दिल्ली दंगा: अदालत ने 10 लोगों के ख़िलाफ़ आगज़नी के आरोप हटाए, कहा- पुलिस ख़ामियों को छिपा रही

दिल्ली की एक अदालत ने आगज़नी के आरोप रद्द करते हुए कहा कि शिकायतकर्ताओं ने अपने शुरुआती बयानों में दंगाई भीड़ द्वारा आग या विस्फोटक पदार्थ के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा. पुलिस एक खामी को छिपाने का और दो अलग-अलग तारीख़ों की घटनाओं को एक साथ जोड़ने की कोशिश कर रही है.

A man is seen through a hole on a classroom wall after the school building was attacked by a mob in a riot affected area following clashes between people demonstrating for and against a new citizenship law in New Delhi, February 27, 2020. REUTERS/Rupak De Chowdhuri

दिल्ली की एक अदालत ने आगज़नी के आरोप रद्द करते हुए कहा कि शिकायतकर्ताओं ने अपने शुरुआती बयानों में दंगाई भीड़ द्वारा आग या विस्फोटक पदार्थ के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा. पुलिस एक खामी को छिपाने का और दो अलग-अलग तारीख़ों की घटनाओं को एक साथ जोड़ने की कोशिश कर रही है.

फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने फरवरी 2020 में हुए दंगों के दौरान दुकानों में कथित रूप से लूटपाट करने के दस आरोपियों के खिलाफ आगजनी का आरोप को हटा दिया. इसके साथ ही अदालत ने कहा कि पुलिस एक खामी को छिपाने का और दो अलग-अलग तारीखों की घटनाओं को एक साथ जोड़ने की कोशिश कर रही है.

यह मामला तीन शिकायतों के आधार पर दर्ज किया गया था. बृजपाल ने आरोप लगाया था कि दंगाई भीड़ ने 25 फरवरी 2020 को उत्तर-पूर्वी दिल्ली के बृजपुरी मार्ग पर उनकी किराये की दुकान को लूट लिया था. वहीं, दीवान सिंह ने आरोप लगाया था कि 24 फरवरी 2020 को उनकी दो दुकानों में लूटपाट की गई.

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने आगजनी के आरोप रद्द करते हुए कहा कि शिकायतकर्ताओं ने अपने शुरुआती बयानों में दंगाई भीड़ द्वारा आग या विस्फोटक पदार्थ के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा.

दीवान सिंह ने अपने पूरक बयान में हालांकि कहा कि दंगाई भीड़ ने उनकी दुकान में आग लगा दी. इस पर अदालत ने कहा कि अगर पुलिस में की गई शुरुआती शिकायत में आगजनी का अपराध नहीं था तो जांच एजेंसी पूरक बयान दर्ज करके खामी को नहीं ढंक सकती है.

अदालत ने आगे कहा कि केवल उन पुलिस गवाहों के बयानों के आधार पर आगजनी के आरोप नहीं लगाए जा सकते जो घटना की तारीख पर संबंधित क्षेत्र में ‘बीट’ अधिकारी के रूप में तैनात थे.

अदालत ने कहा कि वह यह नहीं समझ पा रही है कि 24 फरवरी 2020 को हुई घटना को 25 फरवरी 2020 की घटना के साथ कैसे जोड़ा जा सकता है, जब तक कि यह स्पष्ट सबूत नहीं हो कि दोनों तारीखों पर एक ही दंगाई भीड़ थी.

न्यायाधीश ने कहा, ‘उपरोक्त चर्चा के मद्देनजर मेरा विचार है कि धारा 436 आईपीसी (आग या विस्फोटक पदार्थ से शरारत) की सामग्री जांच एजेंसी द्वारा रिकॉर्ड पर पेश की गई सामग्री से बिल्कुल भी नहीं बनाई गई है.’

दस आरोपी- मोहम्मद शाहनवाज, मोहम्मद शोएब, शाहरुख, राशिद, आजाद, अशरफ अली, परवेज, मोहम्मद फैजल, राशिद, मोहम्मद ताहिर हैं.

अदालत ने हालांकि धारा 147 (दंगा), 148 (दंगा, घातक हथियार से लैस), 149 (गैरकानूनी सभा), 188 (लोक सेवक द्वारा आदेश की अवज्ञा), 354 (हमला), 392 (डकैती), 427 (शरारत), 452 (घर में अतिचार), 153-ए (धर्म के आधार पर असामंजस्य को बढ़ावा देना), 506 (आपराधिक धमकी) के तहत आरोप तय किए हैं.

उन्होंने मामले को मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट को स्थानांतरित करने का आदेश दिया.

यह पहली बार नहीं है जब दिल्ली पुलिस को दंगों की जांच के लिए अदालतों ने फटकार लगाई है. दिल्ली दंगों के विभिन्न मामलों से निपटने के तरीके को लेकर पुलिस पर अदालत हाल के दिनों में कई बार सवाल उठा चुकी है.

बीते 17 सितंबर को दिल्ली की एक अदालत ने ‘लापरवाही भरे रवैये’ को लेकर पुलिस को फटकार लगाई थी और कहा था कि पुलिस आयुक्त और अन्य शीर्ष पुलिस अधिकारियों ने 2020 के दंगा मामलों के उचित अभियोजन के लिए सही कदम नहीं उठाए हैं.

बार-बार बुलाए जाने के बावजूद अभियोजक के अदालत में नहीं पहुंचने और जांच अधिकारी के बिना पुलिस फाइल पढ़े देरी से अदालत पहुंचने और सवालों का जवाब नहीं दे पाने को लेकर मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट अरुण कुमार गर्ग ने उक्त टिप्पणी की थी.

इससे पहले दो सितंबर को दंगों के एक आरोपी गुलफाम के खिलाफ आरोप तय करने की सुनवाई के दौरान एक अन्य एफआईआर से बयान लेने पर पुलिस को फटकार लगाई थी.

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) विनोद यादव ने कहा था कि यह समझ से परे है कि अभियोजन पक्ष ने एफआईआर संख्या 86/2020 के तहत गवाह के बयान लिए और उन्हें एफआईआर संख्या 90/2020 के तहत मामले की सुनवाई में इस्तेमाल किया.

दिल्ली की एक अदालत ने बीते दो सितंबर को कहा था कि जब इतिहास विभाजन के बाद से राष्ट्रीय राजधानी में सबसे भीषण सांप्रदायिक दंगों को देखेगा, तो उचित जांच करने में पुलिस की विफलता लोकतंत्र के प्रहरी को पीड़ा देगी.

अदालत ने यह भी कहा था कि मामले की उचित जांच करने में पुलिस की विफलता करदाताओं के समय और धन की ‘भारी’ और ‘आपराधिक’ बर्बादी है.

बीते 28 अगस्त को अदालत ने एक अन्य मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि दिल्ली दंगों के अधिकतर मामलों में पुलिस की जांच का मापदंड बहुत घटिया है.

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने कहा था कि पुलिस आधे-अधूरे आरोप-पत्र दायर करने के बाद जांच को तार्किक परिणति तक ले जाने की बमुश्किल ही परवाह करती है, जिस वजह से कई आरोपों में नामजद आरोपी सलाखों के पीछे बने हुए हैं. ज्यादातर मामलों में जांच अधिकारी अदालत में पेश नहीं नहीं हो रहे हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)