प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि देश में वंदे मातरम कहने का सबसे पहला हक़ सफाई कार्य करने वालों को है.
नई दिल्ली: देश में खानपान को लेकर जारी बहस के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वामी विवेकानंद के विचारों का हवाला देते हुए सोमवार को कहा कि क्या खाएं, क्या नहीं खाएं, यह विषय हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं हो सकता और हम समयानुकूल परिवर्तन के पक्षकार हैं.
शिकागो में स्वामी विवेकानंद के संबोधन की 125वीं वर्षगांठ पर आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि 11 सितंबर 1893 को शिकागो में स्वामी विवेकानंद का संबोधन मात्र भाषण नहीं था बल्कि यह एक तपस्वी की तपस्या का सार था. वरना उस समय तो दुनिया में हमें सांप, संपेरों और जादू-टोना करने वालों के रूप में देखा जाता था. एकादशी को क्या खाएं, पूर्णिमा को क्या नहीं खाएं, इसी के लिए हमारी चर्चा होती थी.
मोदी ने कहा कि लेकिन स्वामी विवेकानंद ने दुनिया को स्पष्ट किया कि क्या खाएं, क्या नहीं खाएं… यह हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं हो सकता, यह सामाजिक व्यवस्था के तहत आ सकता है, लेकिन संस्कृति में शामिल नहीं हो सकता. हम तो आत्मवत सर्वभूतेषु य: पश्यति स: पंडित: को मानने वाले लोग हैं. अर्थात ऐसे लोग जो सभी में अपना ही रूप देखते हैं.
उन्होंने कहा कि हम ऐसे लोग हैं जो समायनुकूल परिवर्तन के पक्षकार हैं जिन्होंने ऐसे लोगों को पोषित करने का काम किया जो हमारी बुराइयों को ख़त्म करने को प्रयत्नशील रहे.
उन्होंने कहा कि हम उस विरासत में पले-बढ़े लोग हैं जिसमें हर कोई कुछ न कुछ देता ही है. भिक्षा मांगने वाला भी तत्वज्ञान से भरा होता है और जब कोई उसके सामने आता है तब वह कहता है कि देने वाले का भी भला, नहीं देने वाले का भी भला.
मेक इन इंडिया की वकालत करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इस बारे में हमें स्वामी विवेकानंद और जमशेदजी टाटा के संवाद को देखना चाहिए, तब हमें पता चलेगा कि स्वामी विवेकानंद ने टाटा से कहा था कि भारत में उद्योग लगाओ और निर्माण करो.
मोदी ने कहा कि स्वामी विवेकानंद कृषि में आधुनिक तकनीक के प्रयोग के पक्षधर थे. प्रधानमंत्री ने इस दौरान दीनदयाल उपाध्याय के अंत्योदय और विनोबा भावे की पहल का भी ज़िक्र किया.
वंदे मातरम कहने का पहला हक सफाई करने वालों को है: मोदी
पान खाकर इधर-उधर थूकने वालों और कूड़ा कचरा फेंकने वालों को फटकार लगाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि देश में वंदे मातरम कहने का सबसे पहला हक सफाई कार्य करने वालों को है.
प्रधानमंत्री ने कहा कि जब वंदे मातरम कहते हैं, तब भारत भक्ति का भाव जागृत होता है. लेकिन मैं इस सभागार में बैठे लोगों के साथ पूरे हिंदुस्तान से यह पूछना चाहता हूं कि क्या हमें वंदे मातरम कहने का हक है मैं जानता हूं कि मेरी यह बात कई लोगों को चोट पहुंचाएगी. लेकिन मैं फिर भी कहता हूं, 50 बार सोच लीजिए कि क्या हमें वंदे मातरम कहने का हक है?
मोदी ने कहा, हम पान खाकर भारत माता पर पिचकारी करते हैं और फिर वंदे मातरम कहते हैं. सारा कूड़ा-कचरा भारत माता पर फेंक देते हैं और फिर वंदे मातरम बोलते हैं. इस देश में वंदे मातरम कहने का सबसे पहला हक अगर किसी को है, तब देश भर में सफाई कार्य करने वाले हैं. यह हक भारत माता की उन सच्ची संतानों को है जो सफाई कार्य करते हैं.
उन्होंने कहा, और इसलिए हम यह ज़रूर सोचें कि सुजलाम, सुफलाम भारत माता की हम सफाई करें या नहीं करें… लेकिन इसे गंदा करने का हक हमें नहीं है.
