कांग्रेस टूलकिट: सुप्रीम कोर्ट का रमन सिंह व पात्रा को राहत के ख़िलाफ़ याचिका सुनने से इनकार

कांगेस की छात्र शाखा एनएसयूआई की छत्तीसगढ़ इकाई के अध्यक्ष आकाश शर्मा की शिकायत पर 19 मई को एफआईआर दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि रमन सिंह, संबित पात्रा और अन्य लोगों ने कांग्रेस पार्टी के फर्जी लेटरहेड का इस्तेमाल कर मनगढ़ंत सामग्री सोशल मीडिया मंच पर पोस्ट की और इसे पार्टी द्वारा विकसित टूलकिट के रूप में पेश किया.

/
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह और भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा (फोटोः पीटीआई)

कांगेस की छात्र शाखा एनएसयूआई की छत्तीसगढ़ इकाई के अध्यक्ष की शिकायत पर मई में दर्ज एक एफआईआर में आरोप लगाया गया था कि रमन सिंह, संबित पात्रा और अन्य लोगों ने कांग्रेस के फ़र्ज़ी लेटरहेड का इस्तेमाल कर मनगढ़ंत सामग्री सोशल मीडिया पर पोस्ट की और इसे पार्टी द्वारा तैयार टूलकिट के रूप में पेश किया.

छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह और भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा (फोटोः पीटीआई)

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने कथित रूप से फर्जी टूलकिट संबंधी ट्वीट मामले को लेकर छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह और भाजपा नेता संबित पात्रा के खिलाफ जांच पर रोक लगाने के हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली छत्तीसगढ़ सरकार की दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया.

चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने छत्तीसगढ़ सरकार की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सांघवी से कहा, ‘इस मामले पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट को फैसला करने दीजिए. हम जानते हैं कि पूरे देश में इस टूलकिट मामले में कई लोगों ने विभिन्न अदालतों में रोक लगाने की याचिकाएं दायर की हैं. हमें इस मामले को अलग से प्राथमिकता क्यों देनी चाहिए.’

हाईकोर्ट ने 11 जून को एक ही एफआईआर में दो अलग-अलग आदेश पारित किए थे और रमन सिंह एवं संबित पात्रा के खिलाफ दायर प्राथमिकी के संदर्भ में उन्हें अंतरिम राहत दी थी.

उस समय  कोर्ट ने कहा था  कि एफआईआर राजनीतिक द्वेष के आधार पर दर्ज की गई है और जांच जारी रखने की अनुमति देना कानून के दुरुपयोग के अलावा कुछ नहीं है.

अदालत ने कहा था, ‘एफआईआर में लगाए गए आरोप दर्शाते हैं कि ट्वीट ने कांग्रेस नेताओं को क्रोधित किया, जिससे यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि ट्वीट ने सार्वजनिक शांति पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं डाला और यह दो राजनीतिक दलों के बीच केवल राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का मामला है.’

मामले में सुनवाई शुरू होते ही पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट को आपराधिक मामले में भाजपा नेताओं की याचिकाओं पर फैसला करने दीजिए.

सिंघवी ने हाईकोर्ट के निष्कर्षों का जिक्र करते हुए कहा, ‘आप टिप्पणियां देखिए, इस चरण पर हाईकोर्ट क्या फैसला करेगी. यदि मैं वहां जाता भी हूं, तो याचिका पर ईमानदारी से सुनवाई होनी चाहिए.’

सिंघवी ने कहा, ‘हाईकोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता राजनीतिक लोग हैं और कहा कि कोई मामला नहीं बनता तो अब मेरे लिए बचा क्या है, जो मैं वापस हाईकोर्ट जाऊं.’

इस पर पीठ ने कहा, ‘अपनी ऊर्जा यहां व्यर्थ मत कीजिए. हम हस्तक्षेप नहीं करना चाहते. हाईकोर्ट को मामले पर तेजी से फैसला करने दीजिए. हम विशेष अनुमति याचिकाओं (एसएलपी) को खारिज करते हैं. इस मामले पर टिप्पणियों से प्रभावित हुए बिना योग्यता के आधार पर फैसला किया जाए.’

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से फर्जी टूलकिट मामले संबंधी याचिकाओं पर शीघ्र निर्णय लेने का अनुरोध किया.

इससे पहले वकील सुमीर सोढी के जरिए छत्तीसगढ़ सरकार ने कथित फर्जी टूलकिट मामले में भाजपा नेता सिंह तथा पार्टी प्रवक्ता पात्रा के ट्वीट को लेकर दर्ज प्राथमिकी में जांच पर रोक के हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था, ‘प्रथम दृष्टया यह स्थापित होता है कि मौजूदा प्राथमिकी किसी राजनीतिक मकसद से दर्ज की गई है.’

राज्य सरकार ने रमन सिंह मामले में आदेश के खिलाफ अपनी अपील में कहा कि 11 जून को दाखिले के स्तर पर हाईकोर्ट ने न केवल तुच्छ याचिका को स्वीकार किया बल्कि एफआईआर के सिलसिले में जांच पर रोक लगाकर आरोपी/प्रतिवादी संख्या एक (रमन सिंह) को गलती से अंतरिम राहत प्रदान कर दी.

राज्य सरकार ने इस आधार पर आदेशों को रद्द करने का अनुरोध किया कि सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार यह कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट के विशेष अधिकारों का इस्तेमाल कम से कम और दुर्लभतम मामलों में किया जाना चाहिए.

राज्य सरकार ने आगे कहा कि हाईकोर्ट ने इस तरह के अधिकारियों का उपयोग करने और पूरी जांच पर प्रारंभिक चरण में रोक लगाने में गलती की है, खासकर तब जब जालसाजी का पूर्व दृष्टया अपराध बनता है.

राज्य सरकार ने कहा कि वह कानून के अनुसार जांच कर रही है और महामारी को देखते हुए अपने आचरण में निष्पक्ष रही है तथा आरोपी को भेजे गए नोटिस के अनुसार अपने घर पर उपस्थित होने का मौका दिया गया था और जब उन्हें दूसरा नोटिस भेजा गया तो उन्हें अपने वकील के माध्यम से पेश होने का विकल्प दिया गया था.

संबित पात्रा के मामले में दायर अपील में भी यही आधार बताया गया है और आदेश रद्द करने का अनुरोध किया गया है.

बता दें कि कांगेस की छात्र शाखा नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) की छत्तीसगढ़ इकाई के अध्यक्ष आकाश शर्मा की शिकायत पर 19 मई को प्राथमिकी दर्ज की गई थी.

इस प्राथमिकी में आरोप लगाया गया कि सिंह, पात्रा और अन्य लोगों ने कांग्रेस पार्टी के फर्जी लेटरहेड का इस्तेमाल कर मनगढ़ंत सामग्री सोशल मीडिया मंच पर पोस्ट की और इसे पार्टी द्वारा विकसित टूलकिट के रूप में पेश किया.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)