उत्तर प्रदेश: बाबरी मस्जिद पर टिप्पणी करने पर दर्ज रासुका को हाईकोर्ट ने ख़ारिज किया

यह मामला उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी निवासी मोहम्मद फ़ैयाज़ मंसूरी से जुड़ा हुआ है, जिन्होंने अगस्त 2020 को फेसबुक पर बाबरी मस्जिद को लेकर एक पोस्ट लिखा था, जिसके बाद उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के तहत मामला दर्ज किया गया था.

इलाहाबाद हाईकोर्ट. (फाइल फोटो: पीटीआई)

यह मामला उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी निवासी मोहम्मद फ़ैयाज़ मंसूरी से जुड़ा हुआ है, जिन्होंने अगस्त 2020 को फेसबुक पर बाबरी मस्जिद को लेकर एक पोस्ट लिखा था, जिसके बाद उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के तहत मामला दर्ज किया गया था.

इलाहाबाद हाईकोर्ट.

नई दिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने लखीमपुर खीरी निवासी मोहम्मद फैयाज मंसूरी के खिलाफ लगाए गए राष्‍ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका या एनएसए) को रद्द कर दिया है. अदालत ने संबधित अधिकारियों को आदेश दिया है कि यदि मंसूरी किसी अन्य मामले में वांछित न हों तो उन्हें तत्काल जेल से रिहा कर दिया जाये.

यह आदेश जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस सरोज यादव की पीठ ने मंसूरी की ओर से दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को मंजूर करते हुए पारित किया. अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार ने याचिकाकर्ता का प्रत्यावेदन निस्तारित करने में देरी की और इस आधार पर निरूद्ध आदेश खारिज होने योग्‍य है.

मंसूरी ने पांच अगस्त 2020 को फेसबुक पर बाबरी मस्जिद को लेकर कथित तौर पर भड़काऊ टिप्पणी की थी, जिसके बाद लखीमपुर खीरी के मुहम्मदी थाने में उनके खिलाफ मामला दर्ज कर उन्हें आठ अगस्त 2020 को जेल भेज दिया गया था. बाद में उन पर रासुका भी लगा दिया गया था.

बार एंड बेंच के मुताबिक, मंसूरी ने अपने पोस्ट में लिखा था, ‘बाबरी मस्जिद एक दिन दोबारा बनाई जाएगी, जिस तरह तुर्की की सोफिया मस्जिद बनाई गई थी.’

मालूम हो कि साल 1992 में हिंदुत्ववादी समूहों ने बाबरी मस्जिद गिरा दिया था, जिसे लेकर कई सालों तक विवाद चलता रहा और बाद में साल 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में इस जगह को हिंदू पक्षकारों को दिया था.

वहीं, तुर्की ने साल 2020 में हागिया सोफिया को म्यूजियम से मस्जिद में परिवर्तित कर दिया था. करीब 900 साल पुराने इस बैजेंटाइन चर्च को 1453 में एक मस्जिद में बदल दिया गया था. बाद में साल 1934 में इसे संग्रहालय में तब्दील किया गया और फिर पिछले साल राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन की सरकार ने इसे मस्जिद में परिवर्तित कर दिया.

इस मामले को लेकर अगस्त 2020 में सागर कपूर नामक एक व्यक्ति ने मंसूरी के पोस्ट के खिलाफ शिकायत दर्ज कराया था, जिसके आधार पर सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 और आईपीसी की धारा 153ए (धर्म, जाति आदि के आधार पर दो समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 292 (अश्लील किताबों की बिक्री आदि), 505(2)(शत्रुता, घृणा या द्वेष पैदा करने या बढ़ावा देने वाले बयान), 506 (आपराधिक धमकी के लिए सजा) और 509(किसी महिला की गरिमा का अपमान करने वाला शब्द, इशारा या कार्य) के तहत मामला दर्ज किया गया था.

एफआईआर में चार लोगों को आरोपी के रूप में नामित किया गया था और मुख्य आरोपी समरीन बानो थीं, जिन्होंने कथित तौर पर पोस्ट में अपमानजनक टिप्पणी की थी.

बाद में धारा 292 और 509 को हटा दिया गया था और धारा 295ए (जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य, जिसका उद्देश्य किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं या धार्मिक विश्वासों का अपमान करना है) जोड़ा गया था.

लखीमपुर खीरी के जिलाधिकारी के आदेश के बाद मंसूरी को हिरासत में लिया गया और जेल भेज दिया गया था. मंसूरी ने अपनी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में दलील दिया था कि बानो को आज तक गिरफ्तार नहीं किया गया है.

याची के अधिवक्ता सुशील कुमार सिंह का तर्क था कि रासुका लगाने में तकनीकी गलती की गई जिस कारण निरूद्ध आदेश अवैध हो गया, लिहाजा मंसूरी के खिलाफ रासुका आदेश खारिज करते हुए उन्हें तत्काल रिहा किया जाये.

वैसे तो कोर्ट ने यह माना है कि मंजूरी का पोस्ट ‘भड़काऊ’ था और सीधे सार्वजनिक व्यवस्था से जुड़ा हुआ है. न्यायालय ने कहा कि सभी को संविधान के तहत स्वतंत्रता की गारंटी है, लेकिन इसका दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए.

हालांकि कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार ने याचिकाकर्ता का प्रत्यावेदन निस्तारित करने में देरी की, जिसके चलते उन्हें रिहा किया जाना चाहिए.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)