उत्तराखंड: क्या सूखाताल में हो रहा निर्माण कार्य नैनी झील के अस्तित्व के लिए ख़तरा है

नैनीताल के मल्लीताल से क़रीब आठ सौ मीटर दूर स्थित सूखाताल नैनी झील के कैचमेंट के तेरह रिचार्ज ज़ोन में सबसे महत्वपूर्ण है. कुमाऊं मंडल विकास निगम व नैनीताल ज़िला स्तरीय विकास प्राधिकरण द्वारा यहां पर्यटन के उद्देश्य से करवाए रहे निर्माण कार्य से नैनी झील के लिए संकट उत्पन्न होने की आशंकाएं जताई जा रही हैं. 

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सूखाताल में चल रहा निर्माण कार्य. (फोटो: कविता उपाध्याय)

नैनीताल के मल्लीताल से क़रीब आठ सौ मीटर दूर स्थित सूखाताल नैनी झील के कैचमेंट के तेरह रिचार्ज ज़ोन में सबसे महत्वपूर्ण है. कुमाऊं मंडल विकास निगम व नैनीताल ज़िला स्तरीय विकास प्राधिकरण द्वारा यहां पर्यटन के उद्देश्य से करवाए रहे निर्माण कार्य से नैनी झील के लिए संकट उत्पन्न होने की आशंकाएं जताई जा रही हैं.

सूखाताल में चल रहा निर्माण कार्य और झील क्षेत्र में बने भवन. (फोटो: कविता उपाध्याय)

नैनीताल: नवंबर 18, 1841 को एक ब्रिटिश व्यापारी पी. बैरन तथा उनके साथ दो अन्य लोग कुमाऊं के पहाड़ों में भ्रमण कर रहे थे. उन्हें एक बहुत ही ख़ूबसूरत झील दिखी जिसके सभी और घने जंगल थे. साफ पानी, ठंडा मौसम और विस्मित कर देने वाली सुंदरता से मंत्रमुग्ध अंग्रेज़ों ने उस दिन नैनीताल की खोज कर ली थी.

नैनी झील शहर नैनीताल के अस्तित्व का अभिन्न अंग है. अपनी सुंदरता के साथ-साथ यह शहर की आबादी के लिए पानी का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्रोत भी है. पर नैनी झील अपने अस्तित्व के लिए अपने आसपास की अन्य झीलों पर निर्भर है, जिनमें यहां से करीब 800 मीटर दूर सूखाताल सबसे महत्वपूर्ण है.

सेंटर फॉर इकोलॉजी डेवलपमेंट एंड रिसर्च की वर्ष 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार नैनी झील के जलागम (कैचमेंट) में 13 रिचार्ज ज़ोन हैं, जिनमें 21,467 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में फैला सूखाताल सबसे महत्वपूर्ण है.

राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, रुड़की का शोध कहता है कि सूखाताल नैनी झील को 40 प्रतिशत से ज्यादा सब-सरफेस फ्लो यानी उपसतह प्रवाह प्रदान करता है.

नैनी झील के एक छोर, मल्लीताल से लगभग 800 मीटर दूर चम्मच जैसी आकृति का सूखाताल एक बरसाती झील है. स्थानीय निवासी वीरेंद्र सिंह बताते हैं, ‘पहले यहां बरसात में पानी भर जाया करता था और 90 के दशक में तो यहां बाढ़ भी आई थी. लेकिन बीते कई वर्षों से यह झील सूख गई है.’

क्या पुनर्जीवित होगा सूखाताल

जहां कभी पानी हुआ करता होगा, बरसात का मौसम होने के बावजूद वह जगह आजकल सूखी है. गड्ढे पर मलबा फैला हुआ है. कई मजदूरों और जेसीबी की मदद से यहां से मलबा हटाया जा रहा है.

इसका कारन है कि यहां एक कृत्रिम झील बनाई जानी है, जिसके लिए सुरक्षा दीवार बन रही है. सूखी झील के आसपास कई घर, दुकानें, रोड और कार पार्किंग हैं.

यह कृत्रिम झील कुमाऊं मंडल विकास निगम (केएमवीएन) और नैनीताल ज़िला स्तरीय विकास प्राधिकरण द्वारा बनाए जा रहे प्रोजेक्ट का हिस्सा है, जिसके अंतर्गत सूखाताल को एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाना है.

केएमवीएन ने 27 मई 2021 से 29.16 करोड़ रुपये के इस प्रोजेक्ट पर कार्य भी प्रारम्भ कर दिया है. परियोजना के अनुसार, यहां एक प्राकृतिक झील भी विकसित की जाएगी. इसके अलावा फूड कोर्ट, एम्यूज़मेंट पार्क, दुकानें एवं पार्किंग एरिया भी इस क्षेत्र में प्रस्तावित है.

