उत्तर प्रदेश में 8,000 से अधिक मुठभेड़ में 3,302 कथित अपराधी घायल, 146 की मौतः रिपोर्ट

आधिकारिक तौर पर इस पुलिस मुठभेड़ का अभी तक कोई नाम नहीं है, लेकिन राज्य के कुछ वरिष्ठ पुलिसकर्मी इसे ‘ऑपरेशन लंगड़ा’ कहते हैं. मार्च 2017 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद यूपी पुलिस ने 8,472 मुठभेड़ों में 3,302 कथित अपराधियों को गोली मारकर घायल किया. इस दौरान कई कथित अपराधी पैर में गोली लगने से घायल हुए.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

आधिकारिक तौर पर इस पुलिस मुठभेड़ का अभी तक कोई नाम नहीं है, लेकिन राज्य के कुछ वरिष्ठ पुलिसकर्मी इसे ‘ऑपरेशन लंगड़ा’ कहते हैं. मार्च 2017 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद यूपी पुलिस ने 8,472 मुठभेड़ों में 3,302 कथित अपराधियों को गोली मारकर घायल किया. इस दौरान कई कथित अपराधी पैर में गोली लगने से घायल हुए.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

लखनऊः उत्तर प्रदेश में मार्च 2017 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद यूपी पुलिस ने 8,472 मुठभेड़ों में 3,302 कथित अपराधियों को गोली मारकर घायल किया. इस दौरान कई कथित अपराधी पैर में गोली लगने से घायल हुए.

इन मुठभेड़ों में मरने वालों की संख्या 146 है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, आधिकारिक तौर पर इस ऑपरेशन का अभी तक कोई नाम नहीं है, लेकिन राज्य के कुछ वरिष्ठ पुलिसकर्मी इस कार्रवाई को ‘ऑपरेशन लंगड़ा’ कहते हैं.

आधिकारिक तौर पर वरिष्ठ पुलिस अधिकारी इस बात से इनकार करते हैं कि मुठभेड़ों के दौरान अपराधियों को अपाहिज करने की उनकी कोई योजना है.

पुलिस का कहना है कि उनके पास ऐसा कोई आंकड़ा नहीं है, जिससे पता चल सके कि मुठभेड़ के दौरान कितने अपराधी पैर में गोली लगने से विकलांग हुए हैं. इसके बजाय पुलिस कहना है कि इन मुठभेड़ों में 13 पुलिसकर्मियों की मौत हुई है और 1,157 घायल हुए हैं.

इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में यूपी पुलिस एडीजी (कानून एवं व्यवस्था) प्रशांत कुमार ने कहा कि पुलिस मुठभेड़ में घायलों की बड़ी संख्या से पता चलता है कि अपराधियों को मारना पुलिस का मुख्य उद्देश्य नहीं है. मुख्य उद्देश्य शख्स को गिरफ्तार करना है.

कुमार ने कहा, ‘यूपी सरकार की अपराध और अपराधियों की तरफ जीरो टॉलरेंस पॉलिसी है. ड्यूटी के दौरान अगर कोई हम पर गोली चलाता है, तो हम जवाबी कार्रवाई करते हैं और यह पुलिस को दी गई कानूनी शक्ति है. इस प्रक्रिया के दौरान कुछ घायल हो जाते हैं तो कुछ की मौत हो जाती है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘हमारे लोग भी मारे गए हैं और घायल हुए हैं. लब्बोलुआब यह है कि अगर कोई अवैध काम करता है, तो पुलिस प्रतिक्रिया करती है. हालांकि, हमारा मुख्य मकसद व्यक्ति को मारना नहीं बल्कि गिरफ्तारी करना है.’

एडीजी ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों पर एक निर्धारित प्रक्रिया है कि अगर मुठभेड़ में मौत होती है तो क्या करना है. इसके अलावा हर मुठभेड़ की मजिस्ट्रेट जांच होती है. अदालत में पीड़ितों के पास अपना केस पेश करने के सभी अधिकार होते हैं. हालांकि, आज तक किसी भी संवैधानिक संस्था ने यूपी पुलिस मुठभेड़ों के विरोध में कुछ नहीं कहा है.’

रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह की हत्याओं पर कहा था कि इन पर गभीरंता से विचार करने की जरूरत है. विपक्षी पार्टियों ने भी इन हत्याओं को लेकर अक्सर सवाल खड़े किए हैं और इन्हें राज्य सरकार की ‘ठोक दो (खत्म कर दो) नीति’ कहा है.

उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में योगी आदित्यनाथ सरकार इन मुठभेड़ों को अपनी उपलब्धि के तौर पर दिखा रही है.

कई अवसरों पर आदित्यनाथ ने खुद चेतावनियां जारी करते हुए कहा है कि अगर अपराधी अपना रास्ता नहीं बदलते तो पुलिस उन्हें मारने में बिल्कुल नहीं हिचकेगी.

पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मेरठ जोन मुठभेड़ (2,839), गिरफ्तारी (5,288), मौतों (61) और घायलों (1,547) की सूची में सबसे ऊपर है. इसके बाद आगरा में 1,884 मुठभेड़, 4,878 गिरफ्तारी, 18 मौत और 218 घायलों के साथ दूसरे स्थान पर है. तीसरे स्थान पर बरेली है, जहां 1,173 मुठभेड़, 2,642 गिरफ्तारियां, सात मौतें और 299 लोग घायल हुए हैं.

मुठभेड़ के दौरान मेरठ में सबसे अधिक पुलिसकर्मी घायल हुए हैं. इनकी संख्या 435 हैं. इसके बाद बरेली में 224 और गोरखपुर में 104 हैं.

मुठभेड़ के दौरान कानपुर क्षेत्र में सबसे अधिक पुलिसकर्मियों की मौतें हुईं. बता दें कि कानपुर के चौबेपुर थाना क्षेत्र स्थित बिकरू गांव में पिछले साल दो/तीन जुलाई की दरमियानी रात को गैंगस्टर विकास दुबे को गिरफ्तार करने गई पुलिस टीम पर उसके गुर्गों ने ताबड़तोड़ गोलियां चलाकर आठ पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी. अगले ही दिन पुलिस ने दुबे के दो साथियों प्रकाश पांडे और अतुल दुबे को कथित मुठभेड़ में मार गिराया था.

उसके बाद आठ जुलाई को 50,000 रुपये के इनामी और विकास दुबे का साथी अमर दुबे भी हमीरपुर जिले के मौदहा क्षेत्र में पुलिस के साथ एक कथित मुठभेड़ में मारा गया था.

पुलिस की इस कार्यवाही के सिलसिले में नौ जुलाई को प्रवीण दुबे उर्फ बउआ और प्रभात उर्फ कार्तिकेय क्रमशः इटावा और कानपुर जिलों में हुई पुलिस मुठभेड़ में मारे गए थे.

इस बीच पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स ने विकास दुबे को नौ जुलाई को मध्य प्रदेश के उज्जैन में गिरफ्तार किया था. अगली सुबह कानपुर लाते वक्त रास्ते में हुई कथित मुठभेड़ में विकास दुबे भी मारा गया था.