विकास दुबे एनकाउंटर: जांच आयोग ने उत्तर प्रदेश पुलिस को क्लीनचिट दी

बीते साल दो जुलाई को कानपुर के चौबेपुर थाना क्षेत्र के गांव बिकरू निवासी गैंगस्टर विकास दुबे को उसके गांव पकड़ने पहुंची पुलिस टीम पर हमला कर दिया गया था, जिसमें आठ पुलिसकर्मी मारे गए थे. आयोग की ओर से कहा गया है कि इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि विकास दुबे को स्थानीय पुलिस, राजस्व और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा संरक्षण दिया गया था. आयोग ने इसमें लिप्त अधिकारियों के ख़िलाफ़ जांच की सिफ़ारिश की है.

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विकास दुबे. (फोटो साभार: ट्विटर)

बीते साल दो जुलाई को कानपुर के चौबेपुर थाना क्षेत्र के गांव बिकरू निवासी गैंगस्टर विकास दुबे को उसके गांव पकड़ने पहुंची पुलिस टीम पर हमला कर दिया गया था, जिसमें आठ पुलिसकर्मी मारे गए थे. आयोग की ओर से कहा गया है कि इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि विकास दुबे को स्थानीय पुलिस, राजस्व और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा संरक्षण दिया गया था. आयोग ने इसमें लिप्त अधिकारियों के ख़िलाफ़ जांच की सिफ़ारिश की है.

विकास दुबे. (फोटो साभार: ट्विटर)

लखनऊ: गैंगस्टर विकास दुबे मुठभेड़ मामले की जांच के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गठित तीन सदस्यीय जांच आयोग ने पुलिस को क्लीनचिट दे दी है. हालांकि आयोग ने यह भी निष्कर्ष निकाला कि इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि विकास दुबे और उसके गिरोह को स्थानीय पुलिस, राजस्व और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा संरक्षण दिया गया था. इसमें लिप्त अधिकारियों के खिलाफ आयोग ने जांच की सिफारिश भी की है.

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पुलिस ने दुबे की मौत के इर्द-गिर्द का जो घटनाक्रम बताया है, उसके पक्ष में साक्ष्य मौजूद हैं.

जांच आयोग ने कहा कि कानपुर देहात में आठ पुलिसकर्मियों की घात लगाकर की गई हत्या पुलिस की खराब योजना का परिणाम थी, क्योंकि उन्होंने स्थिति का सही आकलन नहीं किया था. वहीं, कानपुर की स्थानीय खुफिया इकाई को भी इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी और वह पूरी तरह से नाकाम रही.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, बिकरू गांव में हुई मुठभेड़ के सात घंटे बाद हुई पहली मुठभेड़, जिसमें विकास दुबे के मामा प्रेम प्रकाश और उसके सहयोग अतुल दुबे को मार गिराया गया था, में भी पुलिस को क्लिनचिट मिल गई है. जांच आयोग ने उन पुलिस मुठभेड़ों को भी इसी तरह की क्लीनचिट दी, जिसमें अमर दुबे, प्रवीण कुमार दुबे और प्रभात मिश्रा मारे गए थे.

उत्तर प्रदेश विधानसभा में गुरुवार को कानपुर के बिकरू गोलीबारी कांड की रिपोर्ट पेश की गई, जिसकी जांच सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस बीएस चौहान की अध्यक्षता में गठित जांच आयोग ने की थी.

विधानसभा में संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्‍ना ने गुरुवार को सदन के पटल पर रिपोर्ट रखने की घोषणा की.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘विकास दुबे मुठभेड़ मामले में इकट्ठा किए गए सबूत घटना के बारे में पुलिस के पक्ष का समर्थन करते हैं. पुलिसकर्मियों को लगी चोटें जान-बूझकर या स्वयं नहीं लगाई जा सकती. डॉक्टरों के पैनल में शामिल डॉ. आरएस मिश्रा ने पोस्टमार्टम किया और स्पष्ट किया कि दुबे के शरीर पर पाई गईं चोटें पुलिस पक्ष के बयान के अनुसार हो सकती हैं.’

रिपोर्ट में कहा गया, ‘इस मामले में पुलिस के पक्ष का खंडन करने के लिए जनता, मीडिया से कोई भी सामने नहीं आया और न ही कोई सबूत सामने आया. विकास की पत्नी ऋचा दुबे ने इस घटना को फर्जी मुठभेड़ बताते हुए एक हलफनामा दायर किया था, लेकिन वह आयोग के सामने पेश नहीं हुईं.’

रिपोर्ट के अनुसार, ‘ऐसी स्थिति में इस घटना पर पुलिस के पक्ष के बारे में किसी तरह का संदेह पैदा नहीं होता है.’

मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट (कानपुर नगर) द्वारा की गई मजिस्ट्रेट जांच रिपोर्ट में भी ऐसा ही निष्कर्ष सामने आया है.

बता दें कि कानपुर जिले के चौबेपुर थाना क्षेत्र के बिकरू गांव में दो जुलाई, 2020 की रात आठ पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी गई थी. यह पुलिस टीम बिकरू निवासी गैंगस्टर विकास दुबे को पकड़ने के लिए उसके घर दबिश देने गई थी.

पुलिस का आरोप है कि विकास दुबे और उसके सहयोगियों ने घात लगाकर डीएसपी देवेंद्र मिश्रा समेत आठ पुलिसकर्मियों पर ताबड़तोड़ गोलीबारी कर उनकी हत्या कर दी थी. इस संबंध में दर्ज एफआईआर में नामित 21 लोगों में से पुलिस ने दुबे सहित छह आरोपियों को अगले कुछ हफ्तों में कथित मुठभेड़ों में मार गिराया था.

