राज्यों को ओबीसी की अपनी सूची बनाने का अधिकार देने वाले विधेयक को संसद की मंज़ूरी

राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को अन्य पिछड़ा वर्गों की अपनी सूची बनाने का अधिकार प्रदान करने वाले ‘संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021’ को राज्यसभा में पारित कर दिया. यह विधेयक लोकसभा में 10 अगस्त को पारित हो चुका है. हालांकि विपक्ष के नेताओं का कहना है कि जब तक मौजूदा 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा है, तब तक ओबीसी को पूरी तरह न्याय नहीं मिल पाएगा.

(फोटो: पीटीआई)

राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को अन्य पिछड़ा वर्गों की अपनी सूची बनाने का अधिकार प्रदान करने वाले ‘संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021’ को राज्यसभा में पारित कर दिया. यह विधेयक लोकसभा में 10 अगस्त को पारित हो चुका है. हालांकि विपक्ष के नेताओं का कहना है कि जब तक मौजूदा 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा है, तब तक ओबीसी को पूरी तरह न्याय नहीं मिल पाएगा.

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नई दिल्ली: राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) की अपनी सूची बनाने का अधिकार प्रदान करने वाले एक महत्वपूर्ण संविधान संशोधन विधेयक को बुधवार को संसद की मंजूरी मिल गई.

आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा को समाप्त करने की विभिन्न दलों की मांग के बीच सरकार ने उच्च सदन में माना कि 30 साल पुरानी आरक्षण संबंधी सीमा के बारे में विचार किया जाना चाहिए.

राज्यसभा में बुधवार करीब छह घंटे की चर्चा के बाद ‘संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021’ को शून्य के मुकाबले 187 मतों से पारित कर दिया गया. सदन में इस विधेयक पर विपक्षी सदस्यों द्वारा लाए गए संशोधनों को खारिज कर दिया गया. यह विधेयक लोकसभा में मंगलवार को पारित हो चुका है.

इससे पहले विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र सिंह ने नरेंद्र मोदी सरकार के सामाजिक न्याय के लिए प्रतिबद्ध होने की बात कही और यह भी कहा कि 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा 30 साल पहले लगाई गई थी और इस पर विचार होना चाहिए.

इसके साथ ही उन्होंने जाति आधारित जनगणना की सदस्यों की मांग पर कहा कि 2011 की जनगणना में संबंधित सर्वेक्षण कराया गया था, लेकिन वह अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) पर केंद्रित नहीं था. उन्होंने कहा कि उस जनगणना के आंकड़े जटिलताओं से भरे थे.

मंत्री ने कहा कि सदन में इस संविधान संशोधन के पक्ष में सभी दलों के सांसदों से मिला समर्थन स्वागत योग्य है. उन्होंने कहा कि पूरे सदन ने इसका एकमत से स्वागत किया. हमारे दल अलग हो सकते हैं, विचारधारा अलग हो सकती है, प्रतिबद्धता भी अलग हो सकती है.

कुमार ने कहा कि मोदी सरकार सामाजिक न्याय के लिए प्रतिबद्ध है और इस संबंध में सरकार ने जिस तरह से कदम उठाए हैं, उससे हमारी प्रतिबद्धता झलकती है. उन्होंने विधेयक लाए जाने की पृष्ठभूमि और महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को लेकर उच्चतम न्यायलय के फैसले का भी जिक्र किया तथा कहा कि उसके बाद ही यह विधेयक लाने का फैसला किया गया.

उन्होंने कहा कि मेडिकल और डेंटल पाठ्यक्रमों में ओबीसी आरक्षण के फैसले से समुदाय के छात्रों में उत्साह का माहौल है और उन्होंने एक दिन पहले ही छात्रों के एक समूह से मुलाकात की थी. उन्होंने कहा कि छात्रों के मन में विश्वास था कि मोदी सरकार ने अगर कोई निर्णय लिया है तो उसे पूरा किया जाएगा.

मेडिकल ही नहीं बल्कि फेलोशिप, विदेशों में पढ़ाई के लिए सुविधाएं मुहैया कराए जाने पर जोर देते हुए वीरेंद्र कुमार ने कहा कि इस विधेयक से ओबीसी के लोगों को काफी लाभ मिलेगा.

उन्होंने कहा कि सरकार महान समाज सुधारकों- पेरियार, ज्योतिबा फुले, बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर, दीनदयाल उपाध्याय आदि द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करेगी. सरकार समाज के अंतिम व्यक्ति के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है और ऐसे व्यक्ति का उत्थान नहीं होता है तो विकास अधूरा है.

इससे पहले विधेयक पर हुई चर्चा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे सहित विभिन्न दलों के नेताओं ने मौजूदा 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को हटाए जाने, निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करने और जाति आधारित जनगणना कराए जाने की मांग की थी.

