कानपुर के बिकरू कांड में एसएचओ विनय कुमार तिवारी और एसआई केके शर्मा की ज़मानत याचिका ख़ारिज करते हुए अदालत ने कहा कि सभी राजनीतिक दलों को साथ बैठकर यह निर्णय करने की ज़रूरत है कि गैंगस्टरों और अपराधियों को राजनीति में आने से हतोत्साहित किया जाए और कोई भी पार्टी उन्हें टिकट न दे.
इलाहाबाद: राजनीतिक दलों में गैंगस्टर और अपराधियों का स्वागत किए जाने पर चिंता जाहिर करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि इन अपराधियों को चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिए जाते हैं और कभी-कभी वे जीत भी जाते हैं, इसलिए इस रुख पर जितनी जल्दी हो सके, अंकुश लगाने की जरूरत है.
कानपुर के बिकरू कांड मामले में एसएचओ विनय कुमार तिवारी और एसआई केके शर्मा की जमानत याचिका खारिज करते हुए जस्टिस प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने यह टिप्पणी की.
उन्होंने कहा कि यह प्रत्यक्ष प्रमाण है कि इन आरोपियों को पुलिस कार्रवाई के बारे में पहले से जानकारी थी और उन्होंने स्पष्ट रूप से इसका खुलासा गैंगस्टर को किया.
गैंगस्टर विकास दुबे के खिलाफ पुलिस कार्रवाई के बारे में सूचना कथित तौर पर लीक करने के लिए एसएचओ विनय कुमार तिवारी और एसआई केके शर्मा को गिरफ्तार किया गया था.
मालूम हो कि पिछले साल दो जुलाई की देर रात कानपुर के चौबेपुर थानाक्षेत्र के बिकरू गांव में पुलिस की एक टीम गैंगस्टर विकास दुबे को पकड़ने गई थी, जब विकास और उसके साथियों ने पुलिस पर हमला कर दिया था. इस मुठभेड़ में आठ पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी.
इसके बाद नौ जुलाई 2020 को पुलिस ने विकास दुबे को मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर से गिरफ्तार किया था. हालांकि पुलिस का कहना था कि कानपुर लाते समय विकास दुबे ने भागने की कोशिश की और मुठभेड़ में मारा गया.
अदालत ने कहा, ‘यह चिंताजनक रुख देखने में आया है कि एक या दूसरी राजनीतिक पार्टी सगंठित अपराध में शामिल गैंगस्टरों और अपराधियों का अपने यहां स्वागत करती हैं और उन्हें संरक्षण देने एवं बचाने की कोशिश करती हैं, ऐसे में उनकी राबिनहुड जैसी छवि बनाती हैं. उन्हें चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया जाता है और कभी-कभी वे चुनाव जीत भी जाते हैं. इस रुख पर जितनी जल्दी हो सके, अंकुश लगाने की जरूरत है.’
अदालत ने कहा, ‘सभी राजनीतिक दलों को साथ बैठकर यह निर्णय करने की जरूरत है कि गैंगस्टरों और अपराधियों को राजनीति में आने से हतोत्साहित किया जाए और कोई भी पार्टी उन्हें टिकट ना दे.’
अदालत ने कहा, ‘राजनीतिक दलों को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि ‘मेरा अपराधी’ और ‘उसका अपराधी’ या ‘मेरा आदमी’ और ‘उसका आदमी’ जैसी कोई अवधारणा नहीं हो सकती क्योंकि गैंगस्टर केवल गैंगस्टर होता है और एक दिन ये गैंगस्टर और अपराधी भस्मासुर बन जाएंगे और इस देश को इतनी गंभीर चोट पहुंचाएंगे जिसे ठीक नहीं किया जा सकेगा.’
अदालत ने कहा, ‘यहां ऐसे पुलिसकर्मी हैं भले ही उनकी संख्या बहुत कम है जो अपनी निष्ठा अपने विभाग से कहीं अधिक ऐसे गैंगस्टरों के प्रति दिखाते हैं और इसका कारण वे अच्छी तरह से जानते हैं. इन आरोपियों के कृत्य ने न केवल गैंगस्टरों को सचेत किया, बल्कि उन्हें जवाबी हमले के लिए कमर कसने की भी सहूलियत दी जिससे यह मुठभेड़ हुई जिसमें आठ पुलिसकर्मियों को अपनी जान गंवानी पड़ी.’
उल्लेखनीय है कि तिवारी और अन्य पुलिसकर्मी को 2020 में गिरफ्तार किया गया. इनके खिलाफ भादंसं की धारा 147, 148, 504, 323, 364, 342 और 307 एवं आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम, 1932 की धारा 7 के तहत एफआईआर दर्ज किया गया था.
राज्य सरकार के वकील ने दलील दी कि शर्मा, ‘विकास दुबे और उसके गिरोह के नियमित संपर्क में था और उसके जरिए एसओ विनय तिवारी भी दुबे के संपर्क में था. इन दोनों आरोपियों ने निश्चित तौर पर उनकी मदद की और गिरोह की आपराधिक गतिविधियों की हमेशा अनदेखी की.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)