लद्दाख एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस ने लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं. स्थानीय निवासियों के विशेष अधिकारों की मांग को नज़रअंदाज़ करने के बाद शनिवार को उन्होंने कारगिल और लेह ज़िलों में पूर्ण बंद का आह्वान किया था.
श्रीनगरः केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के दोनों जिलों मुस्लिम बहुल्य कारगिल और बौद्ध बहुल्य लेह के बीच हमेशा से विवाद रहा है. इन दोनों ही जिलों की अलग-अलग पहचान और आकाक्षाएं रही हैं लेकिन केंद्र सरकार के पांच अगस्त 2019 के फैसले के दुष्परिणामों से निराश ये दोनों जिले अपने दशकों पुराने मतभेद दूर कर पूर्ण राज्य की मांग और क्षेत्र के स्थानीय निवासियों के विशेष अधिकारों के लिए एक साथ आगे आए हैं.
दोनों ने एकता का परिचय देते हुए शनिवार को पूर्ण रूप से बंद रखा. इससे पहले क्षेत्रों के विभिन्न समूहों को केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय के साथ बातचीत के लिए अलग-अलग आमंत्रित किया गया था, लेकिन लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग और स्थानीय निवासियों के लिए विशेष अधिकारों की मांग कर रहे इन जिलों के दो प्रमुख संगठनों को नजरअंदाज कर बातचीत के लिए आमंत्रित नहीं किया गया, जिसके बाद इन्होंने बंद का आह्वान किया.
हालांकि, इस बंद के आह्वान का असर यह रहा कि केंद्र सरकार को यूटर्न लेते हुए इन दोनों संगठनों को बातचीत के लिए आमंत्रित करना पड़ा, जिसके बाद इन संगठन के नेताओं ने शनिवार को मंत्री से मुलाकात की जबकि इस दौरान इन जिलों में पूर्ण बंद रहा.
बंद
1979 के बाद पहली बार मुस्लिम बहुल कारगिल को अलग जिला बनाया गया. दोनों जिले शनिवार को पूर्ण रूप से बंद रहे, जिसका साझा उद्देश्य केंद्र सरकार के उन्हें विभाजित करने के कथित प्रयास का विरोध करना था.
लद्दाख एपेक्स बॉडी (एलएबी) और कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस (केडीए) ने शुक्रवार को लेह और कारगिल में अलग-अलग प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें आम जनता से केंद्र सरकार के उनके नेतृत्व में दरार पैदा करने की योजना के खिलाफ शनिवार को बंद का पालन करने की अपील की गई थी.
द वायर से बातचीत में पूर्व मंत्री और लेह से प्रमुख चेरिंग दोरजे ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न समूहों को भेजा गया व्यक्तिगत निमंत्रण एकता को तोड़ने का प्रयास था.
उन्होंने कहा, ‘हमने इसे हमें विभाजित करने के प्रयास के तौर पर देखा. हमने केंद्र सरकार को स्पष्ट किया था कि हम उनसे व्यक्तिगत रूप से नहीं मिलेंगे और उन्हें वार्ता के लिए एलएबी और केडीए को संयुक्त रूप से आमंत्रित करना चाहिए.’
एलएबी और केडीए अलग-अलग प्रभावशाली राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक समूह हैं. दोनों समूहों ने लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए इस महीने की शुरुआत में हाथ मिलाया था.
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी-भाजपा सरकार में मंत्री रह चुके दोरजे का कहना है कि क्षेत्र के लोग इस यथास्थिति से असंतुष्ट और निराश हैं.
उन्होंने कहा, ‘हमें ऐसी व्यवस्था चाहते हैं जिसमें नौकरशाहों के शासन के बजाए लद्दाख के लोग खुद शासन करें.’ उनका कहना है कि पांच अगस्त 2019 के बाद से यहां के लोगों के मामलों में नौकरशाही का हस्तक्षेप बहुत अधिक है.
उन्होंने जोड़ा, ‘जब हम जम्मू कश्मीर का हिस्सा थे, तब मामलों में जम्मू कश्मीर सरकार का बहुत कम हस्तक्षेप था.’
