प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गाली-गलौज करने वाले ट्विटर हैंडल्स को फॉलो करने पर कई बार सवाल उठाए गए हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.
‘मीडिया, सेकुलर और लिबरल धौंस के सामने झुक गए? हम बिना किसी स्वार्थ के बिना थके आपके लिए काम करते हैं. ये उसका इनाम है,’
ये ट्वीट @RitaG74 का है, जिन्होंने ट्विटर पर खुद को ‘blessed to be followed by Modi’ (मोदी द्वारा फॉलो किए जाने से गौरवान्वित) लिखा है. उनका ये ट्वीट केंद्रीय क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के उस ट्वीट पर था, जहां उन्होंने वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के बाद सोशल मीडिया पर इस पर खुशी मनाने वालों की निंदा की थी. ये ‘ट्रोल’ इसीलिए नाराज़ थीं कि उन्हें इस निर्मम हत्या पर जश्न मनाने के लिए डांटा जा रहा है.
Bowed down to media, secular and liberal bullies? We work for you tirelessly, selflessly. This is the reward? https://t.co/tlc03FBM5j
— Rita 🇮🇳 (@RitaG74) September 6, 2017
ये इस तरह के हैंडल चलाने वालों की मानसिकता है. मैं इन्हें कोई एक व्यक्ति मानना चाहती हूं, लेकिन ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे ये पता चल सके कि ट्विटर के इन अकाउंट्स के पीछे कोई असल व्यक्ति भी है या फिर ये अकाउंट ऐसे व्यावसायिक स्तर पर किसी राजनीतिक उद्देश्य के चलते बनाए गए हैं- जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद फॉलो करते हैं.
मेरी किताब आई एम अ ट्रोल: इनसाइड द सीक्रेट डिजिटल आर्मी ऑफ द बीजेपी में मैंने इस बारे में विस्तार से लिखा है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसके लिए आलोचना झेल चुके मोदी ने अब तक ऐसे किसी भी अकाउंट को अनफॉलो नहीं किया है, जो नियमित रूप से नफ़रत फैलाते रहते हैं. कई अकाउंट जिन्हें प्रधानमंत्री फॉलो करते हैं, उनमें से कई बलात्कार, मौत की धमकियां भेजते हैं, सांप्रदायिक भावनाएं भड़काते हैं. मोदी दुनिया के ऐसे इकलौते नेता है, जो ऐसे हैंडल्स को फॉलो करते हैं.
मोदी द्वारा फॉलो किए जाने वाले और सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी के साथ तस्वीर लगाने वाले एक अकाउंट से गौरी लंकेश की हत्या के बाद ‘कुतिया कुत्ते की मौत मरी’ लिखा गया. इसके अलावा भी 3 ऐसे ट्विटर अकाउंट थे, जिन्होंने ऐसे ही ट्वीट किए, इन्हें भी प्रधानमंत्री फॉलो करते हैं. इस पर मोदी की काफी आलोचना हुई, जिसके बाद ट्विटर यूज़र मोदी को ब्लॉक करने लगे और #BlockNarendraModi ट्रेंड करने लगा.
इस बात में कोई शक नहीं है कि प्रधानमंत्री के पास इन बातों पर ध्यान देने की फुर्सत नहीं थी, लेकिन इस हैशटैग ने भाजपा की आईटी सेल के नेशनल हेड अमित मालवीय को स्पष्टीकरण देने पर मजबूर कर दिया.
मालवीय ने लिखा, ‘मोदी ऐसे अनूठे नेता हैं, जो अभिव्यक्ति की आज़ादी में यकीन करते हैं और उन्होंने कभी किसी को ब्लॉक या अनफॉलो नहीं किया है. प्रधानमंत्री द्वारा किसी को फॉलो करना उसका कैरेक्टर सर्टिफिकेट नहीं है, न ही ये इस बात की कोई गारंटी है कि वह व्यक्ति कैसा व्यवहार करता है. हालांकि प्रधानमंत्री राहुल गांधी को भी फॉलो करते हैं, जिन पर लूट और धोखाधड़ी के आरोप हैं. प्रधानमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी फॉलो करते हैं, जिन्होंने उन्हें गाली दी थी और एक महिला से कहा था ‘सेटल कर लो’.
मालवीय की ये बात कोरा झूठ है कि मोदी ने कभी किसी को अनफॉलो नहीं किया है. जी, ये बिल्कुल सच है. संसद में मेरी किताब हाथ में लेकर तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ’ब्रायन ने प्रधानमंत्री द्वारा इन नफरत फैलाने वाले हैंडल फॉलो करने पर के बारे में कहा था, बावजूद इसके मोदी ने एक भी ट्रोल को अनफॉलो नहीं किया.
U get jobs in bjp if u harass molest a woman n troll them till they die @narendramodi @AmitShah @rajnathsingh @BJP4Delhi .
— Dr Jwala Gurunath (@DrJwalaG) March 15, 2017
हालांकि मोदी ने ज्वाला गुरुनाथ को अनफॉलो किया है. प्रधानमंत्री की कट्टर समर्थक ज्वाला ने जब प्रधानमंत्री से ट्विटर पर तजिंदर बग्गा द्वारा उनका यौन शोषण करने की लगातार शिकायत की, तब उन्हें प्रधानमंत्री ने अनफॉलो कर दिया. तजिंदर बग्गा अब भाजपा के प्रवक्ता हैं. इससे पहले भी बग्गा द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण पर हमला करने की घटना कैमरा पर आ चुकी है. ज़ाहिर है, मोदी बग्गा को भी फॉलो करते हैं.