केएमवीएन और प्राधिकरण के अधिकारियों का लक्ष्य सूखाताल को एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना तो है ही, साथ ही उनका मानना है कि इससे अवैध निर्माण पर भी रोक लगेगी.

प्राधिकरण सचिव पंकज कुमार उपाध्याय के अनुसार, सूखाताल झील के बड़े हिस्से में अवैध निर्माण हो चुका है. वे कहते हैं, ‘सूखाताल में कुल 44 भवन गैर कानूनी हैं. अगर हम सूखाताल के बचे हुए क्षेत्र में अपना प्रोजेक्ट नहीं लाएंगे, तो भविष्य में इस पूरे क्षेत्र में अवैध भवनों का कब्ज़ा हो जाएगा.’

पिछले दशक में सूखाताल झील क्षेत्र में अवैध निर्माण बढ़ा है. झील क्षेत्र लाल रेखा से और अवैध निर्माण पीली रेखा से रेखांकित है. (फोटो: गूगल अर्थ/रेखांकन: दिशा चौहान)

अदालत में लगाई गई गुहार

साल 2012 में इतिहासकार व एक्टिविस्ट अजय सिंह रावत ने उत्तराखंड हाईकोर्ट में सूखाताल से अवैध निर्माण हटाने को लेकर एक जनहित याचिका दायर की थी. पर एक दशक बाद भी स्थिति वैसी ही है. इसीलिए 14 जुलाई 2021 को जब प्रशासन और सिविल सोसाइटी के लोगों के बीच सूखाताल प्रोजेक्ट को लेकर बैठक हुई, तो रावत द्वारा इस प्रोजेक्ट का समर्थन यह कहकर किया गया कि यह प्रोजेक्ट बाकी बचे सूखाताल का बचा रहना सुनिश्चित कर सकता है.

लेकिन लक्ष्य अवैध निर्माण रोकना ही नहीं, बल्कि सूखाताल को उसके नैसर्गिक रूप में वापस लाना भी है. विशेषज्ञों का कहना है कि यदि सूखाताल क्षेत्र में कोई भी कार्य अच्छी तरह जांच-पड़ताल के बाद नहीं हुआ, तो सूखाताल के साथ साथ नैनी झील को भी खतरा होगा.

नैनी झील पर बढ़ता संकट

मई 2016 और जून 2017 में नैनी झील का जलस्तर माइनस 7.1 फीट पहुंच गया था यानी झील के भरने के अधिकतम स्तर 12 फीट से लगभग 19 फीट नीचे.

कम वर्षा व प्रतिदिन नैनी झील द्वारा शहर की इकतालीस हजार से ज्यादा की आबादी, औसतन दस हजार पर्यटक और दस हजार बोर्डिंग स्कूल के बच्चों के लिए पानी उपलब्ध कराने के चलते जलस्तर इतना नीचे चला गया था कि झील की सतह पर मौजूद चट्टानें तक दिखने लगी थीं.

झील की इस दुर्दशा को देखते हुए उसी वर्ष झील के रखरखाव की ज़िम्मेदारी लोक निर्माण विभाग से हटाकर सिंचाई विभाग को दे दी गई.

सिंचाई विभाग में एग्ज़ीक्यूटिव इंजीनियर रह चुके हरीशचंद्र सिंह का कहना है कि झील के जलस्तर को बनाए रखने हेतु जनवरी 2018 से जल आपूर्ति के लिए प्रतिदिन निकाले जा रहे 1.6 करोड़ लीटर पानी को उनके आदेशानुसार घटाकर 80 लाख लीटर (औसतन) कर दिया गया.

इस घटनाक्रम से नैनी झील में जलस्तर बनाए रखने हेतु झील के कैचमेंट और सूखाताल की नैनी झील के रिचार्ज ज़ोन के रूप में महत्ता भी लोगों को समझ में आने लगी.

हाइड्रोजियोलॉजिस्ट हिमांशु कुलकर्णी, जिन्होंने हिमालयी जलस्रोतों पर उत्तराखंड और सिक्किम जैसे इलाकों में कार्य किया है, कहते हैं, ‘सूखाताल के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए. उसे अपने नैसर्गिक रूप में छोड़ देना चाहिए. तभी वह नैनी झील के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण रिचार्ज ज़ोन की तरह काम कर सकेगा.’

सूखाताल प्रोजेक्ट के अंतर्गत कृत्रिम झील लगभग दस हजार वर्ग मीटर की होगी, जो 1.2 मीटर गहरी होगी. झील के फ़र्श पर टाइल्स बिछाई जाएंगी और यहां पर नौकायन भी हो सकेगा. इसको ‘झील’ तो कहा जा रहा है पर इसकी कल्पना एक बड़े स्विमिंग पूल के रूप में की जा सकती है.

