एमनेस्टी इंटरनेशनल के अध्ययन के अनुसार, मुआवज़ा न मिलने की वजह से 200 परिवारों की स्थिति दयनीय हो गई है.
नई दिल्ली: मानवाधिकार समूह एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने शुक्रवार को कहा कि उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर और शामली में चार साल पहले हुई सांप्रदायिक हिंसा के शिकार, कम से कम 200 परिवारों को अब तक मुआवज़ा नहीं मिला है और वे दयनीय हालत में रहने को विवश हैं.
एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने 2013 के मुज़फ़्फ़रनगर दंगे के पीड़ितों की हालत पर एक अध्ययन रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट को ‘बेघर और बेआसरा विस्थापितों से किए गए टूटे वादों की दास्तां’ नाम दिया गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि पीड़ितों से 50-50 हज़ार रुपये के मुआवज़े का वादा किया गया था, लेकिन आज भी वो इस राशि की बाट जोह रहे हैं.
संस्था की कार्यक्रम निदेशक अस्मिता बसु ने कहा, 2013 की हिंसा के दौरान इन परिवारों को अपना घर और संपत्ति छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था. लेकिन उत्तर प्रदेश में एक के बाद एक सत्तारूढ़ हुई सभी सरकारों से उन्हें निराशा हाथ लगी है.
उन्होंने कहा, राज्य सरकार पहले तो पीड़ितों को सुरक्षा मुहैया कराकर उन्हें अपने गांवों को लौटने में मदद करने में विफल रही और फिर उसने नुकसान की भरपाई और मदद भी नहीं की.
इन लोगों ने अब गैर सरकारी संगठनों और धार्मिक संस्थानों की सहायता से पुनर्वास कॉलोनियों में शरण ली है. उत्तर प्रदेश सरकार ने इन लोगों को बुनियादी सुविधाएं मुहैया नहीं कराई जो बहुत ही निराशानजक है.
एमनेस्टी की टीम ने अगस्त 2016 से अप्रैल 2017 के बीच 12 पुनर्वास कॉलोनियों का दौरा किया और इस दौरान 65 परिवारों से मुलाकात की और 200 परिवारों के दस्तावेजों का विश्लेषण किया.
संस्था के अनुसार कई परिवारों को सिर्फ इसलिए मुआवज़ा देने से इनकार कर दिया कि ये लोग उस संयुक्त परिवार का हिस्सा थे जो पहले मुआवज़ा प्राप्त कर चुके हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है, पुनर्वास कॉलोनियों में अधिकांश परिवारों को बुनियादी सेवाएं सुलभ नहीं है. अनुमान के मुताबिक मुज़फ़्फ़रनगर में करीब 82 फीसदी और शामली में 17 फीसदी कॉलोनियों में सुरक्षित और स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं है.
गौरतलब है कि 2013 की इस सांप्रदायिक हिंसा में 60 लोग मारे गए थे और 50,000 से अधिक विस्थापित हुए थे.