अपने पूर्ववर्ती डोनाल्ड ट्रंप के अंतर्मुखी एकपक्षीय रवैये की जगह जो बाइडन का बहुपक्षीयता पर ज़ोर देना दिखाता है कि उनके नेतृत्व में अमेरिका सबको साथ लेकर दुनिया की अगुआई करना चाहता है. मानवाधिकार और क़ानून के शासन को लेकर प्रतिबद्धता के साथ ब्रांड अमेरिका की मरम्मत बाइडन की टीम की मुख्य प्राथमिकताओं में से एक है.
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अमेरिका के इतिहास में कम बार ही ह्वाइट हाउस की शोभा जो बाइडन जैसे अनुभवी नेता ने बढ़ाई है. दुनिया में अमेरिकी रहनुमाई की फिर से बहाली बतौर राष्ट्रपति बाइडन की विदेश नीति का सर्वप्रमुख लक्ष्य है. इंटरिम नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटेजिक गाइडेंस, जो दुनिया के देशों के साथ अमेरिका के रिश्ते को लेकर राष्ट्रपति के नजरिये का ब्लू प्रिंट है, कहता है, ‘संयुक्त राज्य को अपनी स्थायी बढ़तों पर पड़ी जंग को रगड़कर चमकाना चाहिए ताकि हम आज की चुनौतियों का मुकाबला मजबूती की स्थिति से कर सकें.
उन्होंने काफी तत्परता के साथ एक बेहद योग्य, प्रसिद्ध और अनुभवी टीम का भी गठन किया है. अमेरिकी सेक्रेटरी ऑफ स्टेट्स एंटनी जे. ब्लिंकेन ने पदभार संभालते हुए कहा, ‘अमेरिकी नेतृत्व और हस्तक्षेप मायने रखता है. यह बात हम अपने अपने दोस्तों से सुन रहे हैं. उन्हें इस बात की खुशी है कि हम फिर से यह जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार हैं. हमें यह सुनना अच्छा लगे या न लगे, लेकिन यह सच है कि यह दुनिया खुद को खुद से व्यवस्थित नहीं करती है.’
इसमें कोई संदेह नहीं है कि अमेरिका की घटनाओं और इसके नजरिये का प्रभाव इसकी सीमाओं से कहीं दूर तक पड़ता है. जो बाइडन के पद पर आसीन होने के बाद से अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने अमेरिकी विदेश नीति के फैसलों की रफ्तार में आई तेजी को महसूस किया है.
इन फैसलों में अफगानिस्तान से अपनी सेना की झटपट और मुश्किलों भरी वापसी, नाटो और जी-7 में में अमेरिका की भागीदारी को नई ऊर्जा देना, चार देशों के समूह- क्वाड (अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत का एक अनौपचारिक मंच) का पुनर्जीवन, चीन पर तवज्जो तथा अन्य शामिल हैं.
ये पहल साफतौर पर वैश्विक मंच पर दुनिया का नेतृत्व करने वाली अमेरिका की परंपरागत भूमिका, अंतरराष्ट्रीय मसलों की पहचान और उसको आकार देने वाले पहले या सबसे महत्वपूर्ण देश के तौर पर खुद को पुनर्स्थापित करने के लक्ष्य की दिशा में हैं. लेकिन बदले हुए वैश्विक हालातों के कारण पश्चिमी उदाहरणों के तुलनात्मक फायदों को लेकर वैचारिक बहस में एक गिरावट आई है.
प्रतिबद्धताओं का पुनर्संगठन
राष्ट्रपति बनने के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा में उन्होंने कहा, ‘अमेरिका एक बार फिर से हमारे बुनियादी उसूलों को साझा करने वाले देशों के साथ मिलकर दुनिया की अगुवाई करने के लिए तैयार है.’
अंतरराष्ट्रीय समुदाय को दिया गया संदेश बिल्कुल साफ है – कि ‘अमेरिका एक निश्चित खुलेपन के साथ वैश्विक मेज पर लौट आया है,’ इस समझ के साथ कि वह अकेले दुनिया का नेतृत्व नहीं कर सकता है. उनके पूर्ववर्ती डोनाल्ड ट्रंप के अंतर्मुखी एकपक्षीय रवैये की जगह बहुपक्षीयता पर जोर दिखाता है कि बाइडन के नेतृत्व में अमेरिका सिर्फ शक्ति के उदाहरण से नहीं, बल्कि उदाहरण की शक्ति से दुनिया की अगुआई करना चाहता है. मानवाधिकार और कानून के शासन को लेकर प्रतिबद्धता को शामिल करते हुए ब्रांड अमेरिका की मरम्मत बाइडन की टीम की सक्रिय प्राथमिकताओं में से एक है.