मालवीय का यह दावा कि मोदी अभिव्यक्ति की आज़ादी में पूरा विश्वास रखते हैं, भी खोखला है. इतना कि इसकी हंसी उड़ाई जा सकती है क्योंकि गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान मोदी ने जिन्ना पर लिखी भाजपा नेता जसवंत सिंह की किताब और जोसफ लेलीवेल्ड की किताब ग्रेट सोल: महात्मा गांधी एंड हिज़ स्ट्रगल विद इंडिया को बैन कर दिया था.
और अगर अमित के कहने के अनुसार किसी निर्मम हत्या को ‘कुतिया का कुत्ते की मौत मरना’ कहना अभिव्यक्ति की आज़ादी के मुताबिक स्वीकार्य है, तो बीते साल जवाहरलाल यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में हुए कार्यक्रम पर भाजपा और मोदी सरकार ने इतना हो-हल्ला क्यों मचाया कि एक पूरे विश्वविद्यालय को ‘एंटी नेशनल’ क़रार दे दिया गया और राष्ट्रद्रोह के मुक़दमे दायर कर दिए गए?
इसके अलावा टाइम्स ऑफ इंडिया समूह के एफएम चैनल रेडियो मिर्ची द्वारा मोदी पर बनाया गया मज़ाकिया ऑडियो ‘मित्रों’ भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की समूह के मालिक से शिकायत के बाद चैनल द्वारा हटा दिया था. यानी मोदी और भाजपा की अभिव्यक्ति की आज़ादी सेलेक्टिव यानी चयनात्मक है. ज़ाहिर है जेएनयू और प्रधानमंत्री की निंदा लिखने वाले इसके दायरे में नहीं आते. और न ही वो ट्वीट्स और ट्विटर हैंडल, जिन्हें सरकार ब्लॉक करना चाहती है- इनमें से कई राजनीतिक गॉसिप और मानवाधिकार उल्लंघन पर बात करते हैं.
मोदी की अभिव्यक्ति की आज़ादी की समझ में ही दोष है. संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में फ्री स्पीच के सबसे उदार क़ानून हैं, फिर भी हर साल सैंकड़ों लोगों पर ‘हेट स्पीच’ और मोदी द्वारा फॉलो किए जाने वाले अकाउंटों से नियमित दी जाने वाली धमकियां देने पर मुकदमे चलते हैं, उन्हें सज़ा दी जाती है. भावनाएं भड़काना, बलात्कार या जान लेने की धमकी देना अभिव्यक्ति की आज़ादी में शामिल नहीं हो सकते.
मालवीय ने जिस तरह इसमें राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल को घसीटा, वो भी हैरान करने वाला है. ये दोनों ही सार्वजनिक छवि रखते हैं. राहुल गांधी कांग्रेस के उपाध्यक्ष हैं, केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं. अमित मालवीय प्रधानमंत्री के उन्हें फॉलो करने की तुलना मोदी के ट्रोल्स को फॉलो करने से कर सकते हैं, वो भी ऐसे ट्रोल्स, जिनमें से कई तो नफ़रत का ज़हर उगलते रहते हैं. इसके अलावा, क्या राहुल गांधी या केजरीवाल ने कभी बलात्कार या जान लेने की धमकी दी है? क्या वे किसी को अपराध करने के लिए भड़काते हैं? अमित का ये दावा बिल्कुल बेतुका है.
मोदी द्वारा हिंसक हैंडलों को फॉलो करने पर उंगली उठाई गई थी. वे फिर भी ऐसे दर्ज़नों हैंडल को फॉलो करते हैं, जो असल में ट्रोल हैं. और अगर मालवीय के बयान को मानें तो वे इन्हें फॉलो करने को लेकर दृढ़ हैं. इससे पहले मोदी ने अपनी इस ट्रोल सेना के साथ प्रधानमंत्री आवास पर चाय पार्टी की थी, जहां बुलाये गए करीब 150 लोगों ने प्रधानमंत्री के साथ तस्वीर खिंचवाई और इसे अपने प्रोफाइल पर ‘डिस्प्ले पिक्चर’ के बतौर इस्तेमाल किया.
जैसा अरुण शौरी ने कहा भी था कि भाजपा के एजेंडा के लिए ख़तरा बन रहे लोगों पर हमला करने के लिए ये ट्रोल्स को प्रत्यक्ष प्रोत्साहन देना हैं. भाजपा की आईटी सेल के पास ऐसे पत्रकारों की ‘हिट लिस्ट’ है, जिन्हें लगातार निशाना बनाना है. कोई भी अगर मोदी को लेकर जरा-सा भी आलोचनात्मक होता है, तो उस पर फौरन हमले शुरू हो जाते हैं.
क्या हम इसे लोकतंत्र कह सकते हैं जब सत्ता में बैठा दल और प्रधानमंत्री सहित सरकार इस तरह आम नागरिकों को मिल रही गाली-गलौज और धमकियों में भागीदार है?
ऐसा बार-बार कहा जाता है कि प्रधानमंत्री मोदी सोशल मीडिया को लेकर जुनूनी रहते हैं. प्रधानमंत्री कार्यालय में भेजी गई एक आरटीआई के जवाब में यह बताया गया था कि प्रधानमंत्री अपने दोनों ट्विटर हैंडल खुद ही संभालते हैं. तो तैयार रहिए, क्योंकि मोदी अपने ट्रोल्स को इसी तरह ‘आशीर्वाद’ देने के लिए दृढ़ हैं और जैसे-जैसे आम चुनाव पास आएंगे, ये खेल और घटिया होता जाएगा.
(स्वाति चतुर्वेदी स्वतंत्र पत्रकार हैं और उन्होंने ‘आई एम अ ट्रोल: इनसाइड द सीक्रेट डिजिटल आर्मी ऑफ द बीजेपी’ किताब लिखी है.)
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