उन्होंने कहा कि जब तक 50 प्रतिशत की सीमा है, तब तक ओबीसी को पूरी तरह न्याय नहीं मिल पाएगा.

विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है, ‘यह विधेयक यह स्पष्ट करने के लिए है कि यह राज्य सरकार और संघ राज्य क्षेत्र को सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गो की स्वयं की राज्य सूची/संघ राज्य क्षेत्र सूची तैयार करने और उसे बनाए रखने को सशक्त बनाता है.’

इसमें कहा गया है कि देश की संघीय संरचना को बनाए रखने के दृष्टिकोण से संविधान के अनुच्छेद 342 (ए) का संशोधन करने और अनुच्छेद 338 (बी) एवं अनुच्छेद 366 में संशोधन करने की आवश्यकता है. यह विधेयक उपरोक्त उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए है.

गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने पांच मई के बहुमत आधारित फैसले की समीक्षा करने की केंद्र की याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें यह कहा गया था कि 102वां संविधान संशोधन नौकरियों एवं दाखिले में सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े (एसईबीसी) को आरक्षण देने के राज्य के अधिकार को ले लेता है.

वर्ष 2018 के 102वें संविधान संशोधन अधिनियम में अनुच्छेद 338 (बी) जोड़ा गया था जो राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के ढांचे, कर्तव्यों और शक्तियों से संबंधित है, जबकि 342 (ए) किसी विशिष्ट जाति को ओबीसी अधिसूचित करने और सूची में बदलाव करने के संसद के अधिकारों से संबंधित है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, भले ही किसी सदस्य ने विधेयक पर आपत्ति नहीं की, लेकिन विपक्ष ने जाति जनगणना के अभाव और आरक्षण के लिए राज्यों पर 50 प्रतिशत की सीमा को हटाने की मांग के बारे में कुछ चिंताओं को उठाया.

विपक्षी सांसदों ने कहा कि अगर सरकार ने 2018 में उनकी चिंताओं का समाधान किया होता तो संविधान संशोधन की आवश्यकता नहीं होती.

कांग्रेस के अभिषेक सिंघवी ने कहा कि विधेयक सरकार की अपनी गलती को दूर करने का प्रयास है. सिंघवी ने कहा कि सरकार पहले गलती नहीं करती तो उसे सुधारने की नौबत नहीं आती. अब वे ऐसा करने के लिए खुद को बधाई दे रहे हैं.

वहीं, टीएमसी सासंद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा, ‘सरकार की अक्षमता गहरी है. उन्होंने जीएसटी बिल पास किया, लेकिन बाद में 10 महीने में इसमें 376 बदलाव किए. कृषि बिलों के लिए भी उन्होंने हमारी नहीं सुनी.’

उन्होंने कहा कि लगभग सभी विपक्षी सांसद इस बात से सहमत थे कि सरकार द्वारा 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को हटाए बिना विधेयक बेकार हो जाएगा और ऐसा करने के लिए जाति-जनगणना की आवश्यकता है. उन्होंने तर्क दिया कि इन दो चरणों के बिना, 127वां संशोधन ओबीसी के लिए केवल जुबानी भुगतान के समान होगा.

सपा के रामगोपाल यादव ने कहा, ‘यह कदम राज्य सरकारों के लिए तब तक किसी काम का नहीं है, जब तक आप आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा नहीं हटाते. हमें यह जानने की जरूरत है कि पिछड़े वर्ग और जातियों में कितने लोग शिक्षित हैं, उनमें से कितने सरकारी नौकरियों में कार्यरत हैं और कितने अपने घर में हैं. तभी सरकार इस संशोधन के लाभार्थियों की पहचान कर सकती है.’

राजद के मनोज झा, अन्नाद्रमुक के एम. थंबीदुरई और जदयू के रामनाथ ठाकुर ने जाति जनगणना की मांग की. शिवसेना के संजय राउत ने कहा कि 127वें संशोधन का श्रेय केंद्र को नहीं, बल्कि मराठा आंदोलन को जाना चाहिए.

राकांपा की वंदना चव्हाण ने भी विधेयक का समर्थन किया, लेकिन कहा कि यह उस रूप में नहीं है, जो लोगों या नागरिकों के वर्ग को न्याय का आश्वासन दे.

विधेयक पारित होने के बाद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहा कि दोनों सदनों में विधेयक का पारित होना देश के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है.

उन्होंने कहा, ‘दोनों सदनों में संविधान (127 वां संशोधन) विधेयक का पारित होना हमारे देश के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है. यह विधेयक सामाजिक सशक्तिकरण को आगे बढ़ाता है. यह हाशिये पर पड़े वर्गों के लिए सम्मान, अवसर और न्याय सुनिश्चित करने के लिए हमारी सरकार की प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)