राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के ‘आपराधिक न्याय प्रणाली पर कोर समूह’ ने कहा कि यह महसूस किया गया कि मामलों के निस्तारण में विलंब विचाराधीन और सज़ायाफ़्ता क़ैदियों के मानवाधिकार का उल्लंघन है. जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा कि न केवल सुनवाई में देरी होती है, बल्कि किसी व्यक्ति को दोषी ठहराने वाले अदालत के आदेशों को लागू करने में भी सालों लग जाते हैं, जो चिंता का विषय है.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के एक विशेषज्ञ समूह ने बुधवार को आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधारों की ‘धीमी गति’ पर बुधवार को चिंता प्रकट की.
आयोग ने ‘आपराधिक न्याय प्रणाली पर कोर समूह’ की पहली बैठक का आयोजन किया था.
मानवाधिकार आयोग ने एक बयान में कहा कि यह महसूस किया गया कि मामलों के निस्तारण में विलंब विचाराधीन और सजायाफ्ता कैदियों के मानवाधिकार का उल्लंघन है.
उसने कहा, ‘आपराधिक न्यायिक प्रणाली में सुधारों की धीमी गति पर गंभीर चिंता प्रकट करते हुए त्वरित न्याय सुनिश्चित करने को कहा.’
जस्टिस (सेवानिवृत्त) एमएम कुमार ने बैठक की अध्यक्षता करते हुए कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली में त्वरित सुधार में पुलिस की व्यवस्था महत्वपूर्ण है.
उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय के आदेशों समेत कई प्रयासों के बावजूद जमीनी हकीकत में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है.
मानवाधिकार आयोग के प्रमुख जस्टिस (सेवानिवृत्त) अरुण कुमार मिश्रा ने कहा कि दस्तावेजों के डिजिटलीकरण से निष्पक्ष और त्वरित जांच एवं सुनवाई में मदद मिलेगी.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, मिश्रा ने कहा कि न केवल सुनवाई में देरी होती है, बल्कि किसी व्यक्ति को दोषी ठहराने वाले अदालत के आदेशों को लागू करने में भी सालों लग जाते हैं, जो चिंता का विषय है.
एनएचआरसी के सदस्य डीएम मुले ने पहले कहा था कि दोषसिद्धि की दर आवश्यक पुलिस और प्रशासनिक सुधारों की कमी का परिणाम है. उन्होंने कहा कि जजों की भी कमी है.
विचार-विमर्श के लिए एजेंडा निर्धारित करते हुए एनएचआरसी के महासचिव, बिंबाधर प्रधान ने कहा कि एक अनुमान के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट, उच्च न्यायालयों और जिला अदालतों में लगभग 4.4 करोड़ मामले लंबित हैं.
उन्होंने कहा कि मार्च 2020 से लंबित मामलों में लगभग 70 लाख और मामले जोड़े गए हैं.
उन्होंने कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली में पीड़ित के अधिकारों और स्मार्ट पुलिसिंग की ओर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है.
एनएचआरसी के जांच महानिदेशक संतोष मेहरा ने कहा कि लोगों को समय पर न्याय सुनिश्चित करने के हित में जनसंख्या के अनुपात में विभिन्न पुलिस थानों में पुलिसकर्मियों की कमी पर प्राथमिकता से विचार करने की जरूरत है.
चर्चा के दौरान जो कुछ महत्वपूर्ण सुझाव सामने आए उनमें पदानुक्रम के निचले रैंक के पुलिसकर्मियों के बीच विभिन्न कानूनों के बारे में जागरूकता बढ़ाना शामिल था.
पुलिस अधिकारियों की दोषसिद्धि की दर और उनके द्वारा कानून का पालन न करने के परिणामस्वरूप मानवाधिकारों के उल्लंघन पर ध्यान देने की आवश्यकता है.
साथ ही यह सुझाव दिया गया कि जनसांख्यिकीय क्षेत्र में शिकायतों की संख्या के अनुपात में पुलिसकर्मियों और पुलिस स्टेशनों की संख्या को बढ़ाने की जरूरत है.
बैठक में सहानुभूतिपूर्ण कार्यवाही सुनिश्चित करने के लिए आपराधिक न्याय प्रणाली में सामाजिक कार्यकर्ताओं और मनोवैज्ञानिकों का परिचय, विशेष रूप से लिंग संवेदीकरण, बाल अधिकार, मानवाधिकार और अपराध के पीड़ितों के पुनर्वास के संबंध में प्रशिक्षण कार्यक्रम और प्रशिक्षण मॉड्यूल का भी सुझाव दिया गया.
चर्चा में भाग लेने वाले एनएचआरसी कोर ग्रुप के सदस्यों में- जस्टिस बीके मिश्रा, पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष, ओडिशा राज्य मानवाधिकार आयोग, जीके पिल्लई, पूर्व केंद्रीय गृह सचिव, मीरान चड्ढा बोरवणकर, पूर्व महानिदेशक, पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो, ऋषि कुमार शामिल थे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)