धर्मांतरण विरोधी क़ानून संबंधी आदेश में बदलाव की गुजरात सरकार की अर्ज़ी ख़ारिज

गुजरात सरकार द्वारा हाल ही में लागू किए गए धार्मिक स्वतंत्रता संशोधन क़ानून, 2021 की कुछ धाराओं पर हाईकोर्ट ने बीते दिनों रोक लगा दी थी. इसमें संशोधन के लिए सरकार ने अर्ज़ी दी थी. इस पर राज्य के गृह और कानून मंत्री प्रदीप सिंह जडेजा ने कहा कि लव जिहाद विरोधी क़ानून को बेटियों से दुर्व्यवहार करने वाली जिहादी ताक़तों को नष्ट करने के लिए एक हथियार के रूप में लाया गया था. राज्य सरकार हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी.

(इलस्ट्रेशन: द वायर)

गुजरात सरकार द्वारा हाल ही में लागू किए गए धार्मिक स्वतंत्रता संशोधन क़ानून, 2021 की कुछ धाराओं पर हाईकोर्ट ने बीते दिनों रोक लगा दी थी. इसमें संशोधन के लिए सरकार ने अर्ज़ी दी थी. इस पर राज्य के गृह और कानून मंत्री प्रदीप सिंह जडेजा ने कहा कि लव जिहाद विरोधी क़ानून को बेटियों से दुर्व्यवहार करने वाली जिहादी ताक़तों को नष्ट करने के लिए एक हथियार के रूप में लाया गया था. राज्य सरकार हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी.

(इलस्ट्रेशन: द वायर)

अहमदाबाद: गुजरात सरकार ने नए धर्मांतरण रोधी कानून की धारा पांच के क्रियान्वयन पर रोक के संबंध में अदालत के हालिया फैसले में संशोधन का अनुरोध करने वाली राज्य सरकार की अर्जी बृहस्पतिवार को खारिज कर दी.

गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) कानून, 2021 की धारा-पांच के तहत पुजारी के लिए किसी व्यक्ति का धर्मांतरण कराने से पहले जिलाधिकारी की अनुमति लेना अनिवार्य है. इसके साथ ही धर्मांतरण करने वाले व्यक्ति के लिए भी निर्धारित आवेदन भरकर अपनी सहमति के बारे में जिलाधिकारी को अवगत कराना आवश्यक है.

राज्य के महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी की दलीलें सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और जस्टिस बीरेन वैष्णव की खंडपीठ ने कहा, ‘हमें 19 अगस्त को हमारे द्वारा पारित आदेश में कोई बदलाव करने का कोई कारण नजर नहीं आता.’

राज्य सरकार के वकील त्रिवेदी ने पीठ से कहा कि गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021 की धारा पांच मूल कानून को 2003 में क्रियान्वित किए जाने के समय से लागू है और इसका विवाह से कोई लेना-देना नहीं है.

उन्होंने न्यायाधीशों को यह समझाने की कोशिश की कि धारा पांच पर रोक वास्तव में पूरे कानून के क्रियान्वयन पर ही रोक लगा देगी और धर्मांतरण से पहले कोई भी व्यक्ति अनुमति लेने के लिए अधिकारियों से संपर्क नहीं करेगा.

उल्लेखनीय है कि अदालत ने 19 अगस्त को दिए अपने आदेश में गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम-2021 की धाराओं- तीन, चार, चार ए से लेकर चार सी तक, पांच, छह और छह ए पर सुनवाई लंबित रहने तक रोक लगा दी थी.

पीठ ने कहा था, ‘हमारी यह राय है कि आगे की सुनवाई लंबित रहने तक धारा तीन, चार, चार ए से लेकर धारा चार सी, पांच, छह एवं छह ए को तब लागू नहीं किया जाएगा, यदि एक धर्म का व्यक्ति किसी दूसरे धर्म व्यक्ति के साथ बल प्रयोग किए बिना, कोई प्रलोभन दिए बिना या कपटपूर्ण साधनों का इस्तेमाल किए बिना विवाह करता है और ऐसे विवाहों को गैरकानूनी धर्मांतरण के उद्देश्य से किए गए विवाह करार नहीं दिया जा सकता.’

