एल्गार परिषद-माओवादी संपर्क मामले में आरोपी कवि एवं कार्यकर्ता वरवरा राव को इस साल 22 फरवरी को मेडिकल आधार पर अंतरिम ज़मानत दी गई थी. इस मामले में गिरफ़्तार आरोपियों में वह पहले शख्स हैं, जिन्हें अंतरिम राहत दी गई थी. उन्हें पांच सिंतबर को आत्मसमर्पण कर न्यायिक हिरासत में लौटना था.
मुंबईः बॉम्बे हाईकोर्ट ने एल्गार परिषद-माओवादी संपर्क मामले में आरोपी कवि एवं कार्यकर्ता वरवरा राव की अंतरिम जमानत विस्तार की याचिका पर सुनवाई स्थगित करते कहा कि राव को 25 सितंबर तक तलोजा जेल अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण की जरूरत नहीं है.
अदालत ने उनकी याचिका पर सुनवाई 24 सितंबर तक के लिए स्थगित कर दी है.
इस मामले में वरवरा राव (82) के अलावा पंद्रह अन्य कार्यकर्ताओं, विद्वानों और वकीलों को गिरफ्तार किया गया है. राव की तरह ही मामले में गिरफ्तार किए गए कई अन्य आरोपी भी खराब स्वास्थ्य से जूझ रहे हैं.
वकील सुधा भारद्वाज, प्रोफेसर शोमा सेन और हेनी बाबू, कार्यकर्ता गौतम नवलखा और आनंद तेलतुम्बड़े ने खराब स्वास्थ्य, उम्र संबंधी बीमारियों और कोरोना का हवाला देकर अदालत का रुख किया है.
जमानत याचिका पर सुनवाई का इंतजार करते हुए कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी (84) की पांच जुलाई को हिरासत में ही मौत हो गई थी. कई बीमारियों से पीड़ित स्वामी हिरासत में कोरोना वायरस से संक्रमित भी पाए गए थे.
एनआईए ने अपने हलफनामे में कहा कि तलोजा जेल में पर्याप्त स्वास्थ्य देखरेख की सुविधाएं हैं और राव को यहां सर्वोत्तम मेडिकल सुविधाएं मुहैया कराई जा सकती हैं.
बता दें कि एनआईए के इन दावों के विपरीत द वायर ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि राव के परिवार ने बार-बार याचिका दायर कर यह आरोप लगाया था कि वरवरा राव को जेल में बुनियादी मानवीय इलाज नहीं मिल रहा है.
उनके परिवार ने पिछले साल अक्टूबर में बताया था कि जेल में रहते हुए राव का वजन लगभग 18 किलोग्राम तक कम हो गया है और वह बिस्तर से उठ नहीं पाते.
जांच एजेंसी ने यह भी कहा कि राव की जमानत अवधि को बढ़ाया नहीं जाना चाहिए और न ही उन्हें हैदराबाद जाने की मंजूरी देनी चाहिए, क्योंकि उन पर गंभीर अपराध के आरोप लगे हैं.
अन्य बीमारियां
जब राव को जमानत दी गई तो उस समय मुंबई के नानावती अस्पताल में कई बीमारियों को लेकर उनका इलाज चल रहा था. हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद जेल प्रशासन ने ही उन्हें नानावती अस्पताल में भर्ती कराया था.
उनके वकील ग्रोवर ने सोमवार को जस्टिस एसएस शिंदे और जस्टिस एनजे जमादार की पीठ को बताया था कि इस साल फरवरी में नानावती अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद राव तीन अन्य बीमारियों की गिरफ्त में आ गए थे.
एनआईए के वकील एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने हाईकोर्ट को बताया कि जांच एजेंसी ने राव की याचिका का विरोध करते हुए हलफनामा दायर किया था.
ग्रोवर ने हाईकोर्ट से राव की आत्मसमर्पण की अवधि अगली सुनवाई तक स्थगित करने का अनुरोध किया, जिस पर हाईकोर्ट ने सहमति जताते हुए कहा कि राव को 25 सितंबर तक आत्मसमर्पण करने की जरूरत नहीं है, लेकिन उन्हें तब तक जमानत शर्तों के नियमों का पालन करना होगा.
इन नियमों के तहत मुंबई की एनआईए अदालत के अधिकार क्षेत्र में ही रहना भी शामिल है.
राव ने मेडिकल जमानत में विस्तार और जमानत शर्तों में बदलाव की मांग वाली याचिका में कहा है कि नानावती अस्पताल के डॉक्टरों के मुताबिक वह संभावित न्यूरोलॉजिकल समस्याओं से पीड़ित हो सकते हैं, जिसे क्लस्टर हेडएक कहते हैं.
राव ने कहा है कि वह यूरिनरी ट्रैक्ट संक्रमण, हाइपोनैट्रेमिया, पार्किंसंस बीमारी का संदेह, मस्तिष्ट के प्रमुख छह लोब में लैकुनर इन्फर्क्ट और आंख संबंधी समस्याओं से ग्रसित हो सकते हैं.
राव ने कहा है कि अगर वह तलोजा जेल प्रशासन में लौटते हैं तो वहां उनकी मेडिकल समस्याओं का निदान नहीं हो सकता, इसलिए उनका स्वास्थ्य और खराब हो सकती है और उनकी मृत्यु भी हो सकती है.
राव ने इन आधारों पर अपनी जमानत अवधि में छह महीने के विस्तार की मांग की.
एल्गार परिषद मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एक सम्मेलन में दिए गए भड़काऊ भाषणों से संबंधित है, जिसके बारे में पुलिस ने दावा किया था कि इस भाषणों के कारण अगले दिन पुणे के बाहरी इलाके में स्थित कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई.
अभियोजन पक्ष ने दावा किया था कि इस सम्मेलन को माओवादियों के साथ कथित रूप से संबंध रखने वाले लोगों ने आयोजित किया था.
एनआईए ने आरोप लगाया है कि एल्गार परिषद का आयोजन राज्य भर में दलित और अन्य वर्गों की सांप्रदायिक भावना को भड़काने और उन्हें जाति के नाम पर उकसाकर भीमा-कोरेगांव सहित पुणे जिले के विभिन्न स्थानों और महाराष्ट्र राज्य में हिंसा, अस्थिरता और अराजकता पैदा करने के लिए आयोजित किया गया था.