कृषि क़ानूनों की कोई धारा अगर किसान हितों के ख़िलाफ़ है तो सरकार बात करने को तैयार: राजनाथ सिंह

तीन कृषि क़ानूनों को पूरी तरह से समझने पर ज़ोर देते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि विरोध का माहौल बनाया जा रहा है और किसानों को इसे समझना चाहिए. न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर भ्रम भी पैदा किया गया. किसानों ने सच जानना शुरू कर दिया है और उन्होंने अपने लाभ तथा हानि की गणना करनी शुरू कर दी है.

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रक्षामंत्री राजनाथ सिंह. (फोटो: पीटीआई)

तीन कृषि क़ानूनों को पूरी तरह से समझने पर ज़ोर देते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि विरोध का माहौल बनाया जा रहा है और किसानों को इसे समझना चाहिए. न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर भ्रम भी पैदा किया गया. किसानों ने सच जानना शुरू कर दिया है और उन्होंने अपने लाभ तथा हानि की गणना करनी शुरू कर दी है.

रक्षामंत्री राजनाथ सिंह. (फोटो: पीटीआई)

पंचकूला: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बृहस्पतिवार को केंद्र के तीन विवादास्पद कृषि कानूनों का बचाव किया, लेकिन साथ ही कहा कि अगर किसानों को लगता है कि कानूनों में कोई भी धारा/उपनियम उनके हितों के खिलाफ है, तो सरकार उनसे बात करने के लिए तैयार है.

इन कानूनों को पूरी तरह से समझने पर जोर देते हुए सिंह ने कहा कि विरोध का माहौल बनाया जा रहा है और किसानों को इसे समझना चाहिए.

गौरतलब है कि मुख्यत: पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान इन कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर पिछले साल नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले हुए हैं.

सिंह ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत राज्य स्तरीय अन्नपूर्णा कार्यक्रम के लिए बृहस्पतिवार को ऑनलाइन माध्यम से लोगों को संबोधित करते हुए किसानों के कल्याण में कदम उठाने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार की तारीफ की.

सिंह ने कहा, ‘हमारी सरकार तीन कृषि कानून लेकर आई, लेकिन मुझे लगता है कि इन कानूनों को पूरी तरह समझने की आवश्यकता है. विरोध का एक माहौल भी पैदा किया जा रहा है. मुझे लगता है कि किसान भाइयों को यह समझना चाहिए.’

उन्होंने कहा, ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर भ्रम भी पैदा किया गया. किसानों ने सच जानना शुरू कर दिया है और उन्होंने अपने लाभ तथा हानि की गणना करनी शुरू कर दी है. मैंने कृषि कानूनों को पूरी तरह पढ़ा है और मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि मेरी जानकारी के अनुसार ऐसा कोई खंड नहीं है, जो हमारे किसान भाइयों की हितों के खिलाफ हो.’

रक्षा मंत्री ने कहा, ‘अगर किसी को लगता है कि इन कानूनों में ऐसा कोई धारा/उपनियम है, जो किसानों के हितों पर असर डाल सकता है तो मैं पूरे विश्वास के साथ कहना चाहता हूं कि हम किसान भाइयों से बैठकर बातचीत करने के लिए तैयार हैं.’

किसानों के कल्याण के लिए मोदी सरकार द्वारा लिए गए फैसलों की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य डेढ़ गुना बढ़ाया गया है और छोटे किसानों को सस्ता कर्ज दिया गया है. उन्होंने कहा कि किसानों के बैंक खातों में 1.50 लाख करोड़ रुपये से अधिक की रकम दी गई है. देश में इतिहास में पहले कभी ऐसा नहीं हुआ.

सिंह ने कहा, ‘ये सभी कदम हमारे किसान भाइयों को सशक्त और मजबूत बनाने के लिए उठाए गए.’

उन्होंने प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के बारे में बात करते हुए कहा कि 6,000 रुपये सीधे किसानों के खाते में गए हैं.

उन्होंने कहा, ‘भ्रष्टाचार की कोई गुंजाइश नहीं है. सारा पैसा आपके खातों में पहुंचा.’

उन्होंने याद दिलाया कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कभी कहा था कि 100 पैसे में से केवल 16 पैसे ही लोगों तक पहुंचते हैं.

उन्होंने पूछा, ‘आज हम 100 पैसे भेजते हैं और सारा पैसा आपके खातों में पहुंचता है. भ्रष्टाचार की कोई गुंजाइश नहीं है. किसानों के प्रति इससे अधिक संवेदनशीलता और क्या होगी?’

सिंह ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारें एक-दूसरे के सहयोग से चलती हैं. उन्होंने कहा, ‘केंद्र योजनाएं बना सकता है, लेकिन जब तक उसे राज्य सरकार से समर्थन नहीं मिलता तो सफल तरीके से उनका क्रियान्वयन संभव नहीं है. इसी तरह राज्य सरकार कई योजनाएं बना सकती हैं, लेकिन अगर केंद्र उन्हें समर्थन नहीं देता तो उनका क्रियान्वयन मुश्किल हो जाता है.’

गौरतलब है कि केंद्र सरकार की ओर से कृषि से संबंधित तीन विधेयक- किसान उपज व्‍यापार एवं वाणिज्‍य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्‍य आश्‍वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्‍यक वस्‍तु (संशोधन) विधेयक, 2020 को बीते साल 27 सितंबर को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी थी, जिसके विरोध में आठ महीने से अधिक समय से किसान प्रदर्शन कर रहे हैं.

किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन अध्यादेशों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.

दूसरी ओर केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली मोदी सरकार ने इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है. उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं.

सरकार और यूनियनों के बीच आखिरी दौर की बातचीत 22 जनवरी को हुई थी. 26 जनवरी को किसानों के विरोध प्रदर्शन के तहत  ट्रैक्टर परेड के दौरान व्यापक हिंसा के बाद बातचीत फिर से शुरू नहीं हुई है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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