दिल्ली की सीमाओं पर कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसानों के आंदोलन की अगुवाई रह रहे संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से कहा गया है कि किसान शांतिपूर्ण तरीके से देश की खाद्य एवं कृषि प्रणाली पर उद्योग घरानों के क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ विरोध दर्ज करा रहे हैं. उनकी मांगें स्पष्ट हैं, जिसकी जानकारी मोदी सरकार को है और जो हठपूर्वक किसानों की जायज़ मांगों को नहीं मानने पर अड़ी है.
नई दिल्ली: केंद्र द्वारा पारित तीन कृषि कानूनों के खिलाफ जारी किसानों के प्रदर्शन के बुधवार को 300 दिन पूरे हो गए. इस मौके पर आंदोलन की अगुवाई कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने एक बयान जारी कर कहा कि यह आंदोलन देश के लाखों किसानों की इच्छाशक्ति और प्रतिबद्धता का सबूत है और ये और दृढ हुई है.
किसान मोर्चा ने कहा, ‘किसानों को दिल्ली की सीमा पर रहने को मजबूर किए जाने के बाद से 300 दिन पूरे हो गए हैं. प्रदर्शनकारी किसान शांतिपूर्ण तरीके से देश की खाद्य एवं कृषि प्रणाली पर उद्योग घरानों के कब्जे के खिलाफ विरोध दर्ज करा रहे हैं. उनकी मांगें स्पष्ट हैं, जिसकी जानकारी मोदी सरकार को है और जो हठपूर्वक किसानों की जायज मांगों को नहीं मानने पर अड़ी है.’
मोर्चा ने आगे कहा, ‘यह स्थिति तब है, जब देश के कामगारों में किसानों की सबसे बड़ी हिस्सेदारी है और हमारे लोकतंत्र में चुनाव मुख्यत: किसानों द्वारा किए जाने वाले मतदान से जीते जाते हैं.’
बयान के मुताबिक, संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन को मजबूत करने और पूरे देश में व्यापक बनाने का संकल्प लिया. इसके साथ ही मोर्चा की ओर से 27 सितंबर को बुलाए गए ‘भारत बंद’ की भी तैयारियां की जा रही हैं.
किसान मोर्चा ने कहा, ‘देश के अलग-अलग हिस्सों में समाज के विभिन्न वर्गों से किसान संगठन संपर्क कर रहे हैं, ताकि किसानों की मांगों को लेकर समर्थन और एकजुटता प्राप्त की जा सके. यह आंदोलन देश के लोकतंत्र को बचाने का आंदोलन बन गया है.’
बयान के मुताबिक, बंद में कई किसान संगठनों के साथ-साथ कर्मचारी संघों, कारोबार संघों, कर्मचारियों और छात्र संघों, महिला संगठनों, ट्रांसपोर्टर संगठनों को शामिल किया जा रहा है.
किसान मोर्चा ने कहा कि ‘बंद’ के दौरान आयोजित रैली में अधिक लोगों को शामिल करने के लिए किसान महापंचायत आयोजित की जा रही है और साइकिल एवं मोटर साइकिल रैली का भी आयोजन किया जा रहा है.
किसान आंदोलन से जुड़े आधिकारिक ट्विटर पेज किसान एकता मोर्चा की ओर से ट्वीट कर कहा गया है, ‘मोदी सरकार के अनुसार कृषि कानून किसानों को उनकी आय बढ़ाने और अपनी उपज बेचने के लिए अतिरिक्त विकल्प प्रदान करने के लिए हैं, लेकिन गलती से ये कॉरपोरेट की भलाई के लिए ही हैं.’
Acc to Modi govt the laws are to benefit the farmers by increasing their income and additional choices to sell their produce.
But, mistakenly these are for the only good of corporates#300DaysOfFarmersProtest pic.twitter.com/zFLjO8dxxv— Kisan Ekta Morcha (@kisanektamorcha) September 22, 2021
एक अन्य ट्वीट में कहा गया है, ‘पिछले साल सितंबर में किसानों की भलाई के लिए तीन कृषि कानून बनाए गए थे. हालांकि असली किसानों में से किसी ने भी स्वीकार नहीं किया, बल्कि चल रहे विरोध के माध्यम से आवाज उठाई. मोदी सरकार के बेरहम रवैये के कारण कब तक हमारे किसान अपने लिए लड़ते रहेंगे?’