इस घटना के हफ्तेभर के भीतर ही विकास दुबे को मध्य प्रदेश की पुलिस ने उज्जैन में गिरफ्तार किया था.

पुलिस के अनुसार, विकास दुबे को पुलिस जब उज्‍जैन से कानपुर ला रही थी तो उसने भागने की कोशिश की और तभी मुठभेड़ में मारा गया.

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बनाई गई तीन सदस्यीय जांच आयोग में जस्टिस (सेवानिवृत्त) बीएस चौहान, जस्टिस (सेवानिवृत्त) एसके अग्रवाल और उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक केएल गुप्ता शामिल थे.

आयोग ने 21 अप्रैल को राज्य सरकार को 824 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी थी.

आयोग ने कहा कि इस बारे में पर्याप्त सामग्री है कि विकास दुबे और उसके गिरोह को स्थानीय पुलिस, राजस्व और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा संरक्षण दिया गया था.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘विकास दुबे और उसके सहयोगी कई अधिकारियों के संपर्क में थे और अधिकारी भी उनसे बातचीत करते थे. अगर किसी व्यक्ति द्वारा विकास या उसके सहयोगियों के खिलाफ कोई शिकायत दर्ज कराई जाती तो शिकायतकर्ता को पुलिस द्वारा अपमानित किया जाता था, भले ही शिकायत दर्ज करने का निर्देश किसी उच्च अधिकारी ने दिया हो.’

रिपोर्ट में कहा गया, ‘विकास दुबे की पत्नी जिला पंचायत के सदस्य और उसके भाई की पत्नी ग्राम बिकरू के प्रधान के रूप में चुनी गई थीं. वे दोनों लखनऊ में रह रही थीं. यदि क्षेत्र के किसी भी व्यक्ति को उनसे कोई मदद चाहिए होती, तो वह विकास दुबे से संपर्क करते थे. निर्वाचित दोनों महिलाएं कभी सामने नही आती थीं.’

आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘दुबे परिवार के अधिकांश सदस्यों को हथियारों के लाइसेंस दिए गए थे और इस संबंध में सक्षम अधिकारियों द्वारा आपराधिक मामलों में उनकी संलिप्तता के वास्तविक तथ्यों को छिपाते हुए सिफारिशें की गई थीं.’

आयोग ने कहा कि उनके पासपोर्ट जारी करने, राशन की दुकान का लाइसेंस देने में भी कुछ ऐसी ही स्थिति थी.

रिपोर्ट के मुताबिक, ‘दुबे के गिरोह के खिलाफ दर्ज किसी भी मामले में जांच कभी भी निष्पक्ष नहीं की गई. आरोप-पत्र दाखिल करने से पहले गंभीर अपराधों से संबंधित धाराएं हटा दी जाती थीं, सुनवाई के दौरान अधिकांश गवाह मुकर जाते. विकास दुबे और उसके सहयोगियों को अदालतों से आसानी से और जल्द जमानत के आदेश मिल जाते थे. ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि क्योंकि राज्य सरकार के सरकारी अधिवक्ताओं द्वारा इस पर कोई गंभीर विरोध नहीं किया गया था.’

आयोग के अनुसार, ‘दुबे 64 आपराधिक मामलों में शामिल था. राज्य के अधिकारियों ने कभी भी उसके अभियोजन के लिए विशेष वकील को नियुक्त करना उचित नहीं समझा. राज्य ने कभी भी जमानत रद्द करने के लिए कोई आवेदन नहीं किया या किसी भी जमानत के आदेश को भी रद्द करने के लिए किसी बड़ी अदालत से संपर्क नहीं किया.’

आयोग के अनुसार, ‘ज्यादातर मामलों में हाईकोर्ट ने दुबे को अंतरिम राहत दी थी और विभिन्न आपराधिक मामलों में अधीनस्थ अदालतों के समक्ष कार्यवाही पर रोक लगा दी थी और वह 13-14 वर्षों की अवधि के लिए ऐसे आदेशों के संरक्षण में रहा.’

आयोग ने कहा कि हाईकोर्ट ने विकास दुबे और उसके सहयोगियों को मुख्य रूप से इस आधार पर जमानत दी कि उसे बड़ी संख्या में मामलों में बरी कर दिया गया था. अदालत ने यह जानने की कोई कोशिश नहीं की कि किन परिस्थितियों में और कैसे ज्यादातर मामलों में गवाह अपने बयानों से पलट गए.

आयोग ने मुठभेड़ के बारे में कहा कि चौबेपुर पुलिस थाने में तैनात कुछ पुलिसकर्मियों ने दुबे को पुलिस की छापेमारी के बारे में पहले ही जानकारी दे दी थी, जिससे उसे अपने सहयोगियों को हथियारों के साथ बुलाने और जवाबी कार्रवाई के लिए तैयार होने का मौका मिला.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘कानपुर में खुफिया इकाई विकास दुबे और उसके गिरोह द्वारा आपराधिक गतिविधियों और हथियारों (कानूनी और अवैध) के बारे में जानकारी एकत्र करने में विफल रही. छापेमारी की तैयारी में कोई उचित सावधानी नहीं बरती गई, जबकि 38-40 पुलिसकर्मी बिकरू गांव पहुंचे और उनमें से किसी ने भी बुलेटप्रूफ जैकेट नहीं पहनी थी. उनमें से केवल 18 के पास हथियार थे, बाकी पुलिसकर्मी खाली हाथ या लाठियों के साथ गए थे.’

आयोग ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना पुलिस की खराब योजना के कारण हुई, क्योंकि उसने स्थिति का सही आकलन नहीं किया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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