सुप्रीम कोर्ट स्वत: संज्ञान लेते हुए न्यायाधिकरण सुधार क़ानून पर रोक लगा सकता है: सीजेआई

तय समय से पहले सेवानिवृत किए गए एनसीएलएटी के अध्यक्ष जस्टिस अशोक इकबाल सिंह चीमा की याचिका पर सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि केंद्र के पास न्यायाधिकरण सुधार क़ानून के तहत सेवाओं को समाप्त करने की शक्ति है. इस पर सीजेआई रमना ने कहा कि अदालत इस पर रोक लगा सकती है.

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जस्टिस एनवी रमना. (फोटो: पीटीआई)

तय समय से पहले सेवानिवृत किए गए एनसीएलएटी के अध्यक्ष जस्टिस अशोक इकबाल सिंह चीमा की याचिका पर सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि केंद्र के पास न्यायाधिकरण सुधार क़ानून के तहत सेवाओं को समाप्त करने की शक्ति है. इस पर सीजेआई रमना ने कहा कि अदालत इस पर रोक लगा सकती है.

मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने बीते गुरुवार को मौखिक रूप से केंद्र को चेतावनी देते हुए कहा कि सर्वोच्च अदालत स्वत: संज्ञान लेते हुए न्यायाधिकरण सुधार कानून, 2021 पर रोक लगा सकता है.

जस्टिस रमना ने एनसीएलएटी के तय समय से पहले सेवानिवृत अध्यक्ष जस्टिस अशोक इकबाल सिंह चीमा की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणी की.

केंद्र सरकार उच्चतम न्यायालय में चीमा को फैसला सुनाने के लिए 20 सितंबर तक पद पर बनाए रखने के लिए राजी हो गई. इसके बाद चीमा की समय से पहले सेवानिवृत्ति से जुड़ा विवाद खत्म हो गया.

राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के पूर्व अध्यक्ष जस्टिस चीमा को 20 सितंबर को सेवानिवृत्त होना था, लेकिन उनकी जगह 11 सितंबर को ही जस्टिस एम. वेणुगोपाल को न्यायाधिकरण का कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया. इसके चलते एक अजीबोगरीब स्थिति पैदा हो गई और जस्टिस चीमा ने शीर्ष अदालत में चुनौती दी.

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना और जस्टिस सूर्यकांत तथा जस्टिस हेमा कोहली की पीठ को बताया, ‘मैंने निर्देश ले लिया है. ऐसा बताया गया कि उन्होंने (चीमा) फैसला लिखने के लिए छुट्टी ली थी. इसलिए हमने फैसला किया है कि उन्हें कार्यालय जाने और फैसला सुनाने की अनुमति दी जाएगी, वर्तमान अध्यक्ष जस्टिस वेणुगोपाल को छुट्टी पर भेजा जाएगा.’

पीठ ने कहा, ‘इस दलील को स्वीकार किया जाता है और सरकार द्वारा इस संबंध में आदेश जारी किए जाएंगे. वर्तमान अध्यक्ष 20 सितंबर तक छुट्टी पर रहेंगे और यह आदेश इस मामले के असाधारण तथ्यों और हालात को ध्यान में रखते हुए पारित किया गया है.’

शुरुआत में मुख्य न्यायाधीश ने अटॉर्नी जनरल की दलील के बाद कहा, ‘तब हम इसे संज्ञान में लेंगे और मामले को बंद कर देंगे.’

हालांकि, अटॉर्नी जनरल द्वारा आगे यह दलील देने के बाद पीठ नाराज हो गई कि 11 से 20 सितंबर तक चीमा की बहाली कार्यालय की वास्तविक शक्तियों के बिना केवल सेवानिवृत्ति लाभ पाने में सक्षम होने के लिए होगी, क्योंकि अब पद से जस्टिस वेणुगोपाल को हटाना बेहद ‘अजीब’ होगा.

इस पर पीठ ने कहा, ‘अटार्नी जी, हमें बताइए, यह कितना उचित है? उन्हें कुछ निर्णय सुनाने हैं. यदि आप उन्हें सेवानिवृत्त करते हैं, तो उन मामलों की दोबारा सुनवाई करने में समस्या होगी. जिस तरह ये आदेश पारित किए गए, वह भी अजीब था. अगर आपकी सरकार को लगता है कि वे उस पर टिके रहना चाहती हैं, तो कोई बात नहीं है.’

केके वेणुगोपाल ने कहा कि इसके अलावा सरकार के पास न्यायाधिकरण सुधार कानून के तहत सेवाओं को समाप्त करने की शक्ति है.

इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘तब हमें आपके (केंद्र के) कानून (न्यायाधिकरण सुधार कानून) पर रोक लगानी होगी.’

अटॉर्नी जनरल ने कहा, ‘मुझे निर्देश लेने दीजिए. किसी व्यक्ति को हटाना, हमारे लिए बहुत अजीब होगा. मैं स्थगन याचिका पर भी बहस करने के लिए तैयार हूं. सरकार के पास कुछ शक्तियां हैं.’ उन्होंने निर्देश पाने के लिए 30 मिनट का समय मांगा.

दोबारा सुनवाई चालू होने पर शीर्ष विधि अधिकारी ने सरकार के बदले हुए रुख के बारे में बताया और कहा कि जस्टिस चीमा को 20 सितंबर तक लंबित फैसले सुनाने के लिए एनसीएलएटी के प्रमुख के रूप में सभी शक्तियों के साथ बहाल किया जाएगा और एम. वेणुगोपाल को तब तक छुट्टी पर जाने को कहा जाएगा.

इसके बाद शीर्ष अदालत ने इसे आदेश में दर्ज किया और मामले को बंद कर दिया.

इंडिया टुडे के मुताबिक, रिटायर्ड हाईकोर्ट जज जस्टिस चीमा ने अपनी याचिका में कहा था कि उनके कार्यकाल को कम करने का सरकार का आदेश ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है.’

उन्होंने ट्रिब्यूनल के सदस्यों के कार्यकाल पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया, जो मद्रास बार एसोसिएशन द्वारा एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया गया था.

मालूम हो कि इस मामले की पिछली सुनवाई (छह सितंबर) के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा था कि केंद्र न्यायाधिकरणों में अधिकारियों की नियुक्ति न करके इन अर्द्ध न्यायिक संस्थाओं को ‘शक्तिहीन’ कर रहा है.

न्यायालय ने कहा था कि न्यायाधिकरण पीठासीन अधिकारियों, न्यायिक सदस्यों एवं तकनीकी सदस्यों की गंभीर कमी से जूझ रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने इस बात से नाराज है कि मोदी सरकार ने न्यायाधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 के जरिये उन प्रावधानों को भी बहाल कर दिया है, जिसे पूर्व में सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था.

कोर्ट ने कहा था कि एक न्यायाधिकरण के अध्यक्ष का कार्यकाल पांच वर्ष या जब तक वह 70 वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता है और अधिकरण के सदस्य का कार्यकाल पांच वर्ष या उसके 67 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक का होगा.

इसी तरह कोर्ट ने जुलाई 2021 के अपने फैसले में कहा था कि नियुक्ति के लिए न्यूनतम आयु 50 वर्ष तय करना असंवैधानिक है. हालांकि ये सारे प्रावधान नए कानून में जोड़ दिए गए हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)