उन्होंने कहा कह गंगा के प्रति श्रद्धा का भाव हो, हम यह ज़रूर सोचते हैं कि गंगा में डुबकी लगाने से हमारे पाप धुल जाते हैं, हर नौजवान सोचता है कि वह अपने मां-बाप को एक बार गंगा में डुबकी लगवाएं… लेकिन क्या उसकी सफाई के बारे में सोचते हैं. क्या आज स्वामी विवेकानंद जीवित होते, तब हमें डांटते नहीं.
प्रधानमंत्री ने कहा कि हम सोचते हैं कि हम इसलिए स्वस्थ हैं क्योंकि अच्छे से अच्छे अस्पताल और डॉक्टर हैं. लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम केवल अच्छे से अच्छे अस्पताल और उत्तम डॉक्टर के कारण स्वस्थ नहीं हैं बल्कि हम स्वस्थ इसलिए हैं क्योंकि हमारे सफाईकर्मी साफ-सफाई रखते हैं.
उन्होंने कहा, डॉक्टर से भी ज़्यादा आदर का भाव हम जब सफाईकर्मियों को देने लगे तब वंदे मातरम कहने का आनंद आएगा. मोदी ने कहा कि हम साल 2022 में आज़ादी के 75 साल मनाने जा रहे हैं. तब क्या हम कोई संकल्प ले सकते हैं क्या यह संकल्प जीवन भर के लिए होना चाहिए. मैं यह करूंगा, यह दृढ़ता होनी चाहिए.
प्रधानमंत्री ने इस संदर्भ में छात्र जीवन और छात्र राजनीति का ज़िक्र किया और कहा कि आज तक मैंने नहीं देखा कि छात्रसंघ चुनाव में किसी उम्मीदवार ने यह कहा हो कि हम कैम्पस को साफ रखेंगे. हमने यह देखा होगा कि चुनाव के दूसरे दिन कॉलेज या विश्वविद्यालय कैंपस की क्या स्थिति रहती है. लेकिन इसके बाद हम फिर वंदे मातरम कहते हैं.
उन्होंने कहा कि क्या हम नहीं चाहते कि हम अपने देश को 21वीं सदी का भारत बनाए, गांधी, भगत सिंह, राजगुरु, आज़ाद, विवेकानंद, सुभाष चंद्र बोस के सपनों का भारत बनाए. यह हमारा दायित्व है और हमें इसे पूरा करना है.
मैं रोज़ डे का विरोधी नहीं: मोदी
प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने कहा कि वे कॉलेजों में छात्रों द्वारा मनाए जाने वाले रोज़ डे के विरोधी नहीं है. उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए क्योंकि हमें रोबोट नहीं बनाने हैं बल्कि रचनात्मक प्रतिभा को बढ़ावा देना है.
उन्होंने कहा कि कॉलेजों में विभिन्न राज्यों के दिवस और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाना चाहिए.
शिकागो में स्वामी विवेकानंद के भाषण की 125वीं वर्षगांठ पर दीनदयाल शोध संस्थान की ओर से आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि कॉलेजों में कई तरह के डे मनाए जाते हैं. आज रोज़ डे है, कल कुछ और डे है. कुछ लोगों के विचार इसके विरोधी हैं और ऐसे कुछ लोग यहां भी बैठे होंगे. लेकिन मैं इसका विरोधी नहीं हूं.
मोदी ने कहा कि हमें रोबोट तैयार नहीं करने हैं, रचनात्मक प्रतिभा को आगे बढ़ाना है. इसके लिए विश्वविद्यालय के कैंपस से अधिक अच्छी कोई जगह नहीं हो सकती है.
उल्लेखनीय है कि बजरंग दल समेत कुछ दक्षिणपंथी संगठन विश्वविद्यालय और कॉलेज परिसरों में मनाए जाने वाले रोज़ डे जैसे दिवसों का विरोध करते हैं.
प्रधानमंत्री ने कहा कि लेकिन क्या हमने कभी यह विचार किया है कि हरियाणा का कोई कॉलेज तमिल दिवस मनाए, पंजाब का कोई कॉलेज केरल दिवस मनाए. उन्हीं जैसा पहनावा पहने, भाषा के प्रयोग का प्रयास करे, हाथ से चावल खाए, उस क्षेत्र के खेल खेले.
उन्होंने कहा कि कॉलेज में छात्र तमिल फिल्म देंखे. वहां के कुछ छात्रों को आमंत्रित करें और उनसे संवाद कायम करें. इस प्रकार से हम शैक्षणिक संस्थाओं में मनाए जाने वाले दिवस को सार्थक रूप में मना सकते हैं. एक भारत, श्रेष्ठ भारत को साकार कर सकते हैं.
