बीते 16 अगस्त को सुनवाई के दौरान केंद्र ने पेगासस जासूसी मामले में याचिकाकर्ताओं द्वारा लगाए गए सभी आरोपों से इनकार करते हुए कहा था कि वह इज़रायल के एनएसओ समूह के पेगासस स्पायवेयर से जुड़े आरोपों के सभी पहलुओं को देखने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति का गठन करेगी. अदालत ने कहा था कि हलफ़नामे में सरकार द्वारा स्पायवेयर का इस्तेमाल किए जाने या न होने के आरोपों को संतुष्ट नहीं किया गया है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस जासूसी मामले की स्वतंत्र जांच के अनुरोध वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए केंद्र को अपना जवाब दाखिल करने के लिए कुछ और समय दिया है और मामले में अगली सुनवाई के लिए 13 सितंबर की तारीख तय की.
प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमना की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 17 अगस्त को इन याचिकाओं पर केंद्र को नोटिस जारी किया था, वहीं यह स्पष्ट किया था कि अदालत नहीं चाहती कि सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता करने वाली किसी भी चीज का खुलासा करे. पीठ में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस अनिरुद्ध बोस भी शामिल हैं.
जैसे ही मामला पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया, केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि कुछ कठिनाइयों के कारण पीठ द्वारा मांगा गया हलफनामा दाखिल नहीं किया जा सका. उन्होंने न्यायालय से बृहस्पतिवार या सोमवार को मामला सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया.
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा, ‘हलफनामे में कुछ कठिनाई है. हमने एक हलफनामा दाखिल किया है, लेकिन आपने (न्यायालय ने) पूछा था कि क्या हम एक और हलफनामा दाखिल करना चाहते हैं, कुछ अधिकारी नहीं थे, क्या यह मामला बृहस्पतिवार या सोमवार को रखा जा सकता है.’
वरिष्ठ पत्रकार एन. राम की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि उन्हें अनुरोध पर कोई आपत्ति नहीं है. पीठ ने कहा, ‘इसे सोमवार (13 सितंबर) को सूचीबद्ध किया जाए.’
अदालत इस मामले की स्वतंत्र जांच का अनुरोध करने वाली एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की एक याचिका सहित 12 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है.
ये याचिकाएं इजरायली कंपनी एनएसओ के स्पायवेयर पेगासस का उपयोग कर प्रतिष्ठित नागरिकों, नेताओं और पत्रकारों पर सरकारी एजेंसियों द्वारा कथित तौर पर जासूसी करने की रिपोर्ट से संबंधित हैं.
बीते 17 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस जासूसी मामले की स्वतंत्र जांच कराने की मांग से संबंधित याचिकाओं पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था.
तब मेहता ने कहा था, ‘ये सॉफ्टवेयर हर देश द्वारा खरीदे जाते हैं और याचिकाकर्ता चाहते हैं कि इसका खुलासा किया जाए कि क्या सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल नहीं किया गया. अगर हमने इसकी जानकारी दे दी तो आतंकी एहतियाती कदम उठा सकते हैं. ये राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे हैं और हम अदालत से कुछ भी छिपा नहीं सकते.’
इससे पहले 16 अगस्त को केंद्र सरकार ने पेगासस मामले में याचिकाकर्ताओं द्वारा लगाए गए सभी आरोपों से इनकार किया था. साथ ही सरकार ने कहा था कि वह इजरायल के एनएसओ समूह के पेगासस स्पायवेयर से जुड़े आरोपों के सभी पहलुओं को देखने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति का गठन करेगी.
हालांकि, सरकार ने यह नहीं बताया था कि समिति में कौन होगा या जांच की समयसीमा क्या होगी. शीर्ष अदालत ने कहा था कि हलफनामे में सरकार द्वारा पेगासस स्पायवेयर का इस्तेमाल किए जाने या न होने के आरोपों को संतुष्ट नहीं किया गया है.
बता दें कि द वायर सहित अंतरराष्ट्रीय मीडिया कंसोर्टियम ने पेगासस प्रोजेक्ट के तहत यह खुलासा किया था कि इजरायल की एनएसओ ग्रुप कंपनी के पेगासस स्पायवेयर के जरिये नेता, पत्रकार, कार्यकर्ता, सुप्रीम कोर्ट के अधिकारियों की के फोन कथित तौर पर हैक कर उनकी निगरानी की गई या फिर वे संभावित निशाने पर थे.
इस कड़ी में 18 जुलाई से द वायर सहित विश्व के 17 मीडिया संगठनों ने 50,000 से ज्यादा लीक हुए मोबाइल नंबरों के डेटाबेस की जानकारियां प्रकाशित करनी शुरू की थी, जिनकी पेगासस स्पायवेयर के जरिये निगरानी की जा रही थी या वे संभावित सर्विलांस के दायरे में थे.
एनएसओ ग्रुप यह मिलिट्री ग्रेड स्पायवेयर सिर्फ सरकारों को ही बेचती हैं. भारत सरकार ने पेगासस की खरीद को लेकर न तो इनकार किया है और न ही इसकी पुष्टि की है.
जहां रक्षा और आईटी मंत्रालय ने पेगासस स्पायवेयर के इस्तेमाल से इनकार कर दिया है, तो वहीं मोदी सरकार ने इस निगरानी सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल और उसे खरीदने पर चुप्पी साध रखी है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)