असमः पांच साल से बकाये का इंतज़ार कर रहे पेपर मिल कर्मचारियों को मिला बेदख़ली का नोटिस

असम की बंद पड़ी दो सरकारी पेपर मिल- नगांव और कछार मिल के पूर्व कर्मचारियों और अधिकारियों को उनके सरकारी आवास ख़ाली करने को कहा गया है. इन क्वार्टर्स में हज़ार से अधिक पूर्व कर्मचारी रहते हैं, जिन्होंने इस नोटिस को लेकर रोष जताया है.

असम की एक पेपर मील (फोटोः गौरव दास)

असम की बंद पड़ी दो सरकारी पेपर मिल- नगांव और कछार मिल के पूर्व कर्मचारियों और अधिकारियों को उनके सरकारी आवास ख़ाली करने को कहा गया है. इन क्वार्टर्स में हज़ार से अधिक पूर्व कर्मचारी रहते हैं, जिन्होंने इस नोटिस को लेकर रोष जताया है.

असम की एक पेपर मिल. (फोटोः गौरव दास)

गुवाहाटीः असम की दो सरकारी पेपर मिल के पूर्व कर्मचारी कई सालों से अपनी बकाया धनराशि के लिए संघर्ष कर रहे हैं लेकिन अब उन्हें नोटिस जारी कर क्वार्टर खाली करने को कहा गया है, जिससे उन पर बेघर होने की तलवार लटक रही है.

तीन सितंबर को जारी किए गए इस नोटिस में हिंदुस्तान पेपर मिल कॉरपोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) की निष्क्रिय और कर्जे में डूबी पेपर मिलों के पूर्व कर्मचारियों और अधिकारियों को उनके आवास खाली करने को कहा गया है.

इस नोटिस को एचपीसीएल लिक्विडेटर द्वारा जारी किया गया है.

नगांव पेपर मिल को बिना किसी नोटिस के 13 मार्च 2017, जबकि कछार मिल को भी बिना नोटिस के 20 अक्टूबर 2015 को बंद कर दिया गया था.

इन दोनों मिलों के 1,200 से अधिक पूर्व कर्मचारियों को अभी अपना बकाया नहीं मिला है, जिसमें इनका पेंशन, वेतन और प्रोविडेंट फंड (पीएफ) शामिल है. इन क्वार्टर्स में 1,000 से अधिक पूर्व कर्मचारी अभी भी रहते हैं.

बता दें कि 93 पूर्व कर्मचारियों की अपने बकाये के इंतजार में जान गंवा चुके हैं, वहीं चार ने आत्महत्या कर ली थी. इनके पूर्व सहयोगियों का आरोप है कि अधिकतर की मौत इलाज के लिए पैसा नहीं होने की वजह से हुई.

एक पूर्व कर्मचारी अक्षय कुमार मजूमदार (62) की 29 अगस्त को मौत हो गई थी. वे हाइपरटेंशन से जूझ रहे थे और वर्कर्स यूनियन के मुताबिक उनका परिवार पैसे नहीं होने की वजह से उनका इलाज नहीं करवा सका.

वहीं, नगांव और कछार मिल की यूनियन कछार पेपर प्रोजेक्ट वर्कर्स यूनियन और जॉइंट एक्शन कमेटी ऑफ रिकग्नाइज्ड यूनियन्स (जेएसीआरयू) के सदस्य मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा से मिलने के लिए छह सितंबर को गुवाहाटी पहुंचे.

यूनियन संघ पहले ही मोरीगांव और हैलाकांडी जिलों के उपायुक्त के समक्ष आपत्ति जता चुकी है और एचपीसीएल लिक्विडेटर कुलदीप वर्मा से बात कर चुके हैं.

कामगारों का मानना है कि यह नोटिस गैरकानूनी है और नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) के 29 मई 2019 के आदेश और दिल्ली हाईकोर्ट के अप्रैल 2020 के आदेश को खारिज करता है.

जेएसीआरयू के अध्यक्ष मनबेंद्र चक्रबर्ती ने द वायर  को बताया कि पूर्व कर्मचारियों से क्वार्टर खाली कराए जाने के फैसले का विरोध किया जाएगा.

उन्होंने कहा, ‘क्या कुलदीप वर्मा जज हैं या मजिस्ट्रेट? वह कौन होते हैं हमें बेदखली का नोटिस जारी करने वाले? जो उन्होंने किया है, वह गैरकानूनी है. वह हमें उठाकर सड़कों पर फेंकना चाहते हैं. यह साजिश है और वह उस शख्स के लिए काम कर रहे हैं जो इसका फायदा उठाना चाहता है.’

उन्होंने कहा, ‘अगर हमें बेदखल किया जाता है तो वह हमारी लाशों के ऊपर होगा और उनके हाथ खून से सने होंगे.’

बता दें कि इन दोनों मिलों को मिनीरत्न पीएसयू श्रेणी में रखा जा चुका था और इन्हें जून में दूसरी बार नीलामी के लिए भी रखा गया था. इसकी शुरुआती नीलामी आरक्षित मूल्य 1,139 करोड़ रुपये था जिसे बाद में 960 करोड़ रुपये किया गया.

दोनों पेपर मिल पूंजी की कमी की वजह से बंद पड़ गईं. एचपीसीएल पर कंपनी एलॉयज एंड मेटल्स (इंडिया) का 98 लाख रुपये बकाया है.

कछार पेपर मिल ने वित्त वर्ष 2005-2006 और 2006-2007 के दौरान पूर्ण उत्पादन किया था.

एचपीसीएल को 2005-2006 से 2008-2009 तक लाभ कमाने वाली कंपनी माना जाता था और इसे भारत सरकार से वर्ष 2005-2006 और 2007-2008 के लिए एमओयू एक्सीलेंस अवॉर्ड भी मिला था.

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने चार अप्रैल को बारपेटा जिले के सरभोग में अपनी चुनावी रैली में कहा था कि भाजपा सरकार न सिर्फ पेपर मिलों को पुनर्जीवित करेगी बल्कि असम में कागज उत्पादन, बांस का उत्पादन भी बढ़ाएगी और देशभर में कागज के वितरण की प्रक्रिया को तेज करेगी.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)