उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में कुशीनगर में कहा था कि साल 2017 से पहले सिर्फ ‘अब्बा जान’ कहने वालों को ही राशन मिलता था. आंकड़े दर्शाते हैं कि ऐसा किसी भी तरह से संभव नहीं है.
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ में हाल ही में एक विवादित और सांप्रदायिक टिप्पणी करते हुए कहा कि साल 2017 से पहले सिर्फ ‘अब्बा जान’ कहने वालों को ही राशन मिलता था.
बीते रविवार को आदित्यनाथ ने कुशीनगर में कहा था, ‘प्रधानमंत्री (नरेंद्र) मोदी के नेतृत्व में तुष्टिकरण की राजनीति का कोई स्थान नहीं है. वर्ष 2017 से पहले क्या सभी राशन ले पाते थे? पहले केवल अब्बा जान कहने वाले ही राशन हजम कर रहे थे. कुशीनगर का राशन नेपाल और बांग्लादेश जाता था. आज अगर कोई गरीब लोगों के राशन को हथियाने की कोशिश करेगा, तो वह निश्चित रूप से जेल चला जाएगा.’
योगी आदित्यनाथ के इस बयान की जहां हर स्तर पर चौतरफा आलोचना हो रही है, वहीं दूसरी तरह इस तरह की बयानबाजी तथ्यों की कसौटी पर किसी भी तरह से सही नहीं उतरती है.
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून की वेबसाइट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में इस समय कुल 3.59 करोड़ राशनकार्ड धारक और इसके 14.86 करोड़ लाभार्थी हैं. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक यूपी की जनसंख्या 19.98 करोड़ थी.
योगी आदित्यनाथ ने 19 मार्च 2017 को प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद संभाला था. इससे करीब एक साल पहले एक मार्च 2016 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राज्य में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 शुरू किया था.
इसके करीब आठ महीने बाद (और आदित्यनाथ के शपथ लेने से चार महीने पहले) 15 नवंबर 2016 तक 14.01 करोड़ लोगों को योजना का लाभ मिलने लगा था. यानी कि इसे बाद सिर्फ 85 लाख (14.86 करोड़-14.01 करोड़= 85 लाख) अतिरिक्त लाभार्थी राज्य में जोड़ जा सके हैं.
साल 2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य में 15.90 करोड़ हिंदू और 3.84 करोड़ मुस्लिम हैं. इस तरह यह बिल्कुल असंभव है कि समाजवादी पार्टी सरकार में सारा राशनकार्ड मुस्लिमों को ही दिया गया हो. आंकड़े खुद इसकी तस्दीक करते हैं.
दूसरी ओर लोगों ने यह भी बताया कि आदित्यनाथ के शासन में भूख और अभाव जारी है.
एक स्वतंत्र पत्रकार सृष्टि ने अपनी एक रिपोर्ट के जरिये ट्विटर पर बताया कि किस तरह राशन न मिलने से कई लोगों- हिंदू और मुस्लिम दोनों- की मौत हुई या फिर गंभीर रूप से बीमार हुए.
Last year 5-year-old Sonia Kumari died in Agra, a district in Uttar Pradesh. Sonia born to 40-year-old Sheela and 50-year-old Pappu had reportedly gone without ration for 15 days before she died. Pertinent to mention that they are Hindus. pic.twitter.com/DhVgtMeZQC
— Srishti (@seekingsrishti) September 13, 2021
आदित्यनाथ ने सपा और बसपा सरकारों पर यह भी आरोप लगाया कि दोनों दल अपने-अपने कार्यकाल के दौरान लोगों को उचित बिजली आपूर्ति प्रदान करने में विफल रहे हैं.
मुख्यमंत्री ने कांग्रेस को ‘आतंकवाद की जननी’ और समाजवादी पार्टी को ‘बिच्छू’ करार दिया. उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस देश में सभी आतंकवाद की जननी है. देश को जख्म देने वालों को बर्दाश्त करने की जरूरत नहीं है. भाजपा सभी धर्मों को सम्मान देती है.’
उन्होंने कहा था, ‘क्या आपको लगता है कि राम भक्तों पर गोलियां चलाने वालों ने राम मंदिर बनाया होता? गोली चलाने और दंगे कराने वालों ने कश्मीर से धारा 370 हटाया होता? तालिबान का समर्थन करने वालों ने तीन तलाक को खत्म कर दिया होता? इस राज्य के लोगों को कभी भी इस जातिवादी और वंशवादी मानसिकता को स्वीकार नहीं करना चाहिए. याद रखें, बिच्छू चाहे जहां भी हो, डंक मारेगा.’