उन्होंने कहा कि उन्होंने केंद्र को स्पष्ट कर दिया है कि जम्मू कश्मीर की तर्ज पर यहां डोमिसाइल कानून का पैटर्न स्वीकार्य नहीं है क्योंकि जो भी वहां पंद्रह साल की अवधि के लिए रहता है, वह रोजगार के योग्य हैं.
कारगिल के पूर्व विधायक और केडीए के सह-अध्यक्ष असगर अली करबलाई ने कहा कि जब उन्हें लगा कि केंद्र सरकार लेह और कारगिल के संयुक्त आंदोलन को कमजोर करने की कोशिश कर रही है तो हमने बंद का आह्वान किया.
उन्होंने कहा, ‘वार्ता के लिए एलएबी और केडीए को आमंत्रित नहीं किए जाने के बाद हमने बंद का आह्वान किया.’
उन्होंने का कि केंद्रीह गृहराज्यमंत्री ने उन्हें शुक्रवार रात को फोन पर बताया कि उनकी हमें नजरअंदाज करने की कोई मंशा नहीं है और किसी भ्रम की स्थिति पैदा होने की वजह से हमनें वार्ता के लिए आमंत्रित नहीं किया गया था.
उन्होंने कहा, ‘केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने खुद एलएबी के चेयरमैन थुपस्तान चेवांग से शुक्रवार रात को फोन पर बात की है.’
#Kargil Democratic Alliance & #Leh Apex Body calls ‘LADAKH BANDH’ against the GoI’s attempt of divide & rule.
KDA appealed all Transport /Marchant / Employees associations to make the call successful.
MoS MHA @nityanandraibjp proposed meeting is an attempt to divide Ladakhis. pic.twitter.com/GOLy5ZhVKK
— Sajjad Kargili | سجاد کرگلی (@SajjadKargili_) August 27, 2021
केडीए के सदस्य सज्जाद कारगिली ने विभिन्न समूहों को वार्ता के लिए अलग-अलग आमंत्रित करने को लद्दाखियों को विभाजित करने का प्रयास बताया.
द वायर से बातचीत में कारगिली ने कहा कि एलएबी और केडीए दोनों लद्दाख के लिए पूर्ण राज्य के दर्जे, लेह और कारगिल जिलों के लिए अलग-अलग लोकसभा सीटों और अनुच्छेद 371 या छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा उपाय की मांग की लड़ाई लड़ने के लिए सहमत हुए थे.
पांच अगस्त से पहले की विधायी और नौकरशाही संरचना
पांच अगस्त 2019 से पहले जम्मू कश्मीर की द्विसदनीय विधानसभा में लद्दाख के चार विधायक और दो एमएलसी थे. वास्तव में जम्मू एवं कश्मीर क्षेत्रों की तुलना में लद्दाख का विधानसभा में अधिक बेहतर प्रतिनिधित्व था. कम से कम एक या दो विधायक या विधान परिषद जम्मू कश्मीर की कैबिनेट में क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते थे. अब इस क्षेत्र के लिए सर्वोच्च निर्वाचित संस्था दो हिल डेवलपमेंट काउंसिल हैं, जो क्रमशः 1995 और 2003 में अस्तित्व में आई थीं.
पांच अगस्त 2019 से पहले लद्दाख के स्थानीय लोग स्थाई नागरिक होने की वजह से जम्मू कश्मीर में रोजगार के लिए आवेदन करने के योग्य थे लेकिन जम्मू कश्मीर से लद्दाख का विभाजन होने के बाद कानूनी एवं संवैधानिक पदों में बदलाव की वजह से लद्दाख के लोग जम्मू कश्मीर में रोजागर के योग्य नहीं है.
यहां यह उल्लेख करना सही है कि लेह जिले ने लद्दाख के केंद्रशासित प्रदेश के दर्जे को स्वीकार कर लिया था, जबकि कारगिल ने इस फैसले का विरोध करते हुए जम्मू कश्मीर में इसे दोबारा शामिल किए जाने और अनुच्छेद 370 को दोबारा बहाल करने की मांग की थी.
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