ऐसे में जबकि अमेरिका और चीन के बीच आर्थिक, कूटनीतिक और यहां तक कि सैन्य तनाव भी लगातार बढ़ रहा है, बाइडन की चीन संबंधी रणनीति पारंपरिक गठजोड़ों को मजबूत करने पर टिकी है. जून में कॉर्नवेल में हुए जी-7 सम्मेलन में बाइडन ने समूह के देशों को चीन से पैदा हुए खतरे पर तवज्जो देने और विकासशील देशों में चीन द्वारा बहाए जा रहे अरबों डॉलर का मुकाबला करने के लिए एक वैश्विक ‘बिल्ड बैक बेटर’ फंड का निर्माण करने के लिए मनाने की कोशिश की. जहां तक चीन का सवाल है तो यह साफ तौर पर डोनाल्ड ट्रंप द्वारा चीन को विरोधी मानकर चलने वाली नीति का विस्तार है, लेकिन कठोर बयानों के साथ.
बाइडन का रुख ज्यादा समग्र और जरूरत से ज्यादा टकराहट का रास्ता इख्तियार किए बगैर प्रतिस्पर्धात्मक है. चीन को ही ध्यान में रखते हुए अमेरिका भारत-प्रशांत क्षेत्र में विकास पर बल दे रहा है. इस संबंध में अमेरिका का वर्तमान प्रशासन भारत-प्रशांत क्षेत्र के लिए ट्रंप की नीति को ही आगे बढ़ा रहा है, जिसका खाका अब सार्वजनिक हो चुके ‘यूनाइटेड स्टेट्स स्ट्रैटिजिक फ्रेमवर्क फॉर द इंडो पैसिफिक’ में पेश किया गया था.
इस फ्रेमवर्क का मकसद ज्यादा महत्वाकांक्षी और ज्यादा शक्तिशाली चीन के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के साथ एक चतुष्कोणीय सुरक्षा ढांचे की धुरी तैयार करना है. मार्च में क्वाड सम्मेलन का आयोजन ‘मुक्त और खुले इंडो-पैसिफिक’ के लिए भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के बीच व्यावहारिक सहयोग की संभावनाओं को तलाश करने के लक्ष्य के साथ किया गया.
बाइडन के रास्ते की मुश्किलें
बाइडन प्रशासन को जिस पहली चुनौती का सामना करना पड़ा है वह यह है कि अफगानिस्तान से सैनिकों की वापसी ने उसी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई है, जिसे बाइडन फिर से बहाल करना चाहते हैं. दो दशकों के युद्ध ने पहले ही अमेरिका को जान और माल का भारी नुकसान पहुंचाया है और अब अफगानिस्तान से सैन्य वापसी ने अमेरिका के अपने ही तथाकथित ‘आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई’ को लेकर उसकी प्रतिबद्धता पर बट्टा लगा दिया है. सुरक्षा मोर्चे पर नतीजे दे पाने में नाकामी से क्षेत्र और उससे बाहर अमेरिका की प्रतिष्ठा नहीं बढ़ने वाली है.
बाइडन एक वैकल्पिक आर्थिक ढांचे का निर्माण करके और बीआरआई -बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव- को चुनौती पेश करने के लिए विदेशी परियोजनाओं के लिए निजी निवेश मंगाकर प्रतिस्पर्धात्मक तौर पर चीन से दो-दो हाथ करना चाहते हैं. लेकिन अमेरिका अभी तक देशों को यह भरोसा नहीं दिला पाया है कि बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत बीजिंग द्वारा पेश किए गए राज्य समर्थित आर्थिक विजन के बरक्स इसके पास देने के लिए कोई विकल्प है.