इस कृत्रिम झील के समीप 1,400 वर्ग मीटर की प्राकृतिक झील बनाई जानी है, जिसके तल को नैसर्गिक ही रखा जाएगा ताकि यहां से पानी ज़मीन के भीतर प्रविष्ट हो और नैनी झील रिचार्ज हो सके.

परियोजना के बाद के सूखाताल की परिकल्पना. (फोटो साभार: नैनीताल ज़िला स्तरीय विकास प्राधिकरण)

सेंटर फॉर इकोलॉजी डेवलपमेंट एंड रिसर्च के सीनियर फेलो विशाल सिंह एक इकोलॉजिस्ट हैं और सूखाताल झील के मुद्दे पर पिछले आठ वर्षों से काम कर रहे हैं, कहते हैं कि झील में टाइल्स बिछाने से पानी इस कृत्रिम झील में ही रुका रह जाएगा. ‘अगर पानी रिसेगा ही नहीं तो सूखाताल से नैनी झील तक कैसे पहुंचेगा?’

कुमाऊं मंडल के अधिकारियों के अनुसार, इस तालाब में लगभग सात रिचार्ज पिट्स बनाए जाएंगे जिनसे समय-समय पर नियंत्रित तरीके से ज़मीन के नीचे पानी का रिसाव करवाया जाएगा. इसके अलावा, प्राकृतिक झील तो रिचार्ज का माध्यम है ही.

विशाल सिंह कहते हैं, ‘प्राकृतिक झील बहुत छोटी है, और एक नियंत्रित विधि से रिचार्ज करवाने से प्राकृतिक रिचार्ज की क्रिया को नुकसान पहुंचेगा.’

14 जुलाई 2021 को हुई एक बैठक में नैनीताल की सिविल सोसाइटी एवं विशेषज्ञों द्वारा प्रशासन को इन शंकाओं और चिंताओं से अवगत भी कराया जा चुका है.

प्राधिकरण सचिव पंकज उपाध्याय का कहना है कि सूखाताल में निर्माणाधीन परियोजना के कार्य आईआईटी, रुड़की की एक रिपोर्ट के अनुसार किए जा रहे हैं और भविष्य में भी परियोजना को लेकर इसी संस्थान से दिशा-निर्देश प्राप्त किए जाएंगे.

हालांकि अन्य विशेषज्ञ इससे सहमत नहीं हैं. उनका मानना है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, इकोलॉजी, जैव-विविधता, हाइड्रोजियोलॉजी, पर्यटन जैसे सभी बिंदुओं पर अध्ययन करने के उपरांत ही सूखाताल में कोई काम किया जाना चाहिए.

जलवायु परिवर्तन को समझना ज़रूरी

वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सस्टेनेबल डेवलपमेंट यानी सतत और समावेशी विकास की बात हो रही है, और इसके लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा 17 लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं, जिसमें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को नियंत्रण में रखना भी शामिल है. यह लक्ष्य नैनीताल और सातताल जैसे हिमालयी क्षेत्रों पर भी लागू होते हैं.

लेकिन इन क्षेत्रों में लागू हो रही परियोजनाएं इस बात का उदाहरण हैं कि हिमालयी क्षेत्र में इन लक्ष्यों की अनदेखी हो रही है.

भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी में अकादमिक फेलो डॉ. एसपी. सिंह और अल्मोड़ा स्थित जीबी पंत राष्ट्रीय पर्यावरण संस्थान के द्वारा नैनीताल में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर किया गया अध्ययन कहता है कि यहां गर्मी बढ़ रही है, जिसके कारण पेड़-पौधों से पानी वायुमंडल में जाने की दर बढ़ गई है.

हिमालयी क्षेत्रों के जल स्रोत सूख रहे हैं, और इसके पीछे जलवायु परिवर्तन एक अहम कारण माना जा रहा है.

इकोलॉजिस्ट विशाल सिंह कहते हैं, ‘हिमालयी क्षेत्रों, ख़ासतौर पर शहरों, में कोई भी निर्माण कार्य इस बात का विशेष ध्यान रखते हुए किया जाना चाहिए कि भविष्य में पानी की किल्लत इस क्षेत्र के लिए एक बहुत बड़ा संकट बनने वाली है.’

लेखक पत्रकार और शोधकर्ता हैं, जो हिमालयी क्षेत्रों के पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर लिखती हैं. 

(यह रिपोर्ट मूल रूप से कार्बन कॉपी हिंदी पर प्रकाशित हुई है.)