Last year in Sept, 3 Farm Laws were enacted for the good of the farmers
However, none of the 'real farmers' accepted instead raised voice thru' ongoing protest
Until when will our farmers stay on fight fr themselves bcz f merciless attitude f Modi govt?#300DaysOfFarmersProtest pic.twitter.com/8XUQmd6Fsk— Kisan Ekta Morcha (@kisanektamorcha) September 22, 2021
21 सितंबर को किए गए एक ट्वीट में कहा गया है, ‘प्रधानमंत्री मोदी बिल्कुल भी सच्चे नेता नहीं हैं. किसान आंदोलन के 299 दिन हो गए हैं, जिसमें 600 से अधिक किसानों ने अपना कीमती जीवन खो दिया है. कुछ धनी कॉरपोरेट के लिए देश के लोगों की अनदेखी के लिए मोदी सरकार पर शर्म आती है.’
PM Modi is not at all A True Leader.
Its been 299 days during which over 600 farmers hv lost their precious lives
Shame on Modi govt for ignoring nation's people fr a few wealthy corporates#हर_किसान_मोदी_से_परेशान pic.twitter.com/PJVNx5F9Lp— Kisan Ekta Morcha (@kisanektamorcha) September 21, 2021
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, अखिल भारतीय बैंक अधिकारी परिसंघ (एआईबीओसी) ने ‘भारत बंद’ को अपना समर्थन दिया है. एआईबीओसी ने सरकार से उनकी मांगों पर संयुक्त किसान मोर्चा के साथ बातचीत फिर से शुरू करने और तीन विवादित कृषि कानूनों को रद्द करने का अनुरोध किया.
हरियाणा में भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के चंढूनी धड़े के प्रमुख गुरनाम सिंह चढूनी ने बुधवार को कहा कि दिल्ली की सीमा पर बैठे किसान तब तक नहीं झुकेंगे जब तक केंद्र के तीन विवादित कृषि कानूनों को निरस्त नहीं किया जाता.
उनकी बात दोहराते हुए किसान नेता रवि आजाद ने कहा कि जब तक तीन कृषि कानून खत्म नहीं हो जाते, तब तक दिल्ली की सड़कें नहीं खुलेंगी.
कुंडली-सिंघू सीमा पर राष्ट्रीय राजमार्ग-44 पर नाकेबंदी को हटाने के लिए हरियाणा सरकार ने इस महीने की शुरुआत में प्रदर्शन कर रहे किसान संघ के नेताओं के साथ बातचीत करने के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया है. हालांकि, किसान संगठन के नेता बैठक में शामिल नहीं हुए.
हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज ने बुधवार को चंडीगढ़ में कहा कि सुप्रीम कोर्ट को घटनाक्रम से अवगत कराया जाएगा.
अदालत ने पिछले महीने कहा था कि केंद्र और दिल्ली के पड़ोसी राज्यों को राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं पर सड़क अवरोधों का समाधान खोजना चाहिए.
केंद्र सरकार ने कलम और कैमरे पर पहरा लगा रखा है: राकेश टिकैत
बिजनौर: इस बीच उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने बुधवार को आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने कलम और कैमरे दोनों पर पहरा लगा रखा है.
भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, ‘केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की नहीं बल्कि मोदी (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी) की सरकार है, जिसने कलम और कैमरे दोनों पर पहरा लगा रखा है. बेरोजगारी चरम पर है, लेकिन कोई नहीं बोलता. सरकार कृषि कानूनों पर लगातार झूठ बोल रही है.’
उन्होंने केंद्र और उत्तर प्रदेश की सरकारों के मुखिया पर झूठ बोलने का आरोप लगाते हुए कहा, ‘झूठ बोलने की प्रतियोगिता में ये दोनों स्वर्ण पदक जीत सकते हैं.’
टिकैत ने आरोप लगाया कि प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में सरकारी बंदूक की नोक पर जीत हासिल करने वाली भाजपा विधानसभा चुनाव में भी अपने प्रत्याशियों को जबरन जीत दिला लेगी.
गौरतलब है कि केंद्र सरकार की ओर से कृषि से संबंधित तीन विधेयक- किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 को बीते साल 27 सितंबर को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी थी, जिसके विरोध में नौ महीने से अधिक समय से किसान प्रदर्शन कर रहे हैं.
किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन अध्यादेशों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.
दूसरी ओर केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली मोदी सरकार ने इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है. उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं.
अब तक किसान यूनियनों और सरकार के बीच 11 दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन गतिरोध जारी है, क्योंकि दोनों पक्ष अपने अपने रुख पर कायम हैं. 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के लिए किसानों द्वारा निकाले गए ट्रैक्टर परेड के दौरान दिल्ली में हुई हिंसा के बाद से अब तक कोई बातचीत नहीं हो सकी है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)