त्रिवेदी ने अदालत से कहा कि धारा पांच में ‘विवाह’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है और यह विवाह से पहले या बाद में या उन मामलों में भी धर्मांतरण के लिए जिलाधिकारी की अनुमति से संबंधित है, जिनमें धर्मांतरण का विवाह से संबंध नहीं है.

त्रिवेदी ने पीठ से अपने पिछले आदेश में सुधार करके धारा पांच पर लगी रोक हटाने का आग्रह करते हुए कहा, ‘चूंकि धारा पांच पर रोक है, तो कोई भी व्यक्ति अनुमति नहीं लेगा, भले ही यह बिना विवाह के स्वैच्छिक धर्मांतरण कर रहा हो. वे कहेंगे कि उच्च न्यायालय ने धारा पांच पर रोक लगा दी है. यह ऐसे प्रस्तावों के लिए है, जहां सब कुछ स्वेच्छा से किया जाता है. इस आदेश का मतलब है कि अब पूरे कानून पर रोक लग गई है.’

त्रिवेदी ने कहा, ‘जिन अन्य धाराओं पर रोक लगाई गई है, वे विवाह से संबंधित हैं, जबकि धारा पांच कानूनी रूप से स्वैच्छिक धर्मांतरण के लिए है. उस धारा के तहत यदि कोई पुजारी के पास जाता है, तो पुजारी को अनुमति लेनी पड़ती है. यह वैध धर्मांतरण से संबंधित है. वैध धर्मांतरण संबंधी धारा पर रोक लगाने की आवश्यकता क्यों है?’

पीठ ने त्रिवेदी से कहा कि यह उनकी (त्रिवेदी की) अपनी व्याख्या है कि अदालत ने सभी प्रकार के धर्मांतरण के लिए पूर्व अनुमति वाले हिस्से पर रोक लगा दी है.

मुख्य न्यायाधीश नाथ ने राज्य सरकार की अर्जी खारिज करते हुए कहा, ‘अगर कोई अविवाहित व्यक्ति धर्म परिवर्तन करना चाहता है, तो उसे उस अनुमति की आवश्यकता होगी. हमने इस पर रोक नहीं लगाई है. हमने केवल विवाह के माध्यम से धर्मांतरण पर रोक लगाई है. हमने आदेश में यही कहा है.’

विवाह के माध्यम से जबरन या धोखाधड़ी से धर्म परिवर्तन के लिए दंडित करने वाले गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021 को राज्य सरकार ने 15 जून को अधिसूचित किया गया था.

मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में भी भाजपा सरकारों ने इसी तरह के कानून बनाए हैं. जमीयत उलेमा-ए-हिंद की गुजरात शाखा ने पिछले महीने दाखिल एक याचिका में कहा था कि कानून की कुछ संशोधित धाराएं असंवैधानिक हैं.

फैसले को हाईकोर्ट में देंगे चुनौती: गृह और कानून मंत्री 

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के गुजरात हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद राज्य के गृह और कानून मंत्री प्रदीप सिंह जडेजा ने कहा कि लव जिहाद विरोधी कानून को हमारी बेटियों से दुर्व्यवहार करने वाली जिहादी ताकतों को नष्ट करने के लिए एक हथियार के रूप में लाया गया था. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी.

जडेजा ने कहा कि धारा पांच धर्मांतरण विरोधी कानून का ‘मूल’ है.

मंत्री ने एक बयान में कहा, ‘हम हिंदुओं सहित सभी धर्मों की महिलाओं की रक्षा के लिए दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ रहे हैं. जिहादी तत्वों द्वारा लड़कियों को प्रताड़ित करने के लिए हमने दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ लव जिहाद पर कानून का हथियार उठाया है. गुजरात सरकार फर्जी हिंदू पहचान, प्रतीकों और प्रलोभनों के जरिये फर्जी विवाह और महिलाओं के साथ विश्वासघात को रोकने के नेक इरादे से गुजरात धर्म स्वतंत्रता संशोधन अधिनियम लाई है.’

उन्होंने कहा कि धर्मांतरण विरोधी कानून राजनीतिक एजेंडा नहीं है, बल्कि राज्य सरकार द्वारा लड़कियों की सुरक्षा के लिए एक प्रणाली बनाने का एक ईमानदार प्रयास है. उन्होंने कहा कि कुछ विरोधियों ने इसकी गलत व्याख्या की और हाईकोर्ट चले गए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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