मोदी ने कहा कि जब तक हमारे मन में हर राज्य और हर भाषा के प्रति गौरव का भाव नहीं आएगा तब तक अनेकता में एकता का भाव कैसे साकार होगा.
उन्होंने कहा कि हम कॉलेजों में सिख गुरुओं के बारे में चर्चा आयोजित कर सकते हैं, बता सकते हैं कि क्या-क्या बलिदान दिया सिख गुरुओं ने.
उन्होंने कहा कि रचनात्मकता के बिना ज़िंदगी की सार्थकता नहीं हो सकती. हमें अपनी रचनात्मकता के ज़रिये देश की ताकत बनना चाहिए, आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये प्रयत्नशील होना चाहिए.
प्रधानमंत्री ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने ज्ञान और कौशल को एक-दूसरे से अलग किया था और आज पूरे विश्व में कौशल विकास को महत्व दिया जा रहा है. हमारी सरकार ने कौशल विकास को तवज्जो दी है.
मोदी ने कहा कि कौशल विकास कोई नया विषय नहीं है, इस कार्य को पहले भी आगे बढ़ाया गया, लेकिन यह बिखरा हुआ था. हमने इसके लिए एक विभाग बनाया और विशेष रूप में इस कार्य को आगे बढ़ाया है.
उन्होंने कहा कि हम नौजवानों को रोज़गार मांगने वाला (जॉब सिकर) नहीं बल्कि रोजगार सृजन करने वाला (जॉब क्रिएटर) बनाना चाहते हैं. हमें मांगने वाला नहीं बल्कि देने वाला बनना चाहिए.
प्रधानमंत्री ने कहा कि आज जब हम स्वामी विवेकानंद की बात करते हैं तब हमें ध्यान रखना चाहिए कि वे नवोन्मेष और आधुनिक विचारों के प्रवर्तक थे तथा घिसीपिटी बातों को छोड़ने के पक्षधर थे.
उन्होंने कहा, हम सामाजिक जीवन में तभी प्रगति कर सकते हैं, जब हम नित्य नूतन और प्राणवान रहे. हमें वैसा नौजवान बनना चाहिए जो नवोन्मेष को उन्मुख हो.
मोदी ने कहा कि कई लोगों को यह लगता है कि वे विफल हो सकते हैं लेकिन क्या आपने दुनिया में कोई ऐसा इंसान देखा है जो फेल हुए बिना सफल हुआ हो. कई बार असफलता ही सफलता की सीढ़ी होती है. किनारे पर खड़े रहने वाला व्यक्ति डूबता नहीं है लेकिन सफल वहीं होता है जो लहरों को पार करने का साहस दिखाता है.
उन्होंने कहा कि हम आज स्टार्टअप योजना को आगे बढ़ा रहे हैं. हिन्दुस्तान के युवाओं में बुद्धि और सामर्थ्य है. आज हम इस उद्देश्य से कौशल को महत्व दे रहे हैं , क्योंकि सर्टिफिकेट से ज्याद महत्व दुनिया में हुनर को दिया जा रहा है.
विश्व जब संकटों से घिरा हो तो समाधान का रास्ता वन एशिया है: मोदी
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि 21वीं सदी एशिया की सदी है और इस संदर्भ में विवेकानंद के विचार आज भी प्रासंगिक हैं.
प्रधानमंत्री ने कहा कि आज विदेश नीति के बारे में ढेर सारी चर्चा होती है, यह खेमा, वह खेमा… यह ग्रुप, वह ग्रुप. शीत युद्ध काल का समूह. लेकिन कभी हमने यह विचार किया है, विदेश नीति के बारे में स्वामी विवेकानंद के विचार क्या थे.
उन्होंने कहा कि आज से 120 साल पहले स्वामी विवेकानंद ने वन एशिया का विचार दिया था. विश्व जब संकटों से घिरा हो तो उस समय समाधान का रास्ता निकालने की ताकत वन एशिया में से होगी.
मोदी ने कहा कि आज पूरी दुनिया कह रही है कि 21वीं सदी भारत की सदी है. कोई कहता है कि चीन का है, कोई कहता है कि भारत का है. लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि 21वीं सदी एशिया की सदी है.
उन्होंने कहा कि हमें भारत को सामर्थ्यवान और सशक्त बनाना है और इसके लिए मिल-जुलकर प्रयास करने की ज़रूरत है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)