योगी आदित्यनाथ के इन बयानों को आगानी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राज्य में सांप्रदायिकता को और हवा देने तथा ध्रुवीकरण की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है.
उधर, आदित्यनाथ की ‘अब्बा जान’ संबंधी टिप्पणी की विभिन्न राजनीतिक दलों ने कड़ी आलोचना की है और इसे असंसदीय भाषा करार दिया है.
I’ve always maintained the BJP has no intention of fighting any election with an agenda other than blatant communalism & hatred with all the venom directed towards Muslims. Here is a CM seeking re-election claiming that Muslims ate up all the rations meant for Hindus. https://t.co/zaYtK43vpd
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) September 12, 2021
नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने बीते रविवार को एक ट्वीट में कहा, ‘मेरा हमेशा से मानना रहा है कि भाजपा की मंशा घोर सांप्रदायिकता और नफरत के अलावा किसी अन्य एजेंडा पर चुनाव लड़ने की नहीं है तथा उसका सारा जहर मुस्लिमों के प्रति होता है. यहां एक मुख्यमंत्री हैं जो दोबारा यह दावा कर चुनाव जीतना चाहते हैं कि मुस्लिमों ने हिंदुओं के हिस्से का पूरा राशन खा लिया.’
समाजवादी पार्टी (सपा) के विधान परिषद सदस्य आशुतोष सिन्हा ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा, ‘मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें (योगी आदित्यनाथ) असंसदीय भाषा का उपयोग शोभा नहीं देता, और यह दर्शाता है कि वह कम पढ़े-लिखे हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि जो पढ़े-लिखे हैं, वे उचित और सम्मानजनक भाषा का इस्तेमाल करते हैं. संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति को ऐसी भाषा के इस्तेमाल से बचना चाहिए. ऐसी भाषा का इस्तेमाल लोकतंत्र के लिए भी दुखद है.’
वहीं, कांग्रेस ने आदित्यनाथ पर निशाना साधा और कहा कि कोरोना महामारी के समय गंगा में लाशें तैरने के समय योगी कहीं नजर नहीं आए, लेकिन अब चुनाव नजदीक आने पर अपने पुराने ढर्रे पर जाकर ‘अब्बा जान’ को याद करने लगे हैं.
पार्टी प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने योगी पर ‘ओछी मानसिकता’ रखने का आरोप लगाया और कहा कि लोगों को बांटने की यह तरकीब नहीं चलने वाली है.
उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘जिस मुख्यमंत्री को लखनऊ और कलकत्ता का भेद पता न हो, जिस मुख्यमंत्री को भारत और अमेरिका का भेद पता न हो, उस मुख्यमंत्री की बातों को गंभीरता से लेना, गंभीरता का अपमान करना है.’
वल्लभ ने भाजपा पर तंज कसते हुए कहा, ‘अब्बा जान-भाई जान करते-करते हो गए सत्ता में विराजमान, चुनाव नजदीक आते ही वापस से शुरू कर दिया, श्मशान- कब्रिस्तान. कोरोना के दौरान आपकी लचर स्वास्थ्य व्यवस्था ने ले ली लाखों लोगों की जान, अब आपको पूरी तरह से उत्तर प्रदेश गया है, पहचान.’
उन्होंने सवाल किया, ‘जब लोगों की लाशें गंगा तैर रही थीं, तब योगी कहां थे? उस समय आप क्या कर रहे थे? जब उत्तर प्रदेश के लोग दिल्ली और मुंबई से पैदल आ रहे थे, तब आप छिपकर कहां बैठे थे? उस समय आपका क्या शासन मॉडल था?’
कांग्रेस नेता ने दावा किया कि विधानसभा चुनाव नजदीक आने पर ‘अब्बा जान’ की याद आ गई, ताकि ध्रुवीकरण हो, लेकिन इस बार यह तरकीब नहीं चलने वाली है.
वल्लभ ने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री को पता होना चाहिए कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में बलिदान का कांग्रेस का पुराना इतिहास है और उसने अपने अनगिनत नेताओं तथा कार्यकर्ताओं को खोया है.
उन्होंने कहा, ‘आजादी के बाद देश के पहले आतंकवादी नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या की. इसके बाद हमने इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सरदार बेअंत सिंह, विद्याचरण शुक्ल, महेश कर्मा, नंद कुमार पटेल और कई अन्य नेताओं एवं कार्यकर्ताओं को आतंकवाद एवं उग्रवाद के खिलाफ लड़ाई में खोया. लेकिन वे लोग इस बलिदान को नहीं समझ सकते जिनके वैचारिक पूर्वज अंग्रेजों की मुखबिरी करते थे.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)