संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों के एक पैनल ने कहा कि यह रोक तब तक लगाई जानी चाहिए जब तक कि विभिन्न सरकारें ऐसे स्पायवेयर के इस्तेमाल को लेकर अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के पालन की मज़बूत व्यवस्था न बना लें. विशेषज्ञों ने कहा कि वे चिंता में हैं कि मानवाधिकार रक्षकों, पत्रकारों और राजनीतिक विरोधियों पर नज़र रखने, उन्हें डराने एवं चुप कराने के लिए निगरानी उपकरणों का इस्तेमाल किया जा रहा है.
नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों के एक पैनल ने सरकारों से स्पायवेयर तकनीक की बिक्री और हस्तांतरण पर वैश्विक रोक (कुछ समय के लिए) लगाने का आह्वान करते हुए कहा कि पेगासस प्रोजेक्ट कंसोर्टियम द्वारा किए गए खुलासे गहरी चिंता का विषय है.
विशेषज्ञों ने कहा कि यह रोक तब तक लगाई जानी चाहिए, जब तक कि विभिन्न सरकारें ऐसे स्पायवेयर के इस्तेमाल को लेकर अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के पालन की ‘मजबूत व्यवस्था’ न बना लें.
उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, ‘निगरानी प्रौद्योगिकी और व्यापार क्षेत्र को मानवाधिकार मुक्त क्षेत्र के रूप में संचालित करने की अनुमति देना अत्यधिक खतरनाक और गैर-जिम्मेदाराना है.’
विशेषज्ञों ने कहा कि वे इस बात को लेकर गहरी चिंता में हैं कि ‘मानवाधिकार रक्षकों, पत्रकारों और राजनीतिक विरोधियों पर नजर रखने, उन्हें डराने एवं चुप कराने के लिए अत्यधिक हाई-प्रोफाइल निगरानी उपकरणों का इस्तेमाल किया जा रहा है.’
उन्होंने कहा, ‘ये चीजें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, गोपनीयता और स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन करती हैं, संभवतः सैकड़ों व्यक्तियों के जीवन को खतरे में डालती हैं, मीडिया की स्वतंत्रता को खतरे में डालती हैं और लोकतंत्र, शांति, सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को कमजोर करती हैं.’
बयान में कहा गया है कि पेगासस प्रोजेक्ट कंसोर्टियम, जिसका द वायर भी हिस्सा है, के खुलासे ने ‘एनएसओ ग्रुप के पेगासस स्पायवेयर का उपयोग करते हुए सैकड़ों पत्रकारों, मानवाधिकार रक्षकों और राजनीतिक नेताओं के मोबाइल उपकरणों की व्यापक निगरानी’ को उजागर किया है.
फ्रांस स्थित गैर-लाभकारी फॉरबिडेन स्टोरीज ने लीक हुए एक ऐसे डेटाबेस को प्राप्त किया था, जिसमें 50,000 से अधिक लोगों के नंबर थे और इनकी पेगासस के जरिये निगरानी कराने की संभावना है. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने सूची में शामिल भारत के कुछ लोगों के फोन का फॉरेंसिक विश्लेषण किया है, जिसमें से 10 से अधिक लोगों की पेगासस के जरिये फोन हैकिंग की पुष्टि हुई है.
एनएसओ ग्रुप यह मिलिट्री ग्रेड स्पायवेयर सिर्फ सरकारों को ही बेचती हैं. भारत सरकार ने पेगासस की खरीद को लेकर न तो इनकार किया है और न ही इसकी पुष्टि की है.
अभी तक द वायर ने 160 से अधिक लोगों के नामों का खुलासा किया है जिसमें विपक्षी राजनेता, पत्रकार, सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व जज, कार्यकर्ता और पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला शामिल हैं. इनके फोन में सफलतापूर्वक या संभावित तौर पर जासूसी की गई.
वैसे तो एनएसओ ग्रुप ने इस सूची के नंबरों की पेगासस के जरिये निगरानी करने की बात को खारिज किया है, हालांकि यूएन विशेषज्ञों ने कहा कि इनकी दलीलों में कोई दम नहीं है, क्योंकि बहुत बड़े पैमाने पर निगरानी और मानवाधिकारों के उल्लंघन के साक्ष्य सामने आ चुके हैं.
उन्होंने कहा कि कंपनी को यह खुलासा करना चाहिए कि क्या उसने कभी भी व्यापार और मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के मार्गदर्शक सिद्धांतों के अनुरूप कोई सार्थक कदम उठाया है या नहीं. विशेषज्ञों ने कहा कि कंपनी इस मुद्दे पर की गई किसी भी आंतरिक जांच के निष्कर्षों को पूरी तरह से प्रकाशित करे.
इसके अलावा उन्होंने कहा कि इजरायल, जहां पर एनएसओ ग्रुप स्थित है, ये बताए कि उन्होंने मानवाधिकारों के अनुपालन की दिशा में इस कंपनी को लेकर क्या कदम उठाए हैं.
विशेषज्ञों ने कहा कि दो साल पहले अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर तत्कालीन संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत ने मानवाधिकारों पर निगरानी प्रौद्योगिकी के ‘खतरनाक प्रभाव’ पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी और तत्काल स्थगन की सिफारिश की थी, लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय उनके आह्वान पर ध्यान देने में विफल रहा है.
उन्होंने कहा, ‘हाल के वर्षों में हमने बार-बार आगाह किया है कि निगरानी तकनीक मानव अधिकारों के लिए खतरनाक है. एक बार फिर हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय से निगरानी प्रौद्योगिकी के मानवाधिकारों पर नकारात्मक प्रभाव को रोकने, कम करने और इसके निवारण के लिए एक मजबूत नियामक ढांचा विकसित करने का आग्रह करते हैं.’
इन विशेषज्ञों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के प्रचार और संरक्षण पर विशेष प्रतिनिधि इरीन खान, मानवाधिकार रक्षकों की स्थिति पर विशेष प्रतिनिधि मैरी लॉलर, शांतिपूर्ण सभा और संगठन की स्वतंत्रता के अधिकारों पर विशेष प्रतिनिधि क्लेमेंट न्यालेत्सोसी वौले तथा व्यापार और मानव अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह के सदस्य सूर्य देव (अध्यक्ष), एल्ज़बीटा कारस्का (उपाध्यक्ष), गिथु मुइगई, दांते पेस और अनीता रामाशास्त्री शामिल थे.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)