हालांकि, जी-7 ने ‘तानाशाहियों के साथ मुकाबले’ को लेकर बातों पर गर्मजोशी भरी प्रतिक्रिया दी है, लेकिन वे इस बात को लेकर स्पष्ट नहीं हैं कि उन्हें चीन और रूस के खिलाफ किस प्रकार का टकराहट वाली मुद्रा अपनानी है.
चीन का उभार समूह के लिए चुनौतियां पेश कर रहा है, लेकिन इसके ज्यादातर सदस्य इस बार चीन के साथ शीत वाली स्थिति में लौटना नहीं चाहेंगे. कुछ यूरोपी देश और जापान दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ अपने व्यावसायिक रिश्ते को खराब करने को लेकर सजग हैं.
इसके साथ ही बीआरआई का बेहतर विकल्प होने का दावा करने वाले अमेरिका समर्थित ‘बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (बी3डब्ल्यू)’ की जी-7 की योजना के लिए पैसा कहां से आएगा, यह भी साफ नहीं है. वैश्विक महामारी के बाद के परिदृश्य में, जबकि यूरोपीय अर्थव्यवस्थाएं पस्त पड़ी हुई हैं, इस बात की संभावना नहीं है कि वे ऐसी पहलों के लिए नकद पैसा लेकर आएंगी.
इसमें कोई शक नहीं है कि जी-7 के नेताओं ने चीन को ‘मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रताओं का सम्मान’ करने के लिए, खासतौर पर उइगर और अन्य मुस्लिम अल्पसंख्यक आबादी वाले उत्तर पश्चिमी शिंजियांग इलाके में, कहा है, लेकिन मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए कड़े शब्द कहना, चीन के खिलाफ ठोस कार्रवाई के बराबर नहीं है.
भारत-प्रशांत इलाके के प्राथमिकता देकर और चीन को सबसे गंभीर प्रतिस्पर्धी का स्थान देना चीन पर ट्रंप की नीति के सही होने की पुष्टि है, जिसकी चर्चा ट्रंप के पूर्ववर्ती करते तो थे, लेकिन जिसको लेकर उनमें हिचक लगातार बनी हुई थी. लेकिन इस बात पर जोर देकर कि चीन एक शत्रु नहीं है, बाइडन प्रशासन इससे निपटने के लिए आधे-अधूरे कदम उठाते दिख रहा है. इस बात को लेकर काफी भ्रम है कि कैसे दक्षिणी चीन सागर में चीन की उपस्थिति को सीमित किया जाएगा.
पूर्ववर्ती प्रशासनों ने ताइवान के साथ संबंधों को बढ़ावा दिया और अब तक राष्ट्रपति जो बाइडन भी इसका पालन कर रहे हैं. 40 सालों में पहली बार एक कार्यरत अमेरिकी राजदूत जॉन हेनेसी-निलैंड ने ताइवान की यात्रा की. बाइडन ताइवान जलसंधि के मसले का अंतरराष्ट्रीयकरण करने की योजना बना रहे हैं और भारत-प्रशांत के लिए एक सुरक्षा संबंधी के तौर पर ताइवान के लिए ज्यादा समर्थन जुटाना चाहते हैं.
लेकिन ताइवान के मसले के- अमेरिका-चीन ‘प्रतिस्पर्धा से आगे जाकर सीधे टकराव’ का रूप ले लेने की स्थिति में अमेरिकी जवाबी कार्रवाई की सीमाओ को लेकर रणनीतिक अस्पष्टता है. क्वाड में फिर से जान फूंकने की जहां प्रशंसा की गई है, वहीं क्षेत्र में एक अह भू-सामरिक स्थिति होने के कारण भारत को भी एक मुक्त और खुले भारत-प्रशांत के लिए अपना एक ढांचा तैयार करना चाहिए और परदे के पीछे के हस्तक्षेपों और गुटबाजी से निर्देशित नहीं होना चाहिए.
देखने में क्वाड कूटनीतिक तौर पर लाभ का सौदा और आकर्षक लग सकता है, लेकिन यह अमेरिकी हित को साधने के लिए ही काम करेगा.
कोविड-19 के लैब उद्भव को लेकर पिछली सरकार के दोटूक रुख से अलग हटते हुए बाइडन प्रशासन ने कहा है कि- ‘यह लैब से या जानवरों से मनुष्यों के संपर्क (एनिमल टू ह्यूमन कॉन्टैक्ट) ’ का परिणाम हो सकता है, यह चीन-अमेरिका रिश्ते में वास्तविक दरार से बचने की एक कोशिश दिखाई देती है. क्योंकि ऐसा करते हुए चीन को, उसके असहयोगी रवैये के बावजूद एक तरह से बच निकलने का रास्ता दे दिया गया.
