तक कम करने की पेशकश की.
इस साल अप्रैल में, जब कोविड-19 मामले बढ़ रहे थे तब राज्य सरकार ने घोषणा की थी कि कोविड-19 ड्यूटी के एक दिन को दो दिनों की बॉन्ड ड्यूटी के बराबर माना जाएगा. इस प्रकार, कोविड-19 वार्डों में छह महीने की अवधि को एक वर्ष की बॉन्ड अवधि के रूप में माना जाएगा.
हालांकि, जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन ने एक बयान में कहा कि जुलाई में जब कोविड -19 मामलों में काफी गिरावट आई, तो एक नई अधिसूचना जारी की गई जिसमें कहा गया कि पिछले 1:2 के बजाय 1: 1 दिन का फॉर्मूला बहाल कर दिया गया है.
अब रेजिडेंट डॉक्टरों ने मांग की है कि पुराने 1:2 दिन के फॉर्मूले को बहाल किया जाए और सातवें वेतन आयोग के अनुसार वेतन प्रदान किया जाए. आंदोलनकारी डॉक्टर यह भी चाहते हैं कि सरकार बॉन्ड अवधि के दौरान उन्हें दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों के बजाय उनके मातृ संस्थानों में उन्हें तैनात करे.
वडोदरा के एसएसजी अस्पताल के कम से कम 600 जूनियर डॉक्टरों और इंटर्न के पूरी तरह से हड़ताल पर जाने के बाद शुक्रवार को बड़ौदा मेडिकल कॉलेज के प्रबंधन ने हड़ताली डॉक्टरों को एक नोटिस जारी कर तत्काल प्रभाव से कमरे खाली करने का निर्देश दिया.
वहीं, जामनगर में एमपी शाह सरकारी मेडिकल कॉलेज ने शुक्रवार को हड़ताली डॉक्टरों को सरकार के साथ बातचीत करने या अपने छात्रावास के कमरे खाली करने के लिए नोटिस दिया, जबकि डॉक्टरों ने कहा कि उनके कमरों में बिजली की आपूर्ति काट दी गई थी.
एमपी शाह मेडिकल कॉलेज की डीन डॉ. नंदिनी देसाई के कार्यालय ने शुक्रवार दोपहर गुरु गोबिंद सिंह जनरल अस्पताल में कार्यरत 80 डॉक्टरों के छात्रावास के कमरों के दरवाजों पर नोटिस चस्पा कर हड़ताल खत्म करने या छात्रावास खाली करने को कहा.
डीन के दफ्तर से जारी नोटिस में कहा गया, ‘हेडऑफिस से टेलीफोन पर प्राप्त निर्देशों के अनुसार, हड़ताल पर जाने वाले इस कॉलेज के पोस्ट ग्रेजुएट रेजिडेंट्स (पीजी) और इंटर्न के साथ-साथ ग्रुप-ए के बॉन्डेड डॉक्टरों को पीजी हॉस्टल और इंटर्न हॉस्टल खाली करने के लिए कहा जाता है.’
डॉ. देसाई ने कहा, ‘उन्हें अपनी हड़ताल पर रोक लगाने को कहा गया है या उन्हें छात्रावास खाली करना होगा. यह सिर्फ उन्हें दिया गया प्रारंभिक निर्देश है. सभी स्तरों पर बातचीत चल रही है और हम उन्हें समझाने की कोशिश कर रहे हैं और हम उन्हें परामर्श दे रहे हैं और हम उच्च अधिकारियों से भी संपर्क कर रहे हैं.’
उन्होंने आगे कहा कि हड़ताली डॉक्टरों और सरकार के बीच बातचीत शुरू होने पर नोटिस रद्द कर दिया जाएगा.
लंबे समय से लंबित अपनी मांगों को मनवाने के लिए जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर आपातकालीन सेवाओं को छोड़कर हड़ताल पर थे. हालांकि, गतिरोध खत्म न होने पर डॉक्टरों ने आपातकालीन सेवाओं में भागीदारी बंद कर दी.
जामनगर के एक बॉन्डेड रेजिडेंट डॉक्टर ने कहा, ‘हमने तीन दिन पहले स्वास्थ्य आयुक्त डॉ. जयप्रकाश शिवहरे को एक आवेदन दिया था, जिसमें कहा गया था कि हमारे साथ उचित व्यवहार नहीं किया जा रहा था क्योंकि हम कुछ महीने पहले ही सरकार के सुझाव पर उच्च मूल्य के बॉन्ड पर हस्ताक्षर करने के लिए सहमत हुए थे क्योंकि हमें वादा किया गया था कि कोविड-19 ड्यूटी का एक दिन दो दिन की बॉन्ड अवधि मानी जाएगी. लेकिन अब सरकार अपने आश्वासन से मुकर गई है, जबकि हम महामारी से बाहर नहीं आए हैं.’
डॉक्टर ने आगे कहा, ‘तथ्य यह है कि सरकार हमें महामारी रोग अधिनियम के तहत हमारे खिलाफ कार्रवाई शुरू करने की धमकी दे रही है, यह इस बात का प्रमाण है कि हम अभी भी महामारी से जूझ रहे हैं. अगर हम बॉन्ड की अवधि नहीं पूरी करना चाहते हैं तो जामनगर, राजकोट, भावनगर और सूरत के डॉक्टरों को 40 लाख रुपये देने होंगे. वहीं, अहमदाबाद और वडोदरा में बॉन्ड की राशि 10 लाख रुपये ही है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)