सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम ने जिन तीन महिला जजों की सिफ़ारिश की है, उनमें कर्नाटक उच्च न्यायालय की जस्टिस बीवी नागरत्ना, तेलंगाना हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश जस्टिस हिमा कोहली और गुजरात हाईकोर्ट की जज जस्टिस बेला त्रिवेदी शामिल हैं. जस्टिस नागरत्ना देश की पहली महिला सीजेआई बन सकती हैं. 19 मार्च 2019 को तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई की सेवानिवृत्ति के बाद शीर्ष न्यायालय में कोई नियुक्ति नहीं हुई है.
नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमना की अध्यक्षता वाले उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम ने गतिरोध का समाप्त करते हुए शीर्ष अदालत में न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए नौ नामों की सिफारिश की है.
जस्टिस आरएफ नरीमन के 12 अगस्त को सेवानिवृत्त हो जाने से सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की संख्या कम होकर 25 हो गई है, जबकि सीजेआई समेत न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या 34 है. 19 मार्च 2019 को तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई की सेवानिवृत्ति के बाद शीर्ष न्यायालय में कोई नियुक्ति नहीं हुई है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, पांच सदस्यीय कॉलेजियम ने तीन महिला न्यायाधीशों के नाम भेजे हैं, जिसमें कर्नाटक उच्च न्यायालय की जस्टिस बीवी नागरत्ना, तेलंगाना हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश जस्टिस हिमा कोहली और गुजरात हाईकोर्ट की जज जस्टिस बेला त्रिवेदी शामिल हैं. जस्टिस नागरत्ना देश की पहली महिला सीजेआई बन सकती हैं.
पांच सदस्यीय कॉलेजियम में मुख्य न्यायाधीश के अलावा जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एल. नागेश्वर राव शामिल हैं.
ऐसा बताया जा रहा है कि कॉलेजियम ने बार से सीधी नियुक्ति के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पीएस नरसिम्हा को भी चयनित किया है.
सूत्रों के अनुसार, अन्य नामों में जस्टिस अभय श्रीनिवास ओका (कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश), जस्टिस विक्रम नाथ (गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश), जस्टिस जितेंद्र कुमार माहेश्वरी (सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश), जस्टिस सीटी रवि कुमार (केरल उच्च न्यायालय) और जस्टिस एमएम सुंदरेश (केरल उच्च न्यायालय) शामिल हैं.
अगर इन सिफारिशों को मंजूर कर लिया जाता है तो इससे शीर्ष न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या 33 हो जाएगी. बुधवार को एक और पद रिक्त हो जाएगा, जब जस्टिस नवीन सिन्हा सेवानिवृत्त होंगे.
मालूम कि जस्टिस नरीमन, जो कि मार्च 2019 से कॉलेजियम के सदस्य थे, ने कहा था कि देश के दो सबसे सीनियर जजों की नियुक्ति के बिना किसी अन्य पर विचार नहीं किया जाना चाहिए.
वे इस बात पर अडिग थे कि पहले कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अभय ओका और त्रिपुरा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अकील कुरैशी को सुप्रीम कोर्ट लाया जाना चाहिए, उसके बाद अन्य लोगों पर विचार किया जा सकता है. ये एक वजह थी, जिसके चलते कॉलेजियम किसी फैसले पर नहीं पहुंच पा रहा था.
जस्टिस कुरैशी ने ही सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में भूमिका के कारण वर्तमान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को दो दिन की पुलिस हिरासत में भेजा था.
अब कॉलेजियम की नई सिफारिश में जस्टिस ओका का नाम तो शामिल है, लेकिन जस्टिस कुरैशी का नाम गायब है.
बीते 12 अगस्त को अपने विदाई समारोह में जस्टिस नरीमन ने कहा था, ‘मेरा मानना है कि किसी की इस अदालत में आने की ‘विधिसम्मत अपेक्षा’ नहीं होती, लेकिन भारत के लोगों में और मुकदमा दायर करने वाले लोगों में इस अंतिम अदालत से गुणवत्तापरक न्याय पाने की होती है.’
उन्होंने कहा, ‘इसके लिए यह बहुत स्पष्ट है कि अन्य पहलुओं के अलावा मेधा ही सर्वोपरि होनी चाहिए. मेधा हमेशा पहले आती है. यह समय है कि इस पीठ में और अधिक सीधी पदोन्नतियां हों. मैं यह भी कहूंगा और उन्हें सलाह दूंगा, जिन्हें सीधी नियुक्ति का अवसर मिलता है, कभी ‘ना’ मत कहिए. यह उनकी पवित्र जिम्मेदारी है कि इस पेशे से जितना कुछ मिला है, उसे लौटाएं.’
जस्टिस अभय ओका इस समय देश के सबसे सीनियर जज हैं. उन्हें नागरिक स्वतंत्रता पर अपने फैसलों के लिए जाना जाता है. कोविड-19 महामारी के दौरान जस्टिस ओका ने प्रवासी मजदूरों के संबंध में कई महत्वपूर्ण आदेश पारित किए थे और महामारी को लेकर सरकार की कार्रवाई पर कड़ी फटकार लगाई थी.
वहीं गुजरात हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस नाथ ने भी कोरोना लहरों के दौरान हॉस्पिटल बेड्स एवं जरूरी दवाओं की कमी को लेकर राज्य सरकार पर गंभीर सवाल उठाए थे. उन्होंने देश में पहली बार अदालत की कार्यवाही यूट्यूब पर लाइव प्रसारित करवाई थी.
जस्टिस माहेश्वरी, जो कि पहले आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे, को पिछले साल दिसंबर में सिक्किम ट्रांसफर कर दिया गया था. ये कार्रवाई तब की गई थी जब मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने आरोप लगाया था कि सर्वोच्च न्यायालय के एक वरिष्ठ जज उनकी सरकार गिराने के लिए हाईकोर्ट के कामकाज में हस्तक्षेप कर रहे हैं.
वरिष्ठ वकील पीएस नरसिम्हा, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट जज बनाने की सिफारिश की गई है, ने राम जन्मभूमि सहित कई महत्वपूर्ण मामलों में पैरवी की है. उन्हें भारत में क्रिकेट प्रशासन से संबंधित विवादों को सुलझाने के लिए बीसीसीआई मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक न्याय मित्र नियुक्त किया गया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)