राष्ट्रपति जो बाइडन की टीम ने ट्रंप प्रशासन में स्टेट डिपार्टमेंट द्वारा कोरोना वायरस के चीनी लैब से निकलने के दावे को साबित करने के लिए शुरू किए गए प्रयासों को बंद कर दिया. इसके साथ साइबर खतरे और मिले जुले अन्य खतरे भी हैं, जिनका स्रोत चीन है.
अगर बाइडन अमेरिका को एक बार फिर से नेतृत्व वाली भूमिका में देखना चाहते हैं तो उन्हें भविष्य के लिए 5जी सर्वोच्चता हासिल करने के साथ साथ-साथ इन मसलों से भी निपटना होगा.
घरेलू मोर्चे पर बाइडन के सामने मौजूद चुनौती अपनी विदेश नीति को अमेरिकी मतदाताओं से जोड़ने की है. एक बड़े स्तर तक, अमेरिकी जनता का यह मानती है कि अमेरिकी नेतृत्व ने वह अनकहा सामाजिक करार तोड़ दिया है, जिसके तहत अमेरिकी मध्यवर्ग ने कुछ खास फायदों के वादे के बदले में, जिनमें मुख्य तौर पर वास्तविक आय और जीवन स्तर में सतत वृद्धि का वादा शामिल था, अमेरिका के वैश्विक नेतृत्व के खर्च को वहन करने का समर्थन किया था.
विदेश नीति के एक आयाम के तौर पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फिर से हस्तक्षेपकारी भूमिका निभाने का वचन अब अर्थव्यवस्था और मूल्यों को लेकर घरेलू प्रतिबद्धताओं से अलग नहीं रह गया है. वे एक बहुपक्षीय विदेश नीति की पैरोकारी कर सकते हैं, लेकिन उम्मीद यही है कि वे अमेरिकी मध्यवर्ग की जरूरतों को पूरा करने वाली विदेशी आर्थिक नीतियों को ही आगे बढ़ाएंगे.
इसका अर्थ निकलता है टीटीपी और टीटीपीआई जैसे बहुपक्षीय व्यपारिक समझौतों को ठंडे बस्ते मे डाल दिया जाएगा. बाइडन प्रशासन ने एक नियम प्रस्तावित किया है जो मेड इन अमेरिका उत्पादों की ज्यादा खरीद को जरूरी करने वाली संघीय खरीद नीति को गति देगा.
‘अमेरिकी सामान की खरीद’ की नीतियां चीन को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ भारत तथा अन्य विकासशील देशों को भी प्रभावित करेगी.
एक समझ यह है कि बाइडन की कार्यशैली डोनाल्ड ट्रंप की शैली से एक फौरी राहत देगी. अपने अंतरराष्ट्रीय एजेंडा में बाइडन कितने सफल होते पाते हैं यह काफी हद तक वाशिंग्टन और उससे बाहर गहरे राजनीतिक विभाजनों से पार पाने की उनकी क्षमता से तय होगा और इस मामले में फैसला होना अभी बाकी है.
कांग्रेस में उन्हें बहुत मामूली बढ़त है, जिसके 2022 के मध्यावधि चुनाव के साथ खत्म हो जाने की संभावना है. अपने पूर्ववर्ती के लोकप्रिय ‘अमेरिकी फर्स्ट’ और देश की कुछ हद तक दागदार छवि की फिर से बहाली के बीच संतुलन कायम करने पर उनका भविष्य निर्भर करता है. अगर वे अमेरिका के सहयोगियों को इस बात के लिए राजी करने की आशा करते हैं कि अमेरिका नेतृत्वकारी भूमिका के प्रति वचनबद्ध है, तो उन्हें यह भी दिखाना होगा कि उनकी नीतियों को घरेलू स्तर पर भी समर्थन हासिल है.
(वैशाली बसु शर्मा रणनीतिक और आर्थिक मसलों की विश्लेषक हैं. उन्होंने नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल सेक्रेटरिएट के साथ लगभग एक दशक तक काम किया है.)
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