जम्मू कश्मीर: सरकारी ज़मीन हस्तांतरण के विरोधी भाजपा नेता ख़ुद अवैध क़ब्ज़ाधारक निकले

सूचना का अधिकार के तहत हासिल जवाब में पाया गया कि दो अन्य लोगों के साथ भाजपा के वरिष्ठ नेता और जम्मू कश्मीर के पूर्व उपमुख्यमंत्री कविंदर गुप्ता राजस्व विभाग के दस्तावेज़ों में साल 2010 से 2017 के दौरान राज्य में सरकारी ज़मीन पर अवैध क़ब्ज़ेधारक के रूप में पाए गए हैं. हालांकि गुप्ता ने इससे इनकार किया है.

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भाजपा नेता कविंदर गुप्ता. (फोटो: ट्विटर/@KavinderGupta)

सूचना का अधिकार के तहत हासिल जवाब में पाया गया कि दो अन्य लोगों के साथ भाजपा के वरिष्ठ नेता और जम्मू कश्मीर के पूर्व उपमुख्यमंत्री कविंदर गुप्ता राजस्व विभाग के दस्तावेज़ों में साल 2010 से 2017 के दौरान राज्य में सरकारी ज़मीन पर अवैध क़ब्ज़ेधारक के रूप में पाए गए हैं. हालांकि गुप्ता ने इससे इनकार किया है.

भाजपा नेता कविंदर गुप्ता. (फोटो: ट्विटर/@KavinderGupta)

श्रीनगर: भाजपा के वरिष्ठ नेता और जम्मू कश्मीर के पूर्व उपमुख्यमंत्री कविंदर गुप्ता साल 2010 से 2017 के दौरान राज्य में सरकारी जमीन पर अवैध कब्जाधारक के रूप में पाए गए हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, दिलचस्प बात यह है कि गुप्ता रोशनी कानून के रूप में जाने जाने वाले जम्मू कश्मीर राज्य भूमि (धारकों को मालिकाना हक देना) कानून, 2001 के मुखर विरोधी थे, जिसके तहत सरकारी जमीन के मालिकाना हक को उसके अवैध निवासियों को बाजार दर पर देने का प्रस्ताव किया गया था.

नवंबर 2020 में हुए जिला विकास परिषद (डीडीसी) के चुनावों में कविंदर गुप्ता ने रोशनी अधिनियम को ‘भूमि जिहाद’ और कानून के खिलाफ की गई सरकारी कार्रवाई को अपने फायदे के लिए भूमि हस्तांतरण करने वाले भ्रष्ट अधिकारियों पर सर्जिकल स्ट्राइक बताया था.

रिपोर्ट में कहा गया है कि जानकारी वकील शेख शकील द्वारा दायर एक आरटीआई आवेदन के माध्यम से प्राप्त की गई.

सवालों का जवाब देते हुए भलवाल के तहसीलदार ने कहा कि जम्मू नगर निगम में जानीपुर स्थिति इंदिरा कॉलोनी का प्रतिनिधित्व करने वाले एक निर्दलीय पार्षद सुभाष शर्मा और इंदिरा कॉलोनी के ही निवासी शिव रतन के साथ गुप्ता ने संयुक्त रूप से सवालों में आए घर पर कब्जा किया था.

अब सरकारी बना दिया गया खरसा नंबर 1789 का यह प्लॉट पहाड़ी है और जंगली इलाका है. वहां कोई खेती या निर्माण नहीं है. खरसा नंबर एक प्लॉट नंबर होता है, जो राजस्व विभाग द्वारा जमीन के एक टुकड़े को दिया जाता है.

साल 2010 में एक खरसा गिरदावरी (राजस्व विभाग का एक दस्तावेज जो भूमि और फसल सौदों को दिखाता है) पर तीन लोगों के नाम दर्ज हुए.

हालांकि, इस दस्तावेज को भलवाल तहसीलदार ने 9 फरवरी, 2017 को जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार रद्द कर दिया था, जिसमें सरकार को निजी व्यक्तियों के लिए राज्य की सभी गिरदावरियों को रद्द करने का निर्देश दिया गया था.

उस समय कविंदर गुप्ता नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन की सरकार के तहत जम्मू नगर निगम के मेयर थे. कविंद्र शर्मा एक स्वतंत्र पार्षद हैं और जम्मू नगर निगम में इंद्रा कॉलोनी, जानीपुर का प्रतिनिधित्व करते हैं. शिव रतन इस कॉलोनी के रहने वाले हैं.

कविंदर गुप्ता और सुभाष शर्मा दोनों ने गिरदावरी की जानकारी होने या जमीन पर कब्जा करने से इनकार किया है.

कविंदर गुप्ता ने कहा, मैं अपने माता-पिता की कसम खाता हूं कि मुझे नहीं पता कि राजस्व अधिकारियों ने 23 कनाल और 9 मरला (आठ कैनाल मतलब एक एकड़ या 4,047 स्क्वायर मीटर जमीन और एक मारला मतलब 270 स्क्वायर फीट जमीन) राज्य भूमि से संबंधित गिरदावरी को मेरे नाम पर कब और कैसे कर दिया और इसे कैसे और कब रद्द कर दिया गया.

भलवाल तहसीलदार अमित उपाध्याय और घईंक पटवारी मोहम्मद असलम ने बताया कि उन्हें नहीं पता कि तीन संबंधित व्यक्तियों के नाम पर गिरदावरी कैसे दर्ज की गई.

हालांकि, उपाध्याय ने कहा कि राज्य की भूमि को कवर करने वाली गिरदावरी को किसी व्यक्ति के नाम पर दर्ज नहीं किया जा सकता है, जब तक कि वे व्यक्तिगत रूप से उपस्थित न हों, यह दिखाने के लिए कि भूमि उनके कब्जे में है.

भारी विरोध

जम्मू कश्मीर राज्य भूमि (धारकों को मालिकाना हक देना) कानून, 2001 सरकारी जमीन पर काबिज लोगों को मालिकाना हक देने के लिए लाया गया था और कहा गया था कि इससे होने वाली आय का इस्तेमाल विद्युत परियोजनाओं में निवेश के लिए किया जाएगा. इसीलिए इसका नाम रोशनी कानून रखा गया था. यह कानून साल 2001 में तत्कालीन फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार लेकर आई थी.

इसके साथ ही भूमि का मालिकाना हक उसके अनधिकृत कब्जेदारों को इस शर्त पर दिया जाना था कि वे बाजार भाव पर सरकार को भूमि की कीमत का भुगतान करेंगे.

नवंबर 2018 में हाईकोर्ट ने रोशनी कानून के लाभार्थियों को उन्हें हस्तांतरित जमीन को बेचने या कोई अन्य ट्रांजेक्शन करने से रोक दिया था. इसके बाद तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने नवंबर 2018 में ही इसे निरस्त कर दिया था.

इसके बाद अक्टूबर, 2020 में जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट ने जम्मू कश्मीर राज्य भूमि (धारकों को मालिकाना हक देना) कानून, 2001 या रोशनी कानून को गैरकानूनी और असंवैधानिक करार देते हुए इसके तहत भूमि आवंटन के मामलों की सीबीआई जांच का आदेश दे दिया.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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