‘कांस्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप’ के तत्वाधान में 108 पूर्व नौकरशाहों द्वारा लिखे पत्र में कहा गया है कि गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) पांच दशकों से अधिक समय से भारत की क़ानून की किताबों में मौजूद है और हाल के वर्षों में इसमें किए गए संशोधनों ने इसे निर्मम, दमनकारी और सत्तारूढ़ नेताओं तथा पुलिस के हाथों घोर दुरुपयोग करने लायक बना दिया है.
नई दिल्ली: पूर्व नौकरशाहों के एक समूह ने एक खुले पत्र में कहा है कि गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) अपने मौजूदा स्वरूप में नागरिकों की स्वतंत्रता और लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है और सरकार को इसे बदलने के लिए एक नया कानून बनाना चाहिए.
उन्होंने कहा कि यूएपीए का एक विचित्र इतिहास है.
उन्होंने कहा कि सांप्रदायिकता, जातिवाद, क्षेत्रवाद और भाषाई रूढ़िवाद का मुकाबला करने तथा अलगाववादी गतिविधियों में लगे संगठनों से निपटने के लिए राष्ट्रीय एकता परिषद की सिफारिशों पर 1967 में पारित यह कानून समय के साथ बदलता गया है और अब यह एक ऐसा कानून बन गया है, जिसमें अपराधों और दंड की नई श्रेणियां बना दी गई हैं.
‘कांस्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप’ के तत्वाधान में 108 पूर्व नौकरशाहों द्वारा लिखित पत्र में कहा गया है कि यूएपीए पांच दशकों से अधिक समय से भारत की कानून की किताबों में मौजूद है और हाल के वर्षों में इसमें किए गए संशोधनों ने इसे निर्मम, दमनकारी और सत्तारूढ़ नेताओं तथा पुलिस के हाथों घोर दुरुपयोग करने लायक बना दिया है.
उन्होंने कहा कि इस कानून के मौजूदा स्वरूप में कई खामियां हैं, जो इसे कुछ राजनेताओं और अति उत्साही पुलिसकर्मियों द्वारा बड़े पैमाने पर दुरुपयोग के लिए उत्तरदायी बनाती हैं.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, पत्र में कहा गया है, 11 से 13 जून 2021 के बीच ब्रिटेन के कॉर्नवाल में जी-7 शिखर सम्मेलन में एक सत्र में भाग लेते हुए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकतंत्र और स्वतंत्रता को भारतीय लोकाचार का हिस्सा बताया था.
पत्र के अनुसार, ‘यदि प्रधानमंत्री अपने वचन के प्रति सच्चे हैं तो उनकी सरकार को कानूनी दिग्गजों और आम जनता की चिंताओं पर ध्यान देना चाहिए, इस बात को मानना चाहिए कि यूएपीए अपने वर्तमान स्वरूप में हमारे नागरिकों की स्वतंत्रता और लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है, इसलिए कानूनी विशेषज्ञों और संसद के विचारों को ध्यान में रखते हुए परामर्श के बाद यूएपीए को बदलने के लिए नया कानून बनाना चाहिए.’
पूर्व सिविल सेवकों ने इस साल मार्च में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी द्वारा संसद में दिए एक लिखित उत्तर का हवाला देते हुए कहा कि 2019 में देश भर में 1,226 मामलों में यूएपीए के तहत 1,948 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जो कि 2015 की तुलना में 72 प्रतिशत अधिक है.
पत्र में कहा गया है कि वर्ष 2019 में देश में सबसे ज्यादा गिरफ्तारियां हुईं. खासकर उत्तर प्रदेश (498), मणिपुर (386), तमिलनाडु (308), जम्मू कश्मीर (227), और झारखंड (202) में गिरफ्तारियां हुईं.
यूएपीए के तहत बड़ी संख्या में गिरफ्तारियों के बावजूद अभियोजन और दोषसिद्धि की संख्या में भारी गिरावट आई है.
पत्र में कहा गया है कि भारत सरकार ने स्वीकार किया है कि 2016 और 2019 के बीच दर्ज किए गए मामलों में से केवल 2.2 फीसदी मामलों में ही दोष सिद्ध हुआ है.
पत्र में कहा, ‘हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि यूएपीए के तहत अधिकांश गिरफ्तारियां सिर्फ डर और असंतोष फैलाने के लिए विशिष्ट आधार पर की गई थीं.’
पत्र में कहा गया है, ‘यूएपीए के तहत सबसे चौंकाने वाली गिरफ्तारी भीमा-कोरेगांव मामले में आरोपी व्यक्तियों की है. कई जाने-माने कार्यकर्ता जिन्होंने जीवन भर आदिवासियों और अन्य उत्पीड़ित समूहों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया है, उन्हें आतंकवादी के रूप में गिरफ्तार किया गया है और यहां तक कि आज तक जेल में बंद हैं.’
पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन, पूर्व सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता सचिव अनीता अग्निहोत्री और पूर्व स्वास्थ्य सचिव के. सुजाता राव शामिल हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)