तमिलनाडु विधानसभा ने केंद्र के कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पारित किया

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने सदन को बताया कि कृषि क़ानूनों की वापसी की मांग को लेकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वाले किसानों और राजनीतिक दलों के नेताओं के ख़िलाफ़ राज्य में दर्ज किए गए सभी मामले वापस लिए जाएंगे. उन्होंने कहा कि किसानों के हितों की रक्षा और खेती को बड़ी कंपनियों के क़ब्जे़ में जाने से रोकने के लिए केंद्र को इन क़ानूनों को वापस लेना चाहिए.

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन. (फोटो: पीटीआई)

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने सदन को बताया कि कृषि क़ानूनों की वापसी की मांग को लेकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वाले किसानों और राजनीतिक दलों के नेताओं के ख़िलाफ़ राज्य में दर्ज किए गए सभी मामले वापस लिए जाएंगे. उन्होंने कहा कि किसानों के हितों की रक्षा और खेती को बड़ी कंपनियों के क़ब्जे़ में जाने से रोकने के लिए केंद्र को इन क़ानूनों को वापस लेना चाहिए.

एमके स्टालिन. (फोटो: पीटीआई)

चेन्नई: तमिलनाडु विधानसभा ने बीते शनिवार को एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र से तीन विवादित कृषि कानूनों को वापस लेने का अनुरोध किया. इन कानूनों के खिलाफ किसान महीनों से दिल्ली से लगे सीमावर्ती इलाकों में प्रदर्शन कर रहे हैं.

मुख्य विपक्षी दल अन्नाद्रमुक और उसकी सहयोगी भारतीय जनता पार्टी ने इस मुद्दे पर सदन से बहिर्गमन किया. हालांकि, उनका एक अन्य सहयोगी दल पीएमके इसमें शामिल नहीं हुआ. सत्ताधारी द्रमुक के सहयोगी दलों कांग्रेस, भाकपा और माकपा ने प्रस्ताव का समर्थन किया.

मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने सदन को बताया कि कृषि कानूनों की वापसी की मांग को लेकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वाले किसानों और राजनीतिक दलों के नेताओं के खिलाफ तमिलनाडु में दर्ज किए गए सभी मामले वापस लिए जाएंगे.

स्टालिन ने ‘संविधान में निहित संघवाद के सिद्धांत के खिलाफ’ बनाए गए तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने का आह्वान करते हुए प्रस्ताव पेश किया और इसे सर्वसम्मति से पारित किए जाने का अनुरोध किया.

उन्होंने कहा कि किसानों के हितों की रक्षा और खेती को बड़ी कंपनियों के कब्जे में जाने से रोकने के लिए केंद्र को इन कानूनों को वापस लेना चाहिए.

प्रस्ताव में तीनों कृषि कानूनों को सूचीबद्ध करते हुए कहा गया, ‘हमारे देश के कृषि विकास और किसानों के कल्याण के लिये चूंकि ये तीनों कानून अनुकूल नहीं हैं, इसलिए इन्हें केंद्र सरकार द्वारा निरस्त किया जाना चाहिए.’

प्रस्ताव में कहा गया कि यह कानून किसानों के कल्याण के खिलाफ हैं.

स्टालिन ने कहा कि उनकी सरकार किसानों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन का सम्मान करती है. उन्होंने कहा कि प्रदर्शन नौ अगस्त 2020 को शुरू हुए थे और 28 अगस्त 2021 को प्रदर्शन का 385वां दिन था.

अन्नाद्रमुक के उपनेता ओ. पनीरसेल्वम ने कहा कि मुख्यमंत्री ने कृषि कानूनों के नुकसान की बात प्रस्ताव में कही है, लेकिन उसके फायदों पर भी चर्चा होनी चाहिए. पनीरसेल्वम ने जानना चाहा कि क्या राज्य सरकार ने इस मामले पर केंद्र को पत्र लिखा है और क्या उसे कोई जवाब प्राप्त हुआ है.

बाद में विधानसभा अध्यक्ष एम अप्पावु ने प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित घोषित किया.

मालूम हो कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद बीते जून महीने में एमके स्टालिन ने कहा था कि विधानसभा के आगामी बजट सत्र में केंद्र के कृषि कानून एवं नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरूद्ध प्रस्ताव पारित किए जाएंगे.

तमिलनाडु से पहले पंजाब की कांग्रेस नेतृत्व वाली अमरिंदर सिंह सरकार ने भी बीते मार्च महीने में इन विवादित कानूनों के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया था. पंजाब के अलावा दिसंबर 2020 में केरल विधानसभा ने सर्वसम्मति से ऐसा ही प्रस्ताव पारित किया गया था.

इससे पहले अक्टूबर 2020 में राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने केंद्रीय कृषि कानूनों के राज्य के किसानों पर पड़ने वाले असर को निष्प्रभावी करने के लिए तीन विधेयक विधानसभा में पेश किए गए थे. इन विधेयकों में राज्य के किसानों के हितों की रक्षा के लिए कई प्रावधान किए हैं. इनमें किसानों के उत्पीड़न पर कम से कम तीन साल की कैद और पांच लाख रुपये तक का जुर्माना भी शामिल है.

गौरतलब है कि केंद्र सरकार की ओर से कृषि से संबंधित तीन विधेयक– किसान उपज व्‍यापार एवं वाणिज्‍य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्‍य आश्‍वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्‍यक वस्‍तु (संशोधन) विधेयक, 2020 को बीते साल 27 सितंबर को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी थी, जिसके विरोध में छह महीने से अधिक समय से किसान प्रदर्शन कर रहे हैं.

किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन अध्यादेशों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.

दूसरी ओर केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली मोदी सरकार